कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (अनुबंध खेती) क्या होता है | Contract Farming Explained in Hindi


कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (अनुबंध खेती) से सम्बंधित जानकारी

हम सभी जानते है, कि देश में लगभग लोग कृषि कार्य करते है किसानों की खेती ज्यादातर कुदरत के भरोसे होती है|  खेतों की फसलों को कभी बारिश तो कभी सूखे की मार झेलनी पड़ती है, हमारे भारत देश में ज्यादातर छोटे किसान हैं, ये किसान अपने खेतों में फसलों के उत्पादन के दौरान अधिक आय अर्जित नहीं कर पाते है| आलम ये हो गया है, कि लोग खेती-बाड़ी छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, हालांकि खेती के घाटे को कम करने के लिए सरकार कृषि क्षेत्र के लिए बड़े स्तर पर काम कर रही है, जिससे किसानों के घाटे को कम किया जा सके|

इन्ही सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार और बड़े किसानों नें अपनी भूमि को अनुबंध अर्थात कॉन्ट्रैक्ट पर देना शुरू कर दिया| इसी कड़ी में सरकार किसानों को आधुनिक तरीके से खेती करने के लिए प्रेरित कर रही है, इसके लिए एक नया माध्यम भी बताया गया है, जिसको कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग,अनुबंध खेती (Contract farming) कहा जाता है आज हम आपको इस आर्टिकल के मध्यम से बताने जा रहे है की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग क्या है अनुबंध खेती किसे कहते है लाभ हानि पूरी जानकारी |

डाबर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसे कहते है? (What is Contract Farming)

इस कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग खेती का मतलब है, कि किसान अपनी जमीन पर ही खेती करेगा, परन्तु   वह खेती अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए होती है| इस खेती को एक कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर किया जाता है| किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसी कंपनी या व्यक्ति के साथ करता है| इस खेती में किसान द्वारा उगाई गई फसल को कॉन्ट्रैक्टर खरीदता है, और  खास बात यह है, कि किसान की उगाई गई फसल के दाम भी कॉन्ट्रैक्ट में पहले से ही तय किए जाते हैं|

इसे हम अनुबंध खेती या फिर ठेका खेती (Contract farming) भी कह सकते है और इसमें खास बात यह है कि इस खेती में किसान को कोई लागत नहीं लगानी पड़ती है| इसके अलावा खाद, बीज,सिंचाई और मजदूरी आदि का खर्च भी कॉन्ट्रैक्टर ही उठाता है. किसानों को खेती के तरीके भी कॉन्ट्रैक्टर ही बताता है|

पतंजलि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

अनुबंध खेती के प्रकार (Contract Farming Types)

जोखिमों के बंटवारे और अनुबंध की शर्तों के विनिर्देश के अनुसार कई प्रकार के अनुबंधों को प्रतिष्ठित किया जाता है। प्रबंधन के दृष्टिकोण से 2 प्रकार के अनुबंध निर्धारित किए जाते हैं, जो इस प्रकार है-

1. सीमित प्रबंधन अनुबंध- जहां एक किसान को उत्पादन इनपुट मिलता है और फर्म को उपज बेचता है। उपज की कीमत की कोई वास्तविक गारंटी नहीं है।

2. पूर्ण प्रबंधन अनुबंध- जहां किसान और फर्म ने उत्पादन की निश्चित मात्रा के लिए अनुबंध किया है। इस तरह के अनुबंध में मौसम से पहले कीमत की घोषणा की जाती है, जिससे कीमत जोखिम कम हो जाता है। फर्म उत्पाद के लिए बाजार प्रदान करती है बशर्ते कि गुणवत्ता विनिर्देशों को पूरा किया जाए।

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कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लाभ (Benefits of Contract Farming)

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग(Contract Farming) से होने वाले लाभ –

  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंगमें मूल्य पहले से ही निर्धारित होता है|
  • किसान को एक बड़ा बाजार मिल जाता है|
  • फसल की गुणवत्ता और पैदावार में काफी सुधार हो रहा है|
  • खेती करने के नए तरीके सीखने को मिलते जाते हैं|
  • किसानों को बीज, फर्टिलाइजर के फैसले में मदद मिल जाती है|
  • खेती का काम बेहतर तरीके से होता है जिससे किसान को सीखने का अवसर भी मिलता है|
  • किसानों को फसल के बेहतर भाव मिल जाते हैं|
  • किसान बाजार के उतरते-चढ़ते भाव से मुक्त हो जाता है|
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंगकृषि से क्रेता प्रतिष्ठानों को यह लाभ होता है कि कृषि उत्पाद की उपलब्धता के विषय में अनिश्चितता नहीं रह जाती है|
  • केंद्रीय और राज्य स्तर की खरीद प्रणालियों पर भार को कम करना।
  • कृषि में निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ाना ।
  • भारतीय किसानों द्वारा फसल चयन का बाजार फोकस लाना।
  • व्यक्तिगत किसान स्तर पर आय का एक स्थिर स्रोत उत्पन्न करना।
  • प्रसंस्करण और मूल्यवर्धन को बढ़ावा देना।
  • ग्रामीण समुदायों में लाभकारी रोजगार पैदा करना ।
  • किसानों का ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्रों में पलायन को कम करना।
  • नई चुनौतियों का सामना करने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों और विशेषज्ञता को एकत्रित करके सामान्य रूप से ग्रामीण आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
  • अनुबंध कृषि का उद्देश्य खेत-उत्पादक और कृषि-प्रसंस्करण दोनों फर्मों के लिए लाभ प्रदान करना है।

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कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नुकसान (Contract Farming Disadvantages)

जैसा कि हम जानते है, किसान अपने आंदोलन में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का विरोध जता रहे हैं तो उसमें जरूर कुछ खामियां भी होंगी| ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसानों के लिए क्या नुकसान पहुंचा सकती है। आपको बता दें की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों पर बड़े व्यापारियों का एकाधिकार बढ़ सकता है ओर  इसके अलावा बड़े खरीदारों द्वारा कम कीमत देकर भी किसानों का शोषण किया जा सकता है।

आपको यह भी बता दें कि भारत देश में 60 से 70 % किसानों के पास बहुत छोटे भूखंड है, जिससे उनको बड़े व्यापारी के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करने में काफी समस्या का सामना करना पड़ सकता है ऐसे में देश भर के किसान कांट्रैक्ट फार्मिंग का विरोध जता रहे हैं। जहां किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का विरोध जता रहे हैं वही कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कई मायनों में किसानों के लिए फायदेमंद भी हो सकती है।

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अनुबंध खेती में चुनौतियां (Contract Farming Challenges)

अनुबंध खेती में किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों का विवरण इस प्रकार है-

  • छोटे किसानों की कमजोर सौदेबाजी की शक्ति का शोषण करते हुए फर्मों या बड़े किसानों के पक्षपाती पक्ष के लिए अनुबंध कृषि व्यवस्था की आलोचना की जाती है।
  • कारखानों में देरी से डिलीवरी, देर से भुगतान, कम कीमत और अनुबंधित फसल पर कीटों के हमले से उत्पादन पर अनुचित गुणवत्ता में कटौती से उत्पादन लागत में वृद्धि होती है।
  • अनुबंध समझौते अक्सर मौखिक या अनौपचारिक होते हैं और लिखित अनुबंध अक्सर भारत में कानूनी सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं। संविदात्मक प्रावधान के अपर्याप्त प्रवर्तन के परिणामस्वरूप किसी भी पक्ष द्वारा प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन होता है।
  • एकल खरीदार – एकाधिक विक्रेता (मोनोप्सनी)

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नीति समर्थन (Policy Support)

कृषि विपणन (Agricultural Marketing) राज्यों के कृषि उत्पाद विपणन विनियमन (APMR) अधिनियमों द्वारा अधिकृत है। खेती के अभ्यास को विनियमित और विकसित करने के लिए सरकार अनुबंध कृषि प्रायोजकों के पंजीकरण की एक प्रणाली प्रदान करने के लिए उनके कृषि विपणन कानूनों में सुधार करने के लिए उनके समझौते को रिकॉर्ड करने और अनुबंध खेती को बढ़ावा देने के लिए उचित विवाद निपटान तंत्र प्रदान करने के लिए राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों की सहायता कर रही है।

देश भर में APMR को 21 राज्यों अर्थात् आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा, पंजाब (अलग अधिनियम), राजस्थान द्वारा संशोधित किया गया है।  सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा और उत्तराखंड, जिनमें से केवल 13 राज्यों ने प्रावधान को लागू करने के लिए नियमों को अधिसूचित किया है।

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अनुबंध खेती के लिए कृषि उत्पाद (Contract Farming Agricultural Products)

अनुबंध खेती के अंतर्गत विभिन्न कृषि उत्पाद हैं, जिनमें टमाटर का गूदा, जैविक रंग, बासमती चावल, मुर्गी पालन, लुगदी, मशरूम, खाद्य तेल, विदेशी सब्जियां, डेयरी प्रसंस्करण, बेबी कॉर्न की खेती, औषधीय पौधे, चिप्स बनाने के लिए आलू शामिल हैं।

किसान और कॉन्ट्रैक्टर के लिए जरूरी जानकारी (Important Information For Farmer and Contractor)

  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (अनुबंध खेती) में दोनों पक्षों के बीच ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होना चाहिए|
  • दोनों पक्षों में कोई भी जानकारी, नियम या शर्त छिपी नहीं होनी चाहिए|
  • किसान और कंपनी या व्यक्ति के बीच पारदर्शिता होनी चाहिए|

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