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यूकेलिप्टस की खेती (Eucalyptus Farming) से सम्बंधित जानकारी
यूकेलिप्टिस की खेती लकड़ी का उत्पादन प्राप्त करने के लिए की जाती है | यह ऑस्ट्रेलिया मूल का पौधा है, जो कम समय में अधिक तेजी से और सीधा फैलता है | उकेलिप्टिस को गम, सफेदा और नीलगिरि के नाम से भी जानते है | इसके पेड़ो से प्राप्त होने वाली लकड़ी का इस्तेमाल पेटियां, ईंधन, हार्ड बोर्ड वगैरह, लुगदी, फर्नीचर, पार्टिकल बोर्ड और इमारतो को बनाने में करते है | यूकेलिप्टिस के पौधों को कही भी उगाया जा सकता है, किसान भाई यूकेलिप्टिस के पौधों को खेत के किनारे भागो में उगाकरलकड़ी के रूप में ईंधन प्राप्त करते है | इसके साथ ही यदि किसान भाई यूकेलिप्टिस की खेती करते है, तो वह अपने दैनिक इस्तेमाल के अलावा दोगुनी कमाई भी कर सकते है |
भारत में सफेदा की खेती हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, बिहार, केरल, गुज़रात, पश्चमी बंगाल, गोआ, महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश राज्यों में विशेष तौर पर की जाती है | यदि आप भी यूकेलिप्टिस का उत्पादन कर अधिक मुनाफा कमाना चाहते है, तो इस लेख में आपको यूकेलिप्टस की खेती कैसे करें (Eucalyptus Farming in Hindi) तथा सफेदा का पेड़ कैसे लगाएं और यूकेलिप्टिस की कीमत कितनी होती है, के बारे में बताया जा रहा है |
युकेलिप्टस के पेड़ो के लिए उचित जलवायु, तापमान (Eucalyptus Trees Suitable Climate, Temperature)
युकेलिप्टस के पौधों को उगाने के लिए किसी खास तरह की जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है | इसे किसी भी जलवायु में उगाया जा सकता है | इसके पौधों को वर्ष में 20 से 125 CM वर्षा की जरूरत होती है | इसके पौधे गहरी परत व् 6.5 से 7.5 के मध्य P.H. मान वाली भूमि में अच्छे से विकास करते है | जल भराव वाली भूमि में भी पेड़ो को लगाया जा सकता है | युकेलिप्टस के पौधे अधिकतम 47 डिग्री और न्यूनतम 0 डिग्री तापमान पर अच्छे से विकास करते है |
युकेलिप्टस की उन्नत किस्में (Eucalyptus Improved Varieties)
सफेदा की कई उन्नत किस्में मौजूद है, जिसके पेड़ो की ऊंचाई 30 से 90 मीटर तक हो सकती है | सेंचुरियन और कोस्ट रेडवुड युकेलिप्टस की दो ऐसी प्रजातियां है, जिसके पौधे सबसे अधिक लम्बाई तक विकास करते है | किन्तु भारत में यह किस्म नहीं पायी जाती है, भारत में सफेदा की कुल 6 प्रजातियों को उगाया जाता है, जो अधिकतम 80 मीटर तक ही बढ़ते है | उन्नत किस्में इस प्रकार है :- युकेलिप्टस निटेंस, युकेलिप्टस ऑब्लिक्वा, युकेलिप्टस विमिनैलिस, युकेलिप्टस डेलीगेटेंसिस, युकेलिप्टस ग्लोब्युल्स और युकेलिप्टस डायवर्सीकलर आदि |
सफेदा की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Safeda Cultivation Land Preparation)
सफेदा के पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत में मौजूद पुरानी के अवशेषों को हटाकर ठीक तरह से साफ कर ले | इसके बाद पलाऊ लगाकर खेत की गहरी जुताई कर दे, तथा कल्टीवेटर लगाकर दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है | इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है | समतल खेत में पौध रोपाई के लिए गड्डो को तैयार किया जाता है | इसके लिए 5 फ़ीट की दूरी रखते हुए एक फ़ीट चौड़ा और गहरा गड्डा बना लिया जाता है |
यह गड्डे पंक्तियों में तैयार किये जाते है, तथा प्रत्येक पंक्ति के मध्य 5 से 6 फ़ीट की दूरी रखी जाती है | पौध रोपाई से पूर्व गड्डो को उचित मात्रा देनी होती है | खाद के रूप में गोबर की खाद के साथ 200 GM एन.पी.के. की मात्रा को मिट्टी में ठीक तरह से मिलाकर गड्डो में भर दिया जाता है, जिसके बाद गड्डो की सिंचाई कर दी जाती है | यह सभी गड्डे पौध रोपाई से 20 दिन पूर्व तैयार कर लिए जाते है |
सफेदा के पौधों की रोपाई का समय और तरीका (Safeda Plants Transplanting Time and Method)
सफेदा के पौधों की रोपाई पौध के रूप में की जाती है | इसके लिए बीजो को नर्सरी में लगाकर पौध तैयार कर ली जाती है | इसके अलावा इन पौधों को किसी रजिस्टर्ड नर्सरी से भी ख़रीदा जा सकता है | सफेदा के पौधों की रोपाई के लिए बारिश का मौसम सबसे अच्छा होता है, इस दौरान इन्हे प्रारंभिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, तथा पौधों का विकास भी अच्छे से होता है | असिंचित जगहों पर पौध रोपाई फ़रवरी के महीने में की जाती है |
पौधों को गड्डो में लगाने से पहले उन्हें गोमूत्र से उपचारित कर ले | उपचारित पौधों को तैयार गड्डो में एक छोटा सा गड्डा बनाकर लगा दिया जाता है | छोटे गड्डो को भी क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की उचित मात्रा से उपचारित कर ले | इससे पौधों को आरम्भ में जड़ गलन जैसे रोग नहीं लगते है, पौध रोपाई के पश्चात् उन्हें चारो तरफ मिट्टी से अच्छे से ढक देते है |
सफेदा के पौधे की सिंचाई (Safeda Plant Irrigation)
बारिश के मौसम में की गयी पौध रोपाई में आरम्भिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है | यदि पौध रोपाई बारिश के मौसम से पहले की गई है, तो पहली सिंचाई को पौध रोपाई के तुरंत बाद करना होता है | यूकेलिप्टस के पौधों को बारिश के मौसम में 40 से 50 दिन के अंतराल में पानी चाहिए होता है, तथा सामान्य मौसम में 50 दिन के अंतराल में पानी दे | सफेदा के पौधों के लिए एक वर्ष में 5 से 6 सिंचाई पर्याप्त होती है | ऐसे इलाको में जहा सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं होती है, वहां पर एक वर्ष में 12 सिंचाई की जाती है | ताकि पौधा ठीक से वृद्धि कर सके |
सफेदा के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Safed Plants Weed Control)
युकेलिप्टस के पौधों को आरम्भ में खरपतवार से बचाना होता है | इसके लिए खेत में निराई -गुड़ाई की जाती है | इससे पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त हो जाते है, और पौधा ठीक से विकास भी करता है | पहले वर्ष में इसके पौधों को तीन से चार गुड़ाई की जरूरत होती है, तथा बारिश के मौसम में जन्म लेने वाली खरपतवार को उखाड़कर नष्ट कर दे |
युकेलिप्टस की खेती से अतिरिक्त कमाई (Eucalyptus Cultivation Extra Income)
युकेलिप्टस के पौधों को पेड़ बनने में तक़रीबन 8 से 10 वर्ष का समय लग जाता है | जिससे किसान भाइयो को पैदावार प्राप्त करने के लिए अधिक समय तक इंतजार करना होता है | इसके पौधों की रोपाई लगभग 5 फ़ीट की दूरी पर की जाती है | खाली पड़ी भूमि में किसान भाई औषधीय या मसाला फसलों को उगाकर आर्थिक तंगी से बच सकते है | इसके साथ ही अतिरिक्त कमाई भी हो जाएगी |
युकेलिप्टस के पौधों में लगने वाले रोग एवं उपचार (Eucalyptus Plant Diseases and Treatment)
सफेदा के पौधों में बहुत ही कम रोग देखने को मिलते है, किन्तु कुछ रोग ऐसे है, जो पौधों में लगकर फसल को हानि पहुंचाते है, जिससे पेड़ की पैदावार में भी अधिक फर्क देखने को मिलता है |
झुलसा
इस किस्म का रोग सफेदा के पौधों पर गर्मियों के मौसम में देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां झुलसकर गिरने लगती है, और पौधा विकास करना बंद कर देता है | सफेदा के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बाविस्टीन या इंडोफिल एम 45 की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करे |
दीमक
सफेदा के पौधों पर यह रोग दीमक के रूप में आक्रमण करता है, जो किसी भी अवस्था में देखने को मिल सकता है | दीमक रोग पौधों की शाखाओ और पत्तियों पर आक्रमण कर उन्हें खा जाता है, जिससे पौधा मुरझाने लगता है, और कुछ समय पश्चात् ही पौधा पूरी तरह से सूख कर नष्ट हो जाता है | इस रोग की रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफॉस की उचित मात्रा का छिड़काव सफेदा के पौधों की जड़ो पर करे |
पिंक रोग
इस क़िस्म का रोग पौधों पर गर्मियों के मौसम में देखने को मिलता है| इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियों पर उभरे हुए पीले रंग के चित्ते दिखाई देने लगते है, जो धीरे – धीरे फैलकर पूरी पत्ती को ख़राब कर देते है| जिसके बाद शाखाएं भी नष्ट होने लगती है | इस रोग से बचाव के लिए बोर्डो मिश्रण की उचित मात्रा का छिड़काव गर्मियों के मौसम में दो बार पौधों पर करे |
युकेलिप्टस के पेड़ो की कटाई (Eucalyptus Tree Cutting)
युकेलिप्टस के पौधों को तैयार होने में 8 से 10 वर्ष का समय लग जाता है | नवंबर से फ़रवरी के मध्य सफेदा के पेड़ो की कटाई करना अच्छा माना जाता है | इसके अलावा बारिश के मौसम में भी पेड़ो की कटाई कर सकते है | इसके पेड़ो की कटाई तीन चरणों में की जा सकती है | यदि आप पेड़ की कटाई बल्लिया और ईंधन बनाने के लिए करना चाहते है, तो 4 से 5 वर्ष पुराने पेड़ को काट सकते है | इसके अलावा कागज के लिए लुगदी तैयार करना हो तो 8 वर्ष पुराने पेड़ की कटाई करनी होती है, और अगर आप लकड़ी का इस्तेमाल फर्नीचर बनाने के लिए करना चाहते है, तो पेड़ो की कटाई 10 से 12 वर्ष बाद की जाती है |
युकेलिप्टस की कीमत और पैदावार (Eucalyptus Price and Yield)
युकेलिप्टस के पौधों को पूर्ण रूप से तैयार होकर पेड़ बनने में 10 से 12 वर्ष का समय लग जाता है | इसका बाज़ारी भाव थोक के रूप में 200 रूपए से लेकर 600 रूपए प्रति क्विंटल होता है | इसका एक पेड़ का वजन 400 KG के आसपास होता है, तथा एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन एक से डेढ़ हज़ार पेड़ो को आसानी से ऊगा सकते है | किसान भाई युकेलिप्टस की एक बार की पैदावार से 16 से 20 लाख तक की कमाई कर अधिक लाभ कमा सकते है |