मसालों की खेती कैसे करें | Spice Farming in Hindi (लागत व मुनाफा)


मसालों की खेती से सम्बंधित जानकारी

प्रदेश के किसान अब मसाला खेती की और अधिक ध्यान दे रहे है | राज्यों में बाजार हो जाने के कारण किसान भाइयो को फसल बेचने में किसी तरह की दिक्कत नहीं होती है | इसके अलावा मसाला खेती का विस्तार होने से जिलों में संबंधित उधोग भी खुलने लगे है | केंद्र सरकार और राज्य सरकारें मसाला खेती को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाओ की स्थापना कर रही है | राजस्थान राज्य को मेथी, धनिया, अजवाइन के उत्पादन के लिए अग्रणी माना गया है | इसके साथ ही जीरे की खेती भी बड़ी मात्रा में की जाती है | राज्य के ऐसे स्थान जहा पर निर्जन मरुस्थलीय क्षेत्र और विषम स्थिति वाली जलवायु है, वहां पर मसाला खेती को उत्पादित किया जा रहा है |

कम लागत में अच्छी पैदावार के साथ बाज़ारो से अच्छी आय भी मिल रही है | देश में राजस्थान और गुजरात राज्य को बीज वाले मसाले का कटोरा भी कहा जाता है | भारत पूरी दुनिया में बीज मसाला उत्पादक और उपभोक्ता देश है | विश्व में करीब 60 फीसदी मसाले की आपूर्ति भारत से ही की जाती है | भारत में प्रति वर्ष तक़रीबन 12.50 लाख हैक्टेयर के क्षेत्रफल में मसाले की खेती होती है, जिसमे से लगभग 10.5 लाख टन मसाला फसल का उत्पादन मिल जाता है | इसमें से 10 लाख हेक्टेयर का क्षेत्रफल सिर्फ जीरे और धनिये की फसल का है | आज कल लोग अपनी फ़ूड हैबिट्स में बदलाव कर स्वाद वाले चटखारेदार खाने को पसंद करने लगे है|

मसाला मुख्य रूप से वनस्पति उत्पाद का मिश्रण होता है, जो खाद्य पदार्थो में सुगंध एवं स्वाद उत्पन्न करने का कार्य करता है| इसके अलावा मसाले का उपयोग कई तरह की बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए भी किया जाता है| केंद्र व् राज्य सरकार मसाला फसल की खेती पर अनुदान भी दे रही है, जिस वजह से लोगो को अच्छा मुनाफा भी हो रहा है| इस लेख में आपको मसालों की खेती कैसे करें तथा Spice Farming in Hindi (लागत व मुनाफा) के बारे में बताने जा रहे है |

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मसाला फसलों के लिए अनुदान (Spice Crops Subsidy)

जैसलमेर, जीरा नागौर, जोधपुर, अजमेर, पाली, बाड़मेर जैसे जिलों में मसाला खेती के लिए प्रति हेक्टेयर रूपए के हिसाब से अधिकतम अनुदान दिया जा रहा है | इसके अलावा राज्य सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत मसाले की खेती करने के लिए संबंधित उधोग इकाई, छंटाई ग्रेडिंग, भंडार गृह बनाने, कोल्ड स्टोरेज, शर्टिंग के लिए अनुदान दे रही है | किसानो को मसाला फसल का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है | राजस्थान राज्य में अजवाइन, धनिया, जीरा, मैथी सहित अन्य मसाला फसलों का निर्यात बड़े स्तर पर किया जाता है |

मसाला फसल की उन्नत किस्में (Spice Crop Improved Varieties)

राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र, के निदेशक के अनुसार भारतीय मसाला बोर्ड सहित अन्य संस्थानों ने मसाला फसल की खेती करने के लिए नए तरीको का इजाद किया जा रहा है, और नईं किस्म के बीज भी तैयार किए गए है | ताकि कम समय में अच्छी गुणवत्ता वाली मसाला फसल का उत्पादन किया जा सके | कृषि वैज्ञानिको ने मिलकर अजवाइन की कई उन्नत किस्में तैयार की है, जिन्हे तैयार होने में 135 से 140 दिन का समय लग जाता है | मैथी-3 क़िस्म 180 दिन में तैयार हो जाती है |

पुदीने की फसल (Mint Harvest)

पुदीना भी एक मसाला फसल है | इसे मिंट के नाम से भी लोकप्रियता हासिल है | इसके पौधे से प्राप्त पत्तो का इस्तेमाल चटनी, रायता, सलाद, सूप व उबली अवन में डिश को तैयार किया जाता है | गर्मी के मौसम में पौधे की जड़े व टहनिया दूर-दूर तक फ़ैल जाती है| बारिश के मौसम में अधिक पानी से पुदीने की फसल को हानि हो सकती है | शीत ऋतु के मौसम में पुदीने का पौधा अक्सर सूखने की स्थिति में आ जाता है, किन्तु यदि आप पुदीने के पौधे को ऐसे स्थान पर लगाते है, जहा पर ओस की बूंदे गिरती रहती है, वहां पर पौधा नहीं सूखता है |

हरा धनिया फसल (Green Coriander Crop)

धनिये का पौधा ठंडियों के मौसम में तेजी से पनपता है | इस बात का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते है, कि ठंडियों में धनिया के बढ़ते इस्तेमाल से धनिये को सहज लगाया जाता है | अंग्रेजी भाषा में धनिये को ‘कोरिएंडर’ कहते है | भोजन में धनिया के नरम पत्तो को चटनी, सूप, सब्जी और सलाद को स्वादिष्ट बनाने के लिए करते है | अगर धनिया के ऊपर लगे नरम पत्तो को ऊपर से काट दे तो पौधा तेजी से पनपता है | गर्मी के मौसम में धनिये को छायादार जगह पर ऊगा सकते है |

हरा प्याज फसल (Green Onion Crop)

प्याज के नर्म और डंठलनुमा वाले हरे पत्तो को स्प्रिंग अनियन कहते है, जिसे सूप, सलाद, सब्जी, चटनी बनाने के लिए प्रयोग करते है, यह स्वाद और सुगंध दोनों ही मामलो में लोकप्रिय है | प्याज के पौधों की बुवाई आप क्यारियों या गमलो में भी कर सकते है | आप इसके ऊपर लगे हरे पत्तो को काटकर उपयोग में ला सकते है | कुछ लोग जड़ वाले सफ़ेद नर्म भाग को उपयोग में लाते है, जिसे कच्चे से रूप में सूप व सब्जी के लिए इस्तेमाल करते है | हरा प्याज अच्छी तरह से ग्रोथ करता है, बस इसे अच्छी धूप मिलनी चाहिए |

लीक फसल (Leek Harvest)

लीक का इस्तेमाल सूप में काफी किया जाता है | लीक प्याज की ही एक प्रजाति है | इसके पत्ते चपटे और प्याज की तरह कंद की तरह न होकर ऊपर की ओर लंबा व सफ़ेद होता है | इसकी मोटाई व लंबाई को काफी पसंद किया जाता है | लीक की मोटाई दो से ढाई सेंटीमीटर हो जाने पर उसे तोड़ लिया जाता है | लीक को तैयार होने में 20 दिन तक का समय लग जाता है, इसकी पौध को गमले व क्यारियों में तैयार कर सकते है |

पार्सले फसल (Parsley Harvest)

पार्सले की फसल बीज द्वारा तैयार की जाती है, जिसमे बीजो को अंकुरित होने में समय लगता है | इसलिए इन्हे रातभर के लिए भिगो दे ताकि अंकुरण में सहायता मिले | पार्सले को विटामिन डी व सी का अच्छा स्त्रोत कहा जाता है, जिस वजह से यह स्वास्थ के लिए भी फायदेमंद होता है | पार्सले का पौधा तीन से चार पत्ती वाला होता है, जो काई की तरह फैलाव करता है | इसकी एक क़िस्म शलजम जैसी भी होती है | इस पौधे को थोड़ी सी छायादार जगह गमलो या क्यारियों में भी उगाया जा सकता है | पार्सले की फसल को तैयार होने में 90 से 100 दिन का समय लग जाता है, जिसमे इसके नर्म पत्ते हरे धनिये की तरह इस्तेमाल किए जाते है |

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सेलरी मसाला फसल (Celery Spice Crop)

सेलरी को अजवायन भी कहते है, यह भारतीय भोजन में काफी लोकप्रिय है | इसका पत्ता अधिक सुगंध व स्वाद वाला होता है | सब्जी, सूप, गोश्त, सलाद व सभी डिशेज में इसका प्रयोग करते है | इस फसल को भी बीज बोकर तैयार कर सकते है, तथा इन्हे भी गमलो में लगाया जाता है | इसका पौधा भी छाया व धूप में विकसित हो जाता है |

मैथी पत्ता मसाला फसल (Fenugreek Leaf Spice Crop)

मैथी को अंग्रेजी भाषा में फेनुग्रीक कहते है | यह अपने सुगंधित पत्तो के लिए मशहूर मसाला फसल है | भारतीय भोजन में मैथी का उपयोग दाल, पकोड़े, सब्जी और पराठो को बनाने में करते है | इसकी हरी व सूखी पत्तियों को भी इसी इस्तेमाल में लाया जाता है | गमलो व क्यारियों में बीजो को बोकर इसके पौधे तैयार कर ले और नर्म पौधों को कैंची या चाकू की सहायता से काटकर उपयोग में लाए | कसूरी मैथी अपनी सुगंध व नर्म पत्तो के लिए काफी प्रसिद्ध है | ठंडियों के मौसम में सबसे पहले पत्तियों को धोकर कपड़े से सुखाए, फिर अख़बार या बड़े कागज के बीच में रखकर और चारो और से ढककर धूप में सुखाए ताकि मैथी का रंग व सुगंध बनी रहे |

मीठा नीम मसाला फसल (Sweet Neem Spice Crop)

दक्षिण भारतीय भोजन में मीठी नीम का उपयोग काफी अधिक किया जाता है | एक झाड़ीनुमा पौधा होता है, जिसके पत्तो को उपयोग में लाते है | दाल, चटनी, सब्जी और रायता को बनाने में इसके पत्तो का छौंका लगाया जाता है |

लहसुन मसाला फसल (Garlic Spice Crop)

लहसुन को गार्लिक के नाम से जानते है, यह एक कंद वाला प्रसिद्ध पौधा है, जिसकी कलियों को सुखाकर उपयोग में लाते है | इसके ताजे पत्तो को चटनी, सूप, सब्जी व दाल में डालते है | यह अत्यंत गुणकारी पौधा होता है | अगर इसे टमाटर या गोभी की क्यारी में मुंडेर पर लगाए तो यह प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में कार्य करता है | सब्जियों की क्यारियों की मुंडेर पर लहसुन को लगाने से हरे पत्तो और तैयार कंद को प्राप्त करने के साथ ही सब्जियों को छोटे कीटो से भी बचाया जा सकता है | इसकी बुवाई के लिए लहसुन की स्वस्थ कलियों को मुंडेर पर अलग-अलग कर बो दे | लहसुन के पौधों को ज्यादा पानी नहीं देना होता है |

हल्दी की खेती (Turmeric Farming)

हल्दी भी एक बहुउपयोगी मसाला फसल है | यदि इसे व्यावसायिक रूप से उगाया जाए तो हल्दी की फसल से अच्छा मुनाफा लिया जा सकता है | भारत में हल्दी मसाला की फसल को तमिलानाडु व महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, ओडिशा, गुजरात, मेघालय, केरल, कर्नाटक, असम और पश्चिम बंगाल राज्यों में उगाया जाता है | अब इसे उत्तरप्रदेश राज्य के बाराबंकी जिले में भी उगाया जाने लगा है | आंध्रप्रदेश में हल्दी की खेती सबसे ज्यादा की जाती है | हल्दी उत्पादन के मामले 40 फीसदी का योगदान अकेले आंध्र प्रदेश का रहता है | यहाँ के कुल क्षेत्रफल के 38 से 58.5 प्रतिशत भाग में उत्पाद होता है | हल्दी की सोनिया, सुरोमा, गुन्टूर, मेघा, गौतम, रशिम, पूना, सुकर्ण, सुगंधन, रोमा और कृष्णा उन्नत किस्में है |

मसाला फसल की बुवाई (Spice Crop Sowing)

सीएसए कृषि विवि के प्रोफेसर के अनुसार मसाला फसलों को ऊसर या पथरीली भूमि को छोड़कर किसी भी तरह की भूमि में आसानी से ऊगा सकते है | मसाला फसल की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी को सर्वोत्तम माना जाता है | राज्य में बीज मसाला फसलों की बुवाई के लिए अक्टूबर से नवंबर के महीने को उपयुक्त माना गया है | खेत में उचित नमी होने पर बीज की बुवाई विशेष दूरी पर करे | बीजो की सुनिश्चित बुवाई के लिए बुवाई से पूर्व बीजो को रगड़कर दो भागो में कर ले |

मसाला फसलों में खाद, उर्वरक एवं सिंचाई (Manure, fertilizer and irrigation in spice crops)

सीएसए कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डॉ. एके दुबे बताते है, कि मसाला फसल की खेती में खेत को तैयार करते समय 20 से 25 टन गोबर या कम्पोस्ट की खाद को डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला लिया जाता है | इसके अलावा फास्फोरस, पोटाश व नाइट्रोजन की मात्रा को खेत की आखरी जुताई के समय दे | इसमें से आधी नाइट्रोजन की मात्रा को 40-45 दिन पश्चात् टॉप ड्रेसिंग के रूप में दे | रबी के सीजन में बोई गई फसल की सिंचाई को 15-20 दिन में हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है | इसके अलावा पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए बुवाई के 20-25 दिन के समय पर दो बार निराई- गुड़ाई करनी चाहिए | पहली सिंचाई के पहले गुड़ाई कर खरपतवार निकालना उपज के लिए अच्छा होता है |

मसाला फसल की सुरक्षा (Spice Crop Protection)

  • माहु :- धनिया एवं सौंफ की फसल को माहु के प्रकोप से बचाने के लिए 600 से 800 लीटर पानी में एक लीटर डाइमेथोएट को डालकर अच्छे से मिश्रण बना ले और प्रति हेक्टेयर के खेत में इसका छिड़काव करे |
  • पाउड्री मिल्ड्यू :- इस रोग से मसाला फसल को बचाने के लिए 800-1000 लीटर पानी में 3 KG सल्फेक्स की मात्रा को डालकर घोल तैयार करे और प्रति हेक्टेयर के खेत में छिड़काव करे |
  • स्टेमगाल :- धनिया की फसल में इसकी गाँठ बन जाने पर प्रति लीटर पानी में 2 GM मैकोजेब की मात्रा को डालकर घोल बनाए और उसका छिड़काव करे |
  • बिल्ट :- आरम्भ में ही मुरझा जाने वाली मसाला फसलों में इस तरह का फफूंदी रोग लगने का अधिक खतरा होता है | इसकी रोकथाम के लिए बुवाई के समय बीजो को दो ग्राम थीरम या 4 GM ट्राइकोडर्मा की मात्रा से 1KG बीजो को शोधित करे | बुवाई करने के दो सप्ताह पहले प्रति हेक्टेयर के खेत में 3.5 – 4 KG जैव रसायन को भूमि में मिलाए |

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मसाला फसल की कटाई (Spice Harvest)

धनिया के मध्य में लगे छत्रकों के पीला पड़ते ही कटाई कर ले | कलौंजी के फसल की कटाई बुवाई के 125- 140 दिन पश्चात् फलियों का रंग पीला पड़ जाने पर करे | अजवाइन की फसल 125 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है, जिसके बाद इन्हे बंडल बनाकर 2-3 दिन तक सुखाए, और फिर डंडो से पीटकर दानो को अलग कर ले |

किसानो के लिए फसल कटाई सुझाव (Farmers Harvesting Tips)

अगर आप धनिए का पाउडर बनाकर उसे बेचना चाहते है, तो बीजो का रंग भूरा पड़ने से पहले कटाई कर ले, ताकि पाउडर का रंग हरा और खुशबूदार हो | बीज का उत्पादन लेने के लिए दानो के भूरा हो जाने पर कटाई करे | अगर कटाई देर से की जाती है, तो दाने खेत में गिरने लगते है, तथा धारदार हंसिया से कटाई करने पर दाने गिरते नहीं है | कटे हुए पौधों का बंडल तैयार करे और उन्हें फिर डंडो से पीटकर दाने निकाल लें | पूरे खेत की कटाई एक साथ न करे | सूखे हुए पौधों को एक स्थान पर ही एकत्रित कर ले| बीजो को अच्छे से सुखाने के बाद भंडारित कर ले |

मसाला फसलों की खेती में लागत व मुनाफा (Spice Crops Cultivation Cost and Profit)

डॉ. अतर सिंह मीना (कृषि विभाग की उपनिदेशक) बताती है, कि राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत कोल्ड स्टोरेज के लिए सरकार अधिकतम 4 करोड़ रूपए तक का अनुदान दे रही है | मसाला फसल से संबंधित इकाई लगाने के लिए कुल लागत का 40 फीसदी तथा अधिकतम 10 लाख रूपए का अनुदान दिया जाएगा | इसके अलावा सरकार छंटाई, शर्टिंग व ग्रेडिंग के लिए 35 प्रतिशत तक का अनुदान देती है | इसकी इकाई लगाने में लगभग 50 लाख रूपए की लागत आती है, तथा पैकिंग इकाई को लगाने में 15 लाख रूपए का खर्च आ सकता है | इसमें से 40 प्रतिशत तक अनुदान सरकार देती है | मसाला फसलों की खेती में सरकार द्वारा अनुदान की राशि लागत का 40 प्रतिशत या 5500 रूपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलता है |

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत मसाला फसलों को बढ़ावा देने कृषि विभाग द्वारा खेती की लागत का 50% का अनुदान दिया जाएगा | इसके अलावा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत स्प्रिंक्लर, बूंद- बूंद सिंचाई और फव्वारा के साथ ही अन्य चीजों पर भी अनुदान दे रही है | जैविक खेती के रूप में मसाला फसलों का उत्पादन देने के लिए किसानो को अलग से अनुदान दिया जाएगा | इसके लिए सरकार लागत का 50 फीसदी या अधिकतम 10 हज़ार रूपए का अनुदान प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दिया जाएगा | कीट रोग का प्रबंधन करने के लिए कुल लागत का 30 प्रतिशत तथा 1200 रूपए का अनुदान प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दिया जाता है |

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