डीजल का पेड़ कैसे लगाए । बायो डीजल पौधा कैसा होता है । बायो डीजल कैसे बनता है


डीजल का पेड़ कैसे लगाए (Diesel Tree)

वर्तमान समय में देश में बढ़ती जनसख्यां और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने और औद्योगिक विकास को रफ़्तार देने के लिए खनिज़ तेलों की मांग में बढ़ोतरी हो रही है| जिस तरह से देश में पेडरोलियम पदार्थ की उपयोगिता बढ़ रही है| उस तरह से आने वाले 40 से 50 सालो में तेल का भंडार ख़त्म होने के अनुमान लगाए जा रहे है| ऐसे में अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए एक ही विकल्प बचता है, कि ऊर्जा के नए साधनो की खोज की जाए| ऐसे में ‘जैट्रोफा’ का पौधा ऊर्जा के साधन का एक विकल्प बनकर आया है| यह पौधा देश के कई हिस्सों में अधिक मात्रा में उगाया जाने लगा है, जिसे ‘जंगली जैट्रोफा’ के नाम से भी जानते है|

इसके अलावा इस पौधे को कई और नामो जैसे :- बायो डीज़ल, जैव डीजल, जैट्रोफा मिथाईल ईस्टर, बायोफ्यूल जैव ईंधन और जैट्रोफा करकास भी कहते है| यह पौधा पेट्रोलियम की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए वरदान साबित हो सकता है| ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने वाले जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से बचने के लिए कई तरह के वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल किया जा रहा है| अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत की खोज के लिए बायोमास, सौर, पवन, जलविद्युत और भूतापीय स्त्रोतों पर शौध कर रहे है| जैव ईंधन जैसे :- बायोडीज़ल और जैविक पदार्थ से ऊर्जा का स्त्रोत प्राप्त किया जा रहा है, ताकि जीवाश्म ईंधन की जगह ली जा सके|

बायोडीज़ल को आप सीधा पशुओ के वसा, वनस्पतिक तेल व खाने-पकाने वाले अपशिष्ट से उत्पादित कर सकते है| इन तेलों का परिवर्तन कर बायोडीजल में बदलने की प्रक्रिया को ट्रान्स-इस्टरीकरण कहते है| जीवाश्म व पारंपरिक डीज़ल के स्थान पर बायोडीज़ल एक वैकल्पिक ईंधन है, जो शहरों में बढ़ने वायु प्रदूषण को कम करने में बेहद जरूरी कदम है| वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोत के लिए बड़ी मात्रा में बायोडीजल के पौधों का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी है, जिन्हें बायोडीजल के पेड़ के बारे में जानकारी तक नहीं है, और न ही उन्होंने बायोडीजल का पेड़ देखा हुआ है|

अगर आप भी बायोडीजल पेड़ के बारे में नहीं जानते है, तो इस लेख में आपको डीजल का पेड़ कैसे लगाए व  बायो डीजल पौधा कैसा होता है तथा बायो डीजल कैसे बनता है के बारे में बता रहे है|

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डीजल का पेड़ कैसे लगाए (Plant Diesel Tree)

यूरोप में बायो डीज़ल को मुख्यत: सूरजमुखी के तेल से तथा यू. एस. में सोयाबीन के तेल से निकालते है, चूँकि भारत में खाद्य तेलों की कमी है, इसलिए बायो डीज़ल का निर्माण करने के लिए करंजिया, जेट्रोफा और राइस ब्रान आयल का इस्तेमाल किया जाता है| भारत में बायोडीज़ल काफी लोकप्रिय होता जा रहा है, जिसके पीछे का कारण ईंधन का नवीनीकृत स्त्रोतों से निर्मित होना है| भारत में खाद्य तेलों की कमी है, जिस वजह से बायोडीज़ल को बनाने के लिए अखाद्य तेल जैसे :- जैट्रोफ़ा और करंजिया का उपयोग करते है| इन पौधों को भारत में बेकार पड़ी तकरीबन 80 मिलियन हेक्टेयर की भूमि में लगा सकते है|

यह फसलें अर्द्ध शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में लगाई जा सकती है, जिन्हे लगाने के बाद किसी तरह की देख-रेख करने की जरूरत नहीं पड़ती है| यह सभी बेकार पड़ी भूमि आर्थिक रूप से अल्प विकसित व ग्रामीण क्षेत्रों में होती है, जिस वजह से इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगो के लिए बायोडीज़ल का उत्पादन रोजगार व विकास का बेहतर साधन हो सकता है|

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बायो डीजल का पौधा कैसा होता है (Biodiesel Plant)

बायो डीज़ल एक बहुवर्षीय वृक्ष है, जिसके बीजो में तकरीबन 40% तेल होता है| इसके बीजो से डीजल बनाने का सफल प्रयास किया जा चुका है| बायो डीज़ल तैयार करने के लिए वास्तविक डीज़ल में तकरीबन 18% जैट्रोफा के तेल की मात्रा को मिलाया जाता है| इस तरह से तैयार डीज़ल को किसी भी डीजल से चलने वाले इंजन जैसे :- ट्रक, बस, जनरेटर, पम्पसैट और ट्रैक्टर में उपयोग कर सकते है|

बायो डीज़ल का पौधा एक बार लगने के बाद 8-10 वर्षो तक लगातार बीजो का उत्पादन देता रहता है| प्रति हेक्टेयर के खेत में आप बायोडीज़ल का पौधा लगाकर तकरीबन 250 KG की उपज ले सकते है, तथा यह पैदावार 5 वर्षो में बढ़कर 12 टन तक हो सकती है| 

बायो डीजल कैसे बनता है (Make Bio-Diesel)

बायो डीज़ल तैयार करने के लिए सबसे पहले आपको जैट्रोफा के बीजो को लेना होता है, जिसके लिए आप उच्च क्वालिटी वाले बीजो को चुने| इसके बीज से निकले तेल का परिशोधन कर उसे जैविक डीज़ल का रूप देते है| जैट्रोफा के तेल में मौजूद ट्राई ग्लिसरॉयड को परिवर्तित पर वसीय अम्ल ईथर बनाते है| परिशोधन प्रक्रिया में बीजो को सीधा तेल निकालने वाली मशीन में डालते है, और डिकाटिकेटर द्वारा गिरी को अलग कर उसे भी एक्सपेलर द्वारा प्रक्रियाकृत कर अलग कर लेते है|

बीज के साथ एथेनॉल या मेथेनॉल (कोई एक अल्कोहल) तथा सोडियम हाइड्रोक्साइड या पोटेशियम हाईड्रोक्साइड की गोलियों को उत्प्रेरक के रूप में मिलाया जाता है| उत्प्रेरक क्रिया होने के पश्चात् आसवन विधि अपनाई जाती है| चूंकि इनका क्वथनांक अलग होता है, जिस वजह से अल्कोहल भी अलग हो जाता है| इसके बाद मिश्रण की अभिक्रिया को शोधित जल द्वारा परिशुधिकरण कर लेते है|

इस तरह से वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया से ग्लिसरीन और डीजल पृथक अलग हो जाते है| जिसमे से तेल को बायो डीज़ल के रूप में इस्तेमाल कर लेते है, तथा ग्लिसरीन को अन्य कामो में उपयोग करते है| यही वजह है, कि विश्व स्तर पर इसकी पूर्ती नहीं हो पाती है| तेल निकालने पर बची हुई खली को खेतो में जैविक खाद या बायो गैस बनाने के काम में लिया जाता है|

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बायोडीज़ल के लाभ (Bio-Diesel Benefits)

  • जीवाश्म मूल वाले डीज़ल के मुकाबले, बायोडीज़ल के कई फायदे है, क्योकि यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने का काम करता है|
  • बायोडीज़ल में पेट्रोलियम डीज़ल के मुकाबले कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा 78% कम पाई जाती है|
  • पारंपरिक डीजल ईंधन के साथ बायोडीजल को मिलाने पर पेट्रोलियम डीजल ईंधन की चिकनाई काफी बढ़ जाती है|
  • बायोडीज़ल पर्यावरण के लिए हानिहीन ईंधन है|
  • बायोडीज़ल को अक्षय कच्चे माल से बनाते है|
  • इसमें सल्फर नहीं होता है, जिस वजह से SOx उत्सर्जन भी नहीं होता है|
  • बायोडीज़ल धुंए और धूल के उत्सर्जन को काफी कम कर देता है|
  • दहन क्रिया के समय बायोडीज़ल से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम उत्पन्न होती है|

बायोडीज़ल के नुकसान (Biodiesel Disadvantages)

बायोडीज़ल के उपयोग में जो नुकसान देखा गया है, वह प्रदर्शन में कमी है| बायोडीज़ल में ऊर्जा कम मात्रा में होती है| 1 लीटर डीज़ल में 9.300 किलो कैलोरी ऊर्जा होती है, तो वही 1 लीटर बायोडीज़ल में 8.600 KL कैलोरी ऊर्जा पाई जाती है| इस तरह से अगर आप डीज़ल के सामान ऊर्जा प्राप्त करना चाहते है, तो आपको अधिक बायोडीज़ल का उपयोग करना होगा|

दूसरी चीज सीटेन संख्या है, जो ठीक तरह से कार्य करने के लिए 40 से अधिक होना जरूरी है| उच्च सीटेन वाला ईंधन इंजन को कम समय में आसानी से शुरू करने और निम्न तापमान पर गर्म करने में सहायक होता है| बायोडीज़ल में भी डीज़ल की तरह ही एक सिटेन नंबर होता है, जो इंजन को बिना किसी असुविधा के इस्तेमाल करने की अनुमति देता है|

बायोडीज़ल के इस्तेमाल पर पर्यावरण के मुद्दे को प्रभावी माना गया है| इस मामले में यह कहां गया है, कि बायोडीज़ल के मिश्रण का घटक या बायोडीज़ल का इस्तेमाल वातावरण में उत्सर्जित प्रदूषणकारी गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड या नाइट्रोजन ऑक्साइड को कम करने का काम करता है|

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भारतीय रेलवे में बायोडीज़ल का महत्व (Biodiesel Importance in Indian Railway)

डीज़ल उपभोग के मामले में भारतीय रेलवे प्रथम स्थान पर है, जिसकी डीज़ल की कुल अनुमानित खपत तकरीबन 2 मिलियन है| इसके साथ ही यह भारत देश का सबसे बड़ा भू-भाग वाला विभाग भी है| इस भूमि पर व्यवस्थित रूप से कोई पौधरोपण नहीं किया गया है| रेलवे ने अपने पास उपलब्ध भूमि व रेलवे मार्ग से जुड़ी भूमि पर जैव फसलें उगाने के लिए रुचि दिखाई है| इस स्थान पर बायोडीज़ल के लिए फसल उत्पादन कर डीज़ल की 5 से 10% पूर्ती की जा सकती है| इस तरह से रेलवे के लिए बायोडीज़ल दो तरह से महत्वपूर्ण है, पहला उत्सर्जन दर में कमी और दूसरा डीज़ल को उपयुक्त मात्रा में ल्युब्रिसिटी मिल पाएगी| भविष्य में जब डीज़ल में सल्फर लुब्रिकेसी की दर में कमी होगी, तब यह महत्वपूर्ण साबित होगी| जब डीज़ल में सल्फर 500 PPM से कम होगा, तब बायो डीज़ल 1 से 2% कम सल्फर वाला डीज़ल प्रदान करेगा|

भारत में बायो डीज़ल का निर्माण करने के लिए किन-किन प्रजातियों को उगाया जा सकता है?

यह तो आपको बताया ही जा चुका है, कि बायोडीज़ल की खेती करने के लिए निम्न मजदूर और गर्मीं क्षेत्र वाली भूमि उपयुक्त होती है| आप इसे ऐसे भी समझ सकते है, कि बायोडीज़ल की खेती करने के लिए व्यर्थ पड़ी भूमि का इस्तेमाल कर सकते है|

क्या पंप इंजन और वाहनों के लिए बायो डीज़ल अनुकूल है?

हां, बायो डीज़ल को पंप इंजन और वाहनों के लिए काफी अनुकूल माना गया है|

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