फसल किसे कहते हैं | भारत में फसल कितने प्रकार की होती है | Types of Crops in Hindi


Table of Contents

फसल से सम्बंधित जानकारी

भारत में प्राचीनकाल से ही कृषि कार्य किया जा रहा है, जिसके कारण भारत को एक कृषि प्रधान देश कहा जाता है| यहाँ तक कि भारत की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनानें में कृषि का अहम् अहम योगदान रहा है| भारत में कृषि की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसकी प्रमाणिक पुष्टि करना काफी कठिन है| हालाँकि भारत में कृषि लोगो के लिए जीविका का साधन ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर भी है| 

यदि हम वर्तमान समय की बात करे तो आज भी लाखों लोग कृषि कार्यों के माध्यम से आपनी जीविका चला रहे है| आज हम यहाँ भारत में उगायी जानें वाली फसलों के बारें में चर्चा करेंगे, तो आईये जानते है, कि फसल क्या होती है, भारत में फसलों के प्रकार  और फसल चक्र के बारें में पूरी जानकारी|     

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फसल क्या होती है (What Is Crop)

हम सभी जानते है, कि पृथ्वी पर किसी भी जीव को जीवित रहनें के लिए आवश्यक आवश्यकताओं के अंतर्गत भोजन की आवश्यकता होती है| हालाँकि प्राचीन काल में मानव को कृषि के बारें में कोई जानकारी नहीं थी और वह आपनी खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वयं से उगी हुई वनस्पतियों एवं पेड़ – पौधों से भोजन प्राप्त करता था। धीरे-धीरे जनसँख्या में वृद्धि होनें लगी और मानव सभ्यता का विकास हुआ|  मनुष्य नें आपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करनें के लिए कृषि कार्य करना प्रारंभ कर दिया|

समय के साथ-साथ मानव का मानसिक विकास हुआ और जनसंख्या में वृद्धि होनें लगी| जिसके कारण मनुष्य की भोजन सम्बन्धी आवश्यकतायें बढ़नें लगी और अपनी इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए मानव नें एक निश्चित समयबद्ध कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न प्रकार की फसलों को उगानें पर ध्यान केन्द्रित किया|  मनुष्य अपनें भोजन की आवश्यकता को पूर करनें के लिए एक योजना के अनुसार जिन पेड़ पौधों का उत्पादन करता है, उसे फसल कहते है| दूसरे शब्दों में एक बड़े क्षेत्रफल में पौधों का वह समूह जो भोजन की पूर्ति के साथ ही आर्थिक लाभ की दृष्टि से उगाया जाता है, फसल कहलाता है। 

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भारत में फसलों के प्रकार (Types Of Crops In Hindi (India))

भारत में मौसम के आधार पर 3 प्रकार की खेती की जाती है, जो इस प्रकार है:-

1.खरीफ की फसल (Kharif Crop)

देश में खरीफ की फसल को मानसून के मौसम अर्थात जून और जुलाई के महीने में उगाई जाती है, इन फसलों को वर्षा ऋतु की फसलें भी कहते है| खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों के लिए बुवाई के समय हवा में नमी के साथ ही सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है, जबकि फसल को अच्छी तरह से पकनें के लिए तापमान में गर्मीं अर्थात अधिक धूप की जरुरत होती है|

खरीफ की फसलों में धान, मक्का, बाजरा, मूंगफली, उड़द, मूंग, मूंगफली, जूट आदि फसलें शामिल है|   

2.रबी की फसल (Rabi Crop)

रबी की फसलों को मुख्य रूप से सर्दियों के मौसम अर्थात अक्टूबर – नवम्बर में उगाया जाता है| रबी की फसलों को उगानें के लिए कम तापमान के साथ ही कम पानी की जरुरत होती है, जबकि फसलों को पकनें के लिए अधिक गर्मी और प्रकाश की आवश्यकता होती है|

मुख्य रूप से रबी की फसलों को अक्टूबर महीनें के बाद ही बोया जाता है| मसूर, सरसो, चना, मटर, सरसों, जौ, आलू, तम्‍बाकू, गन्ना, चुकन्दर आदि फसलें रबी की फसलें होती है|

3.जायद की फसल (Zaid Crop)

खरीफ की फसल और रबी की फसल के बीच में बचनें वाले समय के दौरान जिन फसलों का उत्पादन किया जाता है, उन्हें जायद की फसलें कहते है| दरअसल इस मौसम में बोयी जानें वाली फसलों को पकनें में बहुत ही कम समय लगता है| 

जायद की फसलों का उतपादन मुख्य रूप से मार्च से जून माह के बीच में किया जाता है| इसमें ककड़ी, खीरा, तरबूज, तरोई, खरबूजा और टमाटर आदि जैसी फसलें शामिल है|

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फसलों का वर्गीकरण (Classification Of Crop)

भारत में फसलों का उत्पादन मौसम, आवश्यकता और आर्थिक महत्व, वानस्पतिक समानताओं और जीवन चक्र के आधार पर किया जाता है, इसके अनुसार फसलों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार है-

  • मौसम या ऋतुओं के आधार पर
  • उपयोग एवं आर्थिक महत्व के आधार पर
  • जीवन चक्र के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
  • फसलों का वनस्पतिक वर्गीकरण
  • विशेष उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
  • फसलों का सस्य वैज्ञानिक वर्गीकरण
  • औद्योगिक महत्व के आधार पर

1.मौसम या ऋतुओं के आधार पर फसलों का वर्गीकरण (Depending on The Season or Season)

भारत में मौसम के आधार पर उत्पादित की जानें वाली फसलों को 3 वर्गों में बांटा गया है, जो इस प्रकार है-

क्र०स० फसल का नाम
1.खरीफ की फसलें ( Kharif Crops)
2.रबी की फसलें ( Rabi Crops )
3.जायद की फसलें ( Zaid Crops)

2. उपयोग एवं आर्थिक महत्व के आधार पर (On The Basis Of Usage & Economic Importance)

उपयोग एवं आर्थिक महत्व के आधार पर उगायी जानें वाली फसलों को इस प्रकार विभाजित किया गया है-

क्र०स० फसल का नाम
1.अनाज की फसलें (Cereal Crops)
2.दलहनी फसलें (Pulse Crops)
3.तिलहनी फसलें (Oilseed Crops)
4.फलदार फसलें (Fruit Crops)
5.रेशे की फसलें (Fibre Crops)
6.मिर्च एवं मसाले वाली फसलें (Spices & Condiments)
7.औषधीय फसलें (Medicinal Crops)
8.चारे की फसलें (Forage Crops)
9.शाकथाजी की फसलें (Vegetable Crops)
10.स्टार्च वाली फसलें (Starch Crops)
11.शर्करा की फसलें (Sugar Crops)
12.उत्तेजक फसलें (Stimulant Crops)
13.छोटे दाने वाली फसलें (Millet Crops)
14.जड़ तथा कन्द वाली फसलें (Root & Tuber Crops)
15.पेय पदार्थ वाली फसलें (Beverage Crops)

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3. जीवन चक्र के आधार पर फसलों का वर्गीकरण (Classification Of Crops Based On Life Cycle)

वर्तमान समय में अवधि के अनुसार उगनें वाली फसलों की अनेक जातियाँ विकसित हो चुकी हैं| इसमें से कुछ फसलों का जीवनकाल कम समय का होता है, जबकि कुछ फसलों के पौधों की जीवनकाल अवधि लम्बी होती है|  पौधों के जीवन काल में लगने वाली इस अवधि के आधार पर ही फसलों को विभिन्न वर्गों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है-

क्र०स० फसल का नाम
1.एकवर्षीय फसलें (Annual crops)
2.द्विवर्षीय फसलें (Biennial crops)
3.बहुवर्षीय फसलें (Perennial crops)

4.फसलों का वानस्पतिक वर्गीकरण (Botanical Classification of Crops)

वानस्पतिक वर्गीकरण के आधार पर फसलों को सामान्यतः परिवारों के अन्तर्गत विभाजित किया जाता है, जो इस प्रकार है-

क्र०स० परिवार फसलों के नाम
1.घास परिवार (Gramincae Family) धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहूँ, जौ, गन्ना
2.मटर परिवार (Leguminaceae Family )अरहर, उड़द, मूंग, सोयाबीन, सनई, लैंचा, ग्वार, मूंगफली, मटर, चना, मसूर
3.सरसों परिवार (Cruciferae Family) सरसों, तोरिया, तारामिरा, बन्दगोभी, फूलगोभी, गाँठगोभी, मूली, शलजम
4.कपास परिवार (Malvaceae Family ) कपास, पटसन व भिण्डी आदि
5.आलू परिवार (Solanaceae Family) आलू, टमाटर, हरी मिर्च व तम्बाकू
6.अलसी परिवार (Linaceae Family ) अलसी
7.कद्दू परिवार (Cucurbitaceae Family) पेठा, खीरा, करेला, खरबूजा व तरबूज आदि
8.जूट परिवार (Tilaceae Family) जूट
9.अण्डी परिवार (Euphorbiaceae Family) अण्डी

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5.विशेष उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण (Classification of Crops on The Basis of Special Use)

फसलों को उनके विशेष उपयोग के आधार पर इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है- 

क्र०स०फसल का नाम
1.नकदी फसलें (Cash Crops)
2.अन्तर्वर्ती फसलें (Catch Crops )
3.सहयोगी फसलें (Companion Crops)
4.वीथी फसलें (Alley Crops)
5.शिकारी फसलें (Prey or Smother Crops )
6.बम्पर क्राप तथा क्राप फेलयोर (Bumper Crop And Crop Failure)
7.रिले क्रापिंग (Relay Cropping)

6. फसलों का सस्य वैज्ञानिक वर्गीकरण (Scientific Classification of Crops)

किसी भी फसल के अच्छे उत्पादन के लिए उसकी बुवाई से लेकर कटाई तक खेत में विभिन्न सस्य क्रियाएं की जाती है| इन क्रियाओं को निर्धारित करने वाले प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार है- 

1.फसल का चुनाव (Selection of Crop)
2.भूमि का चुनाव (Selection of land)
3.मौसम विज्ञान (Weather Science)
4.उपयुक्त फसल चक्र (Suitable Crop Rotation)
5.मिलवा खेती (Mixed Cropping)
6.सिंचाई प्रबंध (Irrigation Management)
7.कृषि श्रमिकों की उपलब्धता (Availability of Farm Labourers)
8.कृषि संसाधनों का प्रबंध (Management of Agri Resources)

7. औद्योगिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण (On The Basis of Industrial Importance)     

 औद्योगिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण इस प्रकार है-

  • सब्जी उद्योग (Vegetable Industry)
  • औषधि उद्योग (Pharmaceutical Industry)
  • फल एवं फूल उद्योग (Fruit and flower industry)
  • रंग व सुगन्ध उद्योग (Colour and Aroma Industries)
  • जूट व पैकिंग उद्योग (Jute & Packing Industries)
  • काफी या कहवा उद्योग (Coffee Industry)
  • आटा मिल (Flour Mill)
  • शीतल पेय उद्योग (Soft Drink Industry)
  • रसायन और तेल उद्योग (Chemical & Oil Industry)
  • सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग (Cosmetics Industry)
  • चीनी उद्योग (Sugar Industry)
  • हथकरघा उद्योग (Handloom Industry)

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फसल चक्र क्या होता है (What Is Crop Rotation)

भारत में फसलों का उत्पादन मौसम और अवश्याताओं के अनुसार किया जाता है| किसी एक निर्धारित क्षेत्र और समय में अनेक प्रकार के फसलों का उत्पादन करनें की प्रक्रिया को फसल चक्र कहते हैं। आपको बता दें कि फसल चक्र को सस्य चक्र, सस्य आवर्तन के नाम से भी जाना जाता है|  दूसरे शब्दों में किसी भूमि में एक निश्चित समय में फसलों बदल-बदल कर बोना या उनका उत्पादन करना फसल चक्र कहलाता है|

फसल चक्र का महत्व (Importance Of Crop Rotation)

भूमि में एक ही फसल का निरंरत उत्पादन करनें से खेत की उत्पादन क्षमता घट जाती है, अर्थात उस फसल की पैदावार कम हो जाती है| इसके साथ ही भूमि में विभिन्न प्रकार के विषैले गुण उत्पन्न हो जाते है| दरअसल भूमि की भौतिक और जैविक स्थिति में संतुलन बनाए रखनें के लिए फसल चक्र के अनुसार फसलों का उत्पादन करना ही लाभकारी होता है| क्रॉप रोटेशन का उपयोग कर आप उच्च गुणवत्ता के साथ ही अधिक मात्रा में उत्पादन ले सकते है| इससे खेत की उत्पादन और उर्वरक क्षमता संतुलित बनी रहती है|  

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फसल चक्र से लाभ (Benefit From Crop Rotation)

  • फसल चक्र को अपना कर मिट्टी की रासायनिक, भौतिक और जैविक गुणों को बेहतर किया जा सकता है।
  • फसल चक्र के अनुसार खेती करने से भूमि में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है|
  • खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ानें में फसल चक्र का बहुत ही अहम् योगदान होता है|
  • सघन फसल चक्र अपनाने से खेत में जीवांश की मात्रा बढ़नें के साथ ही खरपतवार की समस्या कम होती है।
  • कृषि योग्य भूमि में जल को सोखनें की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे खेत की मिट्टी में विषाक्त पदार्थ एकत्र नहीं होते है|    
  • फसल चक्र प्रक्रिया अपनानें से मिट्टी में पनपने वाले विभिन्न प्रकार के रोग एवं कीटों पर नियंत्रण होता है।
  • क्राप रोटेशन का सबसे बड़ा लाभ यह है, इससे मिट्टी की संरचना में सुधार होता है।
  • खेत में अधिक सिंचाई नहीं करनी पड़ती है|

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