सब्जी की खेती कैसे करें | Vegetable Farming in Hindi | सब्जी की जैविक खेती का तरीका


सब्जी की खेती करने का तरीका से सम्बंधित जानकारी

वर्तमान समय में देश में बड़े क्षेत्रफल पर सब्जियों की खेती उगाई जाती है| अगर आप भी सब्जियों की खेती आधुनिक और उन्नत खेती को करना चाहते है, तो आप उसमे अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं| आपको यह जानना भी ज़रूरी है कि जनवरी व फरवरी महीने में आप सब्जियों की उन्नत किस्में लगा सकते हैं, जिससे मार्च और अप्रैल महीने तक अच्छा उत्पादन लिया जा सके, अच्छी पैदावार लेने के लिए बढ़िया पौधों के साथ-साथ उनकी उन्नत फसल का उत्पादन होना बहुत ज़रूरी है|

हर सब्जी के लिए पनीरी तैयार करने की कोई ज़रूरत नहीं होती है पर मिर्च, गोभी, बैंगन, टमाटर, प्याज़ आदि की नर्सरी तैयार किये बिना बढ़िया और मुनाफे वाली खेती नहीं की जा सकती है| पनीरी लगाने से नर्सरी में पौधों की जड़ों का बहुत अच्छा विकास होता है जिससे वह पौष्टिक तत्वों को अच्छी तरह ग्रहण कर लेती है और बढ़िया पैदावार का मुख्य कारण बन जाती है| तो आइए जानते हैं कम खर्च में सब्जियों की उन्नत खेती कैसे करें| आज हम आपको इस आर्टिकल के मध्यम से खेती कैसे करे खेती से जुड़ी सारी जानकारी देने जा रहे है|

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सब्जी की खेती कैसे करें (How to Cultivate Vegetables)

जैसा की आप सब जानते है, कि हमारे रोजमर्रा के जीवन में साग-सब्जियों का  महत्वपूर्ण स्थान है| विशेषकर शाकाहारियों के जीवन में स्थान है| साग-सब्जी भोजन में ऐसे पोषक तत्वों के स्रोत हैं, जो हमारे स्वास्थ्य को ही नहीं बढ़ाते, बल्कि उसके साथ  स्वाद को भी बढ़ाते हैं| सब्जी की खेती करने के लिए सबसे पहले आपको 30-40 सेंटीमीटर की गहराई तक कुदाली या हल की सहायता से या फावड़ा कि माद्दत से जुताई करनी होगी, और उसके बाद  खेत से पत्थर, झाड़ियों एवं बेकार के खर-पतवार को हटा देने होंगे|

खेत में अच्छे तरीके से निर्मित 100 किलोग्राम कृमि खाद चारों ओर फैला दे| आवश्यकता के अनुसार 45 सेंटीमीटर या 60 सेंमी की दूरी पर मेड़ या क्यारी बना दे| उसके बाद बुआई की जाने वाली सब्जी जैसे – भिंडी, बीन एवं लोबिया आदि की बुआई मेड़ या क्यारी बनाकर की जा सकती है। दो पौधे लगभग 30 सेमी. की दूरी पर लगाई जानी चाहिए| और पुदीना ,प्याज एवं धनिया को खेत के मेड़ पर उगाया जा सकता है| प्रतिरोपित फसल, जैसे – टमाटर, बैगन और मिर्ची आदि को एक महीना पूर्व में नर्सरी बेड या मटके भी में उगाया जा सकता है|

  • बुआई के बाद मिट्टी से ढंककर उसके ऊपर 250 ग्राम नीम के फली का पाउडर बनाकर छिड़काव किया जाता है ताकि हम इसे चीटियों से बचा सके| टमाटर के लिए 30 दिनों की बुआई के बाद तथा बैगन, मिर्ची तथा बड़ी प्याज के लिए 40-45 दिनों के बाद पौधे को नर्सरी से निकाल दिया जाता है| टमाटर, बैगन और मिर्ची को 30-45 सेंमी की दूरी पर मेड़ या उससे सटाकर रोपाई की जाती है। प्याज के लिए मेड़ के दोनों ओर लगभग 10 सेमी. की जगह छोड़नी पड़ती है| रोपण के तीसरे दिन पौधों की अच्छे से सिंचाई की जाती है| प्रारंभिक अवस्था में इस प्रतिरोपण को 2  दिनों में  1 दिन बाद पानी दिया जाता है, तथा बाद में 4  दिनों के बाद पानी दिया जाता है|
  • सब्जी बगीचा का मुख्य उद्देश्य जायदा से जायदा लाभ प्राप्त करना है तथा वर्षभर घरेलू साग-सब्जी की आवश्यकता की पूर्ति भी करना है| कुछ तकनीको को अपनाते हुए इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है| बगीचा के एक छोर पर 12 महीने पौधों को उगाएं तथा इससे इनकी छाया अन्य फसलों पर न पड़े और  अन्य साग-सब्जी फसलों को पोषण दी जा सकें| बगीचा के चारों और तथा आने-जाने के रास्ते का उपयोग विभिन्न अल्पाविध हरी साग-सब्जी जैसे – मेथी, धनिया, पालक, पुदीना आदि उगाने के लिए किया जा सकता है|

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सब्जी की जैविक खेती का तरीका (Method of Organic Farming of Vegetables)

आपको बता दे की बिना रसायन वाली प्राकृतिक खेती ही जैविक खेती होती है| इसमें गोबर खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु का खाद, फसल चक्र, फसल अवशेष और प्रकृति में मिलने वाले खनिज पदार्थों द्वारा पौधों को पोषक तत्वों प्रदान किये जाते हैं| जैविक खेती में रोग व कीट प्रबंधन के लिए प्रकृति में मौजूद मित्र कीटों, जीवाणुओं, जैव एजेंट और जैविक कीटनाशकों का प्रयोग भी किया जाता है|

इस खेती में रसायनों का प्रयोग नहीं होने से जैविक खेती का कम (rate) मूल्य होता है और इससे निकलने वाले जैविक उत्पादों का मंडी भाव भी बहुत ज्यादा होता है| जैविक सब्जी की खेती करते वक्त अक्सर ये प्रश्न रहता है कि पौधों को समय-समय पर पोषक तत्वों, खाद-पानी, और कीटनाशक वगैरह की आवश्यकता पड़ती है, तो इन सब चीजों को कैसे दिया जाए।

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सब्जियों की जैविक खेती और कीटनाशक से लाभ (Organic farming Of Vegetables & Benefits From Pesticides)

सब्जियों की जैविक खेती, हमारे भारत देश में हरित क्रांति के अंतर्गत सिंचाई के संसाधनों के विकास, उन्नतिशील किस्मों और रासायनिक उर्वरकों एवं कृषि-रक्षा-रसायनों के उपयोग से फसलों के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई| परन्तु कुछ समय बीतने के साथ फसलों की उत्पादकता में गिरावट आने लगी है| इसका प्रमुख कारण यह भी की भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रास होना | रासायनिक उर्वरकों के असन्तुलित प्रयोग और जैविक खादों के नगण्य उपयोग के कारण भूमि में गौण तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने से न केवल फसलों की पैदावार में गिरावट आयी है, बल्कि विभिन्न कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में भी बहुत प्रभाव पड़ा है|

यह समस्या अधिकतर सब्जियों की खेती में पायी गई है, क्योंकि इनमें अन्य फसलों की तुलना में रासायनिक उर्वरकों और कृषि-रक्षा-रसायनों के ज्यादा से ज्यादा प्रयोग से वातावरन  प्रदूषण की समस्या भी बढ़ती जा रही है|जिसके कारण मनुष्यों और पशुओं में तरह-तरह की भयानक बीमारी पनपने लगी हैं| इन सभी परिस्थितियों में सब्जियों की जैविक खेती को अपनाकर न केवल गिरते हुए मिट्टी स्वास्थ्य और वातावरणीय प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सकता है, और मनुष्य की पोषण सुरक्षा को भी सुनिश्चित की जा सकती है|

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जैविक सब्जी खेती का महत्व (Organic Farming Importance)

जैविक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियों की फसलें कम उपज देती हैं। हालांकि इसकी पोषक गुणवत्ता और भंडारण विशेषताओं के कारण पारंपरिक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियों की तुलना में इनका महत्व अच्छा है। ऑर्गेनोलेप्टिक अध्ययनों से पता चला है, कि टमाटर और आलू जैसी सब्जियों को ऑर्गेनिक तरीके से उगाने पर उनका स्वाद बेहतर होता है। इसी तरह पारंपरिक रूप से उगाए गए फलों की तुलना में फलों का स्वाद, बनावट और जूस बेहतर था। इसी तरह जैविक रूप से उगाई जाने वाली भिंडी और गाजर में पारंपरिक रूप से उगाए गए स्वाद और चीनी की मात्रा जैसी बेहतर गुणवत्ता वाली विशेषताएं पाई गईं।

अत्यधिक नाइट्रेट का सेवन मानव स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। पत्तेदार सब्जियां, विशेष रूप से, जड़ वाली सब्जियों और आलू के बाद अधिक नाइट्रेट जमा करती हैं। अध्ययनों ने पुष्टि की है कि पारंपरिक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियों की तुलना में आलू, गाजर, पत्ता गोभी, चुकंदर, अजवाइन, लीक, अजमोद और लेट्यूस जैसी जैविक रूप से उत्पादित सब्जियों में नाइट्रेट का स्तर कम होता है और विटामिन सी की मात्रा अधिक होती है। 

इसी तरह अध्ययनों में यह पाया गया है, कि जैविक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियां गाजर, आलू, पालक, बैंगन, सलाद पत्ता और गोभी जैसी सब्जियों में कुल शर्करा, खनिजों जैसे फास्फोरस और मैग्नीशियम और फेनोलिक यौगिकों की उच्च मात्रा जमा करती हैं। मीठी मिर्च और बैगन जैसी जैविक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियों में उच्च स्तर के फेनोलिक यौगिक, पेरोक्सीडेज और कैप्सिडोल गतिविधि होती है, जो रोगों के प्रतिरोध की पेशकश करती है।

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जैविक सब्जी उत्पादन की स्थिति (Organic Vegetable Production Status)

पिछले कुछ दशकों के दौरान खाद्य सुरक्षा पर चिंता बढ़ रही है, जो बदले में जैविक खेती जैसी वैकल्पिक उत्पादन प्रणालियों पर किसानों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं का ध्यान आकर्षित कर रही है। बाजार की जरूरतों के जवाब में दुनिया भर में जैविक खेती सालाना 30% की दर से बढ़ने का अनुमान है । प्रमाणित जैविक उत्पादों, विशेष रूप से सब्जियों की मांग वर्तमान में आपूर्ति से अधिक है, इस प्रकार प्रीमियम बाजार मूल्य मिल रहा है।

विश्व स्तर पर कृषि उत्पादन प्रणाली तेजी से परिवर्तन के दौर से गुजर रही है क्योंकि स्वस्थ और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित भोजन की मांग में वृद्धि हुई है। बढ़ती उपभोक्ता मांगों को पूरा करने के लिए उत्पादकों का एक बड़ा हिस्सा अब जैविक उत्पादन प्रथाओं में स्थानांतरित हो रहा है। मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणुओं को बढ़ाकर मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में जैविक खेती की महत्वपूर्ण भूमिका है। इससे उपज, पौधों की संरचना के साथ-साथ पोषण गुणवत्ता में काफी वृद्धि हो सकती है।

मिट्टी की उर्वरता की स्थिति को बढ़ाने के अलावा, जैविक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियों की पोषण गुणवत्ता को प्रशंसनीय पाया गया है। जैविक रूप से उगाए जाने पर गाजर, चुकंदर, सलाद, केल, लीक, शलजम, प्याज, अजवाइन और टमाटर जैसी सब्जियों की फसलों में लौह और मैग्नीशियम के उच्च स्तर दर्ज किए गए थे । विटामिन सी अपने उच्च एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण दैनिक अनुशंसित आहार में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसलिए, कई शोध प्रयोगों का ध्यान जैविक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियों में विटामिन सी की मात्रा पर रहा है।

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