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मृदा (Soil) से संबंधित जानकारी
mitti kitne prakar ki hoti hai: हमारे देश में मिट्टी का अत्याधिक महत्व है, क्योंकि मिट्टी के बिना कोई भी काम करना सम्भव नहीं है | मिट्टी के बिना आप किसी भी इमारत को नही तैयार कर सकते है । इसके अलावा जब बात आ जाएँ खेती की तो मिट्टी की महत्वता और भी अधिक बढ़ जाती है, जिसमें किसानों द्वारा फसलो को तैयार किया जाता है | कहा जाये तो मिट्टी हमारे जीवन का एक अत्यंत महवपूर्ण हिस्सा है, जिसके बिना जीवन जीना असम्भव माना जाता है |
लेकिन भारत में मिट्टी के कई प्रकार होती है, सभी मिट्टी पर फसल को नहीं उगाया जा सकता है। इसलिये यदि आपको मिट्टी के बारे अधिक जानकारी नही प्राप्त है, और आप मिट्टी की जानकारी प्राप्त करके अच्छी खेती करके लाभ कमाना चाहते है तो यहाँ पर आपको भारत में कितने प्रकार की मृदा पाई जाती है, Types of Soil in India (Hindi) इसके बारे में पूरी जानकारी प्रदान करने जा रहे है ।
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मृदा किसे कहते है ?
पृथ्वी के ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को ‘मृदा‘ या मिट्टी कहा जाता है । यदि हम ऊपरी सतह पर से मिट्टी हटाते है, तो वहां पर प्राय: चट्टान (शैल) पाई जाती है, लेकिन कभी- कभी मिट्टी हटाने से थोड़ी गहराई पर ही चट्टान पायी जाती है ।
भारत में मृदा कितने प्रकार की पाई जाती है (Types of Soil in India in Hindi)
भारत में पाई जाने वाली मर्दों के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए |
भारत में मृदा मुख्यतः आठ प्रकार की पाई जाती है जिसकी जानकारी इस प्रकार है-
(1) जलोढ़ मिट्टी
(2) काली मिट्टी
(3) लाल एवं पीली मिट्टी
(4) लैटराइट मिट्टी
(5) शुष्क मृदा (Arid soils)
(6) लवण मृदा (Saline soils)
(7) पीटमय मृदा (Peaty soil) तथा जैव मृदा (Organic soils
(8) वन मृदा (Forest soils)
दोमट मिट्टी ऐसी मिट्टी होती है, जो मुख्य रूप से जल को अवषोषण कर देती है। 1953 में मृदा संरक्षण के लिए केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड की स्थापना की गयी थी।
सर्वप्रथम 1879 ई० में डोक शैव ने मिट्टी का वर्गीकरण करते हुए मिट्टी को सामान्य और असामान्य मिट्टी में विभाजित किया, जिसके बाद भारत की मिट्टियाँ स्थूल रूप से पाँच वर्गो में विभाजित की गई है ।
- जलोढ़ मृदा या कछार मिट्टी (Alluvial soil),
- काली मृदा या रेगुर मिट्टी (Black soil),
- लाल मृदा (Red soil),
- लैटेराइट मृदा (Laterite) तथा
- शुष्क मृदा (Arid soils)
जलोढ़ मिट्टी (दोमट मिट्टी)
भारत में सबसे अधिक क्षेत्रफल में पायी जाने वाली जलोढ़ मिट्टी होती है, जिसे दोमट मिट्टी भी कहा जाता है | जलोढ़ मिट्टी भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 43.4 प्रतिशत भाग पर पायी जाती है। इस मिट्टी का निर्माण नदियों के निक्षेपण से किया गया है, लेकिन जलोढ़ मिट्टी में नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम पायी जाती है। जिस स्थान पर जलोढ़ मिट्टी अधिक पायी जाती है, वहां पर फसल के उत्पादन के लिये यूरिया खाद डालना बहुत ही आवश्यक होता है।
जलोढ़ मिट्टी में पोटाश एवं चूना की अधिक मात्रा नही पायी जाती है। इसके साथ ही जलोढ़ मिट्टी के निक्षेपण से ही भारत में उत्तर का मैदान (गंगा का क्षेत्र) सिंध का मैदान, ब्रह्मपुत्र का मैदान गोदावरी का मैदान, कावेरी का मैदान नदिया आदि बनी हुई है| गेहूं की फसल के लिये भी जलोढ़ मिट्टी सबसे उपयोगी मानी होती है। इसके अलावा इस मिट्टी में धान एवं आलू की खेती भी की जाती है। जलोढ़ मिट्टी का निर्माण बलुई मिट्टी एवं चिकनी मिट्टी के मिलने से हुई है। जलोढ़ मिट्टी का रंग हल्का धूसर होता है।
काली मिट्टी (Black Soil)
भारत में जलोढ़ मिट्टी के बाद सबसे अधिक इस्तेमाल काली मिट्टी का किया जाता है । इसलिये क्षेत्रफल की दृष्टिकोण से देखा जाये तो भारत में काली मिट्टी का दूसरा स्थान है। काली मिट्टी का सबसे अधिक उपयोग भारत में महाराष्ट्र और दूसरे स्थान पर गुजरात राज्य में खेती के लिए किया जाता है। इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी के उदगार के कारण बैसाल्ट चट्टान के निर्माण होने से हुआ है। वहीं दक्षिण भारत में काली मिट्टी को ‘रेगूर’ (रेगूड़) के नाम से जाना जाता है। केरल में काली मिट्टी को ‘शाली’ का नाम दिया गया है और वहीँ उत्तर भारत में काली मिट्टी को ‘केवाल’ नाम से जाना जाता है।
काली मिट्टी में भी नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा अधिक नही पायी जाती है, क्योंकि इसमें लोहा, चूना, मैग्नीशियम एवं एलूमिना की मात्रा अधिक पायी जाती है। काली मिट्टी में पोटाश की मात्रा भी अधिक नही होती है । काली मिट्टी का उपयोग सबसे अधिक कपास के उत्पादन में किया जाता है। इसके साथ ही इस मिट्टी में धान की खेती भी अच्छी होती है। इसके अलावा काली मिट्टी में मसूर, चना की भी अच्छी उपज होती है।
लाल मिट्टी (Red Soil)
क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से देखा जाये तो भारत में लाल मिट्टी ने अपना तीसरा स्थान बनाकर रखा हुआ है। भारत में 5.18 लाख वर्ग किमी0 पर लाल मिट्टी का विस्तार है। वहीँ इस मिट्टी का निर्माण ग्रेनाइट चट्टान के टूटने से की गई है। लाल मिट्टी तमिलनाडु राज्य में सबसे अधिक विस्तृत है। लाल मिट्टी के नीचे अधिकांश में खनिज पाये जाते हैं।
लाल मिट्टी में भी नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा अधिक नही पायी जाती है। लाल मिट्टी में आयरन ऑक्साइड (Fe2O3) पाया जाता है, जिसकी वजह से इसका रंग लाल दिखाई देता है। लाल मिट्टी फसल के उत्पादन के लिए अच्छी नहीं होती है। इस मिट्टी में अधिकतर मोटे अनाज जैसे- ज्वार, बाजरा, मूँगफली, अरहर, मक्का, आदि की उपज की जाती है। इसके अलावा इस मिट्टी में धान की खेती भी की जाती है ।
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पीली मिट्टी
भारत के केरल राज्य में सबसे अधिक पीली मिट्टी पायी जाती है। जिस क्षेत्र में लाल मिट्टी पायी जाती है, और साथ ही में उस मिट्टी में अधिक वर्षा हो जाती है, तो अधिक वर्षा के कारण लाल मिट्टी के रासायनिक तत्व अलग हो जाते है, जिसकी वजह से उस मिट्टी का रंग पीला दिखाई देने लगता है।
लैटेराइट मिट्टी
भारत में क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से देखा जाये तो लैटेराइट मिट्टी का चौथा स्थान है। यह मिट्टी भारत में 1.26 लाख वर्ग किमी0 क्षेत्र पर फैली हुई है। लैटेराइट मिट्टी में लौह ऑक्साइड एवं एल्यूमिनियम ऑक्साइड की अधिक मात्रा पायी जाती है, लेकिन नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाष, चूना एवं कार्बनिक तत्व अधिक नही पाये जाते है। लैटेराइट मिट्टी चाय एवं कॉफी फसल के लिए सबसे उपयोगी मानी जाती है|
इसलिये भारत में लैटेराइट मिट्टी असम, कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्य में अधिक पायी जाती है। यह मिट्टी पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्र में भीं अधिक पायी जाती है। इस मिट्टी में काजू की फसल अच्छी होती है। इसमें लौह आक्साइड एवं एल्यूमिनियम ऑक्साइड की मात्रा अधिक पायी जाती है, लेकिन इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटास एवं चूना कम होता है।
पर्वतीय मिट्टी
पर्वतीय मिट्टी ऐसी मिट्टी होती है, जिसमें कंकड़ एवं पत्थर की मात्रा अधिक पायी जाती है। पर्वतीय मिट्टी में भी पोटाश, फास्फोरस एवं चूने की कमी भी पायी जाती है। पहाड़ी क्षेत्र के नागालैंड में झूम खेती सबसे अधिक की जाती है। पर्वतीय क्षेत्र में सबसे अधिक गरम मसाले की खेती होती है।
शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी
शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी ऐसी मिट्टी होती है, जिसमें घुलनशील लवण एवं फास्फोरस की मात्रा अधिक पायी जाती है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन एवं कार्बनिक तत्व की मात्रा अधिक नही होती है। यह मिट्टी तेलहन के उत्पादन के लिए अधिक उपयोगी होती है।
मरूस्थलीय मिट्टी में भी अच्छी फसल का उत्पादन किया जाता है, लेकिन इसके लिये आपके पास जल की अच्छी व्यवस्था होनी आवश्यक है। इस मिट्टी में तिलहन के अतरिक्त ज्वार, बाजरा एवं रागी की फसल की पैदावार अच्छी होती है।
लवणीय मिट्टी या क्षारीय मिट्टी
लवणीय मिट्टी को क्षारीय मिट्टी, रेह मिट्टी, उसर मिट्टी एवं कल्लर मिट्टी भी कहा जाता है। जिस क्षेत्र में जल की निकास की सुविधा नहीं पायी जाती है उस क्षेत्र में क्षारीय मिट्टीन पायी जाती है। वैसे क्षेत्र की मिट्टी में सोडियम, calcium एवं मैग्नीशियम की मात्रा अधिक पायी जाती है, जिससे वह मिट्टी क्षारीय हो जाती है। क्षारीय मिट्टी का निर्माण समुद्र तटीय मैदान में अधिक किया जाता है। इसमें नाइट्रोजन की मात्रा कम पायी जाती है।
भारत में क्षारीय मिट्टी पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान एवं केरल के तटवर्ती क्षेत्र में पायी जाती है, जिसमे नारियल की अच्छी खेती की जाती है ।
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जैविक मिट्टी (पीट मिट्टी)
जैविक मिट्टी को दलदली मिट्टी भी कहा जाता है। भारत में दलदली मिट्टी का क्षेत्र केरल, उत्तराखंड एवं पश्चिम बंगाल में उपलब्ध है। दलदली मिट्टी में भी फॉस्फोरस एवं पोटाश की अधिक मात्रा नहीं पायी जाती है, लेकिन इसमे लवण की अधिक मात्रा पायी जाती है। दलदली मिट्टी भी फसल के उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है।