हल्दी की खेती कैसे करे | Turmeric Cultivation in India | हल्दी की खेती से कमाई


हल्दी की खेती (Turmeric Farming) से सम्बंधित जानकारी

हल्दी की खेती मसाला फसल के लिए की जाती है | इसके अलावा हल्दी का उपयोग कई तरह की औषधियों को तैयार करने के लिए भी करते है | इसका उत्पादन कंद के रूप में प्राप्त होता है | भारतीय हिन्दू समाज के लोग हल्दी का उपयोग धार्मिक रीति रिवाज़ो में भी करते है | शादी विवाह के माहौल में भी हल्दी की रस्मों को विशेष रूप से निभाई जाता है | हल्दी में बहुत से खास गुण पाए जाते है, जिससे यह बहुत ही काम की चीज कहलाती है | इसके कंद में कुर्कमिन होता है, तथा एलियोरोजिन को भी इससे निकाला जाता है | हल्दी में स्टार्च अधिक मात्रा में पाया जाता है |

इसके अलावा इसमें प्रोटीन, वसा, पानी, कार्बोहाइड्रेट, रेशा और खनिज लवण की भी पर्याप्त मात्रा पायी जाती है | आयुर्वेदिक उपचार में भी हल्दी को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, जिस वजह से आयुर्वेदिक दवाइयों को बनाने के लिए भी इसका उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता है | दूध के साथ हल्दी का सेवन करने से अंदरूनी चोट तेजी से ठीक हो जाती है | यदि आप भी हल्दी की खेती करना चाहते है, तो इस लेख में आपको हल्दी की खेती कैसे करे (Turmeric Cultivation in India) तथा हल्दी की खेती से कमाई के बारे में बताया जा रहा है |

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भारत में हल्दी की खेती (Turmeric Cultivation in India)

हल्दी उत्पादन के मामले में भारत को विश्व में पहला स्थान प्राप्त होने के साथ-साथ सबसे बड़ा निर्यातक भी कहा जाता है | दुनिया के नीदरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, जापान, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, सउदी अरब, जर्मनी और अमेरिका देशो में भारत से हल्दी का निर्यात किया जाता है |

भारत में हल्दी की खेती पश्चिम बंगाल, केरल, मेघालय, तमिलनाडु, ओडिशा, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य में मुख्य तौर पर की जाती है, तथा अकेले आंध्र प्रदेश में 40 प्रतिशत हल्दी का उत्पादन किया जाता है | वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश राज्य के बाराबंकी और बहराइच जिले में भी इसकी खेती की जाने लगी है |

हल्दी की खेती में मिट्टी, जलवायु एवं तापमान (Turmeric Cultivation Soil, Climate and Temperature)

हल्दी की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है | उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में हल्दी का उत्पादन अधिक मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है | इसकी खेती के लिए भूमि का P.H. मान 5.5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए | हल्दी के पौधों को गर्म और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है | किन्तु अधिक गर्म और ठंड जलवायु इसकी फसल के लिए हानिकारक होती है | इसके बीजो को आरम्भ में अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री का तापमान होना चाहिए, तथा पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है |

हल्दी की किस्में (Turmeric Varieties)

राजेन्द्र सोनिया

हल्दी की इस क़िस्म को तैयार होने में 7 से 8 महीने का समय लग जाता है | जिसमे निकलने वाला पौधा तीन फ़ीट तक लम्बा होता है, तथा कंदो का रंग 8 से 8.5 प्रतिशत तक पीला होता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 400 से 450 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

सोरमा

इस क़िस्म के पौधे बीज रोपाई के 7 माह पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देते है | जिसमे निकलने वाले कंदो में 9 प्रतिशत तक पीलापन पाया जाता है | सौरमा क़िस्म के पौधे प्रति हेक्टेयर में 350 से 400 क्विंटल का उत्पादन दे देते है |

आर.एच. 5

हल्दी की इस क़िस्म में निकलने वाले पौधों का आकार तीन फ़ीट तक लम्बा होता है, जिन्हे तैयार होने में 7 महीन तक का समय लग जाता है | इसके कंदो का रंग 7 प्रतिशत तक पीला होता है, तथा एक हेक्टेयर के खेत से 500 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त हो जाता है |

सगुना

इस क़िस्म के पौधे 7 माह पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देते है | इसके पौधे शाखाएं लिए हुए सामान्य लम्बाई के होते है | जिसमे निकलने वाले कंदो का रंग 6 प्रतिशत तक पीला होता है | इसके पौधे एक हेक्टेयर के खेत से तक़रीबन 600 क्विंटल तक का उत्पादन दे देते है |

आरएच 13/90

हल्दी की इस क़िस्म में पौधे 4 फ़ीट तक लम्बे होते है | जिन्हे तैयार होने में बीज रोपाई से 7 माह तक का समय लग जाता है | इसमें निकलने वालो कंदो में 7 प्रतिशत तक पीलापन पाया जाता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

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हल्दी के खेत की तैयारी और उवर्रक (Turmeric Field Preparation and Fertilizer)

हल्दी की फसल करने से पहले खेत को अच्छी तरह से साफ कर उसे तैयार कर ले | इसके लिए सबसे पहले खेत में पलाउ लगाकर जुताई करवा दे | जुताई के पश्चात खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है | इसके बाद खेत में 25 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में अच्छे से जुताई कर मिला दे | इसके बाद खेत में पानी लगा दे | पानी लगाने के कुछ दिन बाद जब खेत सूख जाए तब खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दे, इससे खेत में मौजूद मिट्टी के ढेले टूट जायेंगे और मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी | भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है | समतल खेत में जलभराव की समस्या नहीं देखने को मिलती है |

हल्दी के खेत में रासायनिक उवर्रक के तौर पर 100 KG नाइट्रोजन, 80 KG पोटाश, 40 KG फास्फोरस और 25 KG जिंक की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत की आखरी जुताई के समय करना होता है | इसके बाद जब बीज अंकुरित हो चुके हो उस दौरान एक बोरा एन. पी. के. की मात्रा को तीन बराबर हिस्सों में बांटकर खेत में एक हिस्से का छिड़काव खेत में करना होता है | बाकि बचे दूसरे और तीसरे हिस्से को एक माह के अंतराल में खेत में छिड़क दे |

हल्दी के बीजो की रोपाई का समय और तरीका (Turmeric Seeds Planting Method)

हल्दी के बीजो की रोपाई के लिए दो तरीको का इस्तेमाल किया जाता है | पहले तरीके में बीजो को खेत में तैयार मेड़ पर लगाना होता है | इन मेड़ो पर बीजो को 20 CM की दूरी पर लगाया जाता है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 7 से 8 क्विंटल बीज लगते है | बीज रोपाई के दूसरे तरीके में बीजो को समतल भूमि में 15 से 20 CM की दूरी पर डाल दिया जाता है, और बड़े हल की सहायता से उन्हें मिट्टी से ढक देते है | बीजो की रोपाई से पूर्व उन्हें मैंकोजेब और कार्बेन्डाजिम का घोल बनाकर उसमे 30 मिनट तक रखकर उपचारित कर ले | इसके बाद इन उपचारित बीजो को छायादार जगह में रखकर सुखा ले, और फिर बीजो की रोपाई कर दे |

इसके बीजो की रोपाई के लिए मई का महीना सबसे अच्छा माना जाता है | किन्तु यदि आप चाहे तो बीजो को जून के आरम्भ तक भी लगा सकते है | इस दौरान बारिश का मौसम होता है, और बीजो को अंकुरित होने के लिए उपयुक्त तापमान मिल जाता है |

हल्दी के पौधों की सिंचाई (Turmeric Plants Irrigation)

हल्दी के बीजो की रोपाई बारिश के मौसम में की जाती है | इसलिए इन्हे प्रारंभिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है| किन्तु समय पर बारिश न होने पर खेत में पानी जरूर लगा दे| बारिश के मौसम के पश्चात् हल्दी के पौधों की सिंचाई 25 दिन के अंतराल में की जाती है | इसकी फसल में अधिकतम 4 से 5 सिंचाई ही की जाती है |

हल्दी की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Turmeric Crop Weed Control)

हल्दी के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई – गुड़ाई की जाती है | इसकी फसल में खरपतवार को निकालना बहुत जरूरी होता है | क्योकि खर पर जन्म लेने वाले कीट फसल में कई रोग उतपन्न कर देते है | इसकी पहली गुड़ाई पौधा रोपाई के 30 दिन बाद की जाती है, तथा बाद की गुड़ाइयो को 30 से 40 दिन के अंतराल में करना होता है | हल्दी की फसल में अधिकतम 3 से 4 गुड़ाई ही करनी होती है |

हल्दी की पौध में लगने वाले रोग एवं उपचार (Turmeric Plants Diseases and Treatment)

क्रं. सं.रोगरोग के प्रकाररोग का उपचार
1.थ्रिप्सकीट15 दिन के अंतराल में कार्बाराइन या डाई मिथियोट का छिड़काव पौधों पर तीन बार करे |
2.लीफ ब्लाचकीटमैकोजेब का छिड़काव पौध पर करे |
3.प्रकंद विगलनजल भरावबीज रोपाई से पूर्व इंडोफिल एम – 45 और वेभिस्टीन के मिश्रण से बीजो को उपचारित कर ले, तथा रोग लगने पर इसी घोल का छिड़काव पौधों की जड़ो पर करे |
4.पत्ती धब्बाकीटपौधों पर ब्लाइटाक्स का छिड़काव करे |
5.तना छेदककीटट्राइजोफास की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करे |

हल्दी के फसल की खुदाई, सफाई (Turmeric Crop Digging, Cleaning)

हल्दी की फसल 7 महीने पश्चात खुदाई के लिए तैयार हो जाती है | जब इसके पौधों की पत्तिया सूखी दिखाई देने लगे उस दौरान कंदो की खुदाई कर ली जाती है | कंद निकालने से पहले खेत में पानी लगा दे | इससे कंदो को निकालने में आसानी होगी | कंदो को निकालने के पश्चात उन्हें पानी से धोकर अच्छे से साफ कर ले, और छाया में ठीक तरह से सूखा ले | सूखने के बाद उन्हें बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है |

प्रति लीटर के हिसाब से सोडियम बाइकार्बोने की 10 ग्राम की मात्रा को उबलते हुए पानी में डालकर मिला ले | उसके बाद इन कंदो को भी उसी में डाल दे, फिर उन्हें पानी से निकालकर ठीक से छायादार जगह पर सुखा ले | इससे हल्दी का रंग आकर्षक दिखाई देने लगता है |

हल्दी की खेती सेपैदावार और कमाई (Turmeric Production and Benefits)

हल्दी के एक हेक्टेयर के खेत से किस्मों के आधार पर 250 से 600 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है,जिन्हे सुखाने के बाद उत्पादन 20 से 25 प्रतिशत तक ही रह जाता है | हल्दी का बाज़ारी भाव 6 से 10 हजार रूपए प्रति क्विंटल होता है,जिससे किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत में हल्दी की एक बार की फसल से 5 लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है |

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