कटहल की खेती कैसे होती है | कटहल का पेड़ कैसे लगाया जाता है | Jackfruit Farming in Hindi


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कटहल की खेती (Jackfruit Farming) से सम्बंधित जानकारी

भारत में कटहल की फसल को बड़े पैमाने पर उगाया जाता है | इसे विश्व का सबसे बड़ा फल भी कहते है | इसका पूर्ण विकसित पौधा कई वर्षो तक पैदावार देता है | इसके पके हुए फल को ऐसे भी खाया जा सकता है, किन्तु विशेषकर इसे सब्जी के रूप में खाने के लिए इस्तेमाल में लाते है | इसलिए इसे फल और सब्जी दोनों ही कह सकते है | कटहल की ऊपरी परत पर छोटे-छोटे काटे लगे होते है | कटहल में कई तरह के पोषक तत्व भी पाए जाते है, जैसे :- आयरन, कैल्शियम, विटामिन ए, सी, और पौटेशियम बड़ी मात्रा में उपलब्ध होता है, जो कि मानव शरीर के लिए लाभदायक भी है |

कटहल को खाने के बाद एक बात का विशेष ध्यान रखना होता है, कि उसके बाद कभी भी पान न खाये, क्योकि इससे पेट के मोटा होने कि समस्या हो सकती है | एक वर्ष में कटहल के पोधो से दो बार फलो को प्राप्त किया जा सकता है, जिससे किसान भाई कटहल की खेती कर अच्छी कमाई भी कर सकते है | इस पोस्ट में आपको कटहल की खेती कैसे होती है ( Jackfruit Farming in Hindi ) तथा कटहल का पेड़ कैसे लगाया जाता है, इससे जुड़ी जानकारी दी जा रही है |

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कटहल की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Jackfruit Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)

कटहल कि खेती को सभी तरह की भूमि में कर सकते है, किन्तु बलुई दोमट मिट्टी को इसकी फसल के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है | इसके अलावा इस बात का विशेष ध्यान रखे की भूमि जल-भराव वाली न हो | इसके खेती में भूमि का P.H. मान 7 के आस-पास होना चाहिए|

कटहल की फसल के लिए गर्म और आद्र जलवायु को काफी उपयुक्त माना जाता है | इसके पौधे अधिक गर्मी और वर्षा के मौसम में आसानी से वृद्धि कर लेते है, किन्तु ठण्ड में गिरने वाला पाला इसकी फसल के लिए हानिकारक होता है | इसके साथ ही 10 डिग्री से नीचे का तापमान पौधों की वृद्धि के लिए हानिकारक होता है |

कटहल की उन्नत किस्में (Jackfruit Improved Varieties)

स्वर्ण मनोहर क़िस्म

इस क़िस्म के पौधों की लम्बाई बहुत कम पाई जाती है | इसका 15 वर्ष पुराना पौधा भी अधिकतम 5 मीटर तक ही लम्बा हो पाता है,किन्तु इसके पौधो पर लगने वाले फलो की मात्रा अधिक पाई जाती है | इसके पूर्ण विकसित पौधों से सब्जी लायक फलो को 20 से 25 दिनों में प्राप्त किया जा सकता है | इसके अलावा पके हुए फलो को प्राप्त करने के लिए 2 महीने का समय लग सकता है | पके हुए फलो का वजन तक़रीबन 15 से 20 KG तक का होता है | कटहल के एक पूर्ण विकसित पौधे से 300 से 500 KG की पैदावार प्राप्त की जा सकती है|

सिंगापुरी किस्म

सिंगापुरी किस्म के पौधों को पके हुए फलो के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है | इसके पौधे रोपाई के 7 से 10 साल बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | इसके पोधों से निकलने वाले फलो का गूदा देखने में पीला तथा स्वाद में मीठा होता है | इसके फल का वजन 7 से 10 किलो तक का होता है | इसके अतिरिक्त कटहल की कई उन्नत किस्मे जैसे :- रूद्धाक्षी, खाजा, स्वर्ण पूर्ति को अधिक पैदावार के लिए उगाया जाता है |

कटहल का पेड़ कैसे लगाया जाता है (Jackfruit Tree How To Plant)

कटहल का पौधा एक बार तैयार हो जाने पर कई वर्षो तक पैदावार देता है | इसलिए कटहल की खेती करने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए | सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर देनी चाहिए | इससे खेत की पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जायेंगे | इसके बाद खेत में पाटा लगाकर जुताई करवा दे, जिससे खेत समतल हो जायेगा | इस समतल खेत में 10 मीटर की दूरी रखते हुए 1 मीटर चौड़ा और गहरा गड्ढा तैयार कर ले | इसके बाद इन गड्ढो में पुरानी गोबर की खाद और उवर्रक की उचित मात्रा को डालकर कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे | इसके 15 दिन बाद इस गड्ढो में पौधों को लगा दिया जाता है|

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कटहल के पौधों को तैयार करने की विधि (Jackfruit Plants Preparing Method)

कटहल के पौधों की रोपाई बीज के रूप में की जाती है| बीजो द्वारा उगाये गए पौधों पर 5 से 6 वर्ष का समय लग जाता है| यदि आप पौधों को बीज के रूप में लगाना चाहते है, तो उसके लिए आपको कटहल से निकाले गए बीजो तुरंत ही मिट्टी में लगा देना चाहिए | कटहल के पौधों को बनाने के लिए दो विधियों को इस्तेमाल में लाया जाता है |

गूटी बाधना विधि द्वारा

गूटी विधि द्वारा पौधों को बांधने पर पौधे तीन वर्ष में पैदावार देना आरम्भ कर देते है | इस विधि में पौधों को पेड़ की डालियो पर तैयार किया जाता है | इसके लिए पेड़ की पत्तियों से डालियों पर गोल छल्ले को तैयार कर लिया जाता है | छल्ला बनाते समय डाली की छाल को हटा दिया जाता है, जिससे डाली का भीतरी भाग दिखाई देने लगता है | इस भाग में गोबर की मिट्टी मिलाकर रूटीन हार्मोन लगाकर पॉलीथीन से ढक देते है | इस विधि को बारिश के मौसम के लिए काफी अच्छा माना जाता है, क्योकि इस दौरान मिट्टी में नमी की मात्रा बनी रहती है, और जड़े कम समय में ही निकल आती है | इसके बाद इन जड़ो को डाली से अलग कर गड्डो में लगा दिया जाता है |

ग्राफ्टिंग विधि

इस विधि में पौधे की मूल पकी हुई शाखाओ को काटकर अलग कर लिया जाता है,जिसके बाद इन शाखाओ को V आकर में छील लिया जाता है | इन शाखाओ को किसी भी तरह के पौधों पर लगाया जा सकता है | इन शाखाओ को दूसरे पौधों में लगाने से पहले उस पौधे की पत्तियों को हटा कर उसकी शाखा को अलग कर दिया जाता है | इसके बाद इसके तने को बीच से अलग कर दो बराबर भागो में चीर देते है | इन भागो में कलमी शाखाओ को लगाकर पॉलीथिन से ढक दिया जाता है | इसके बाद जब इसमें जड़े निकल आती है, तो उन्हें काटकर गड्डो में लगा दिया जाता है |

कटहल के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका (Jackfruit Plants Transplanting Right Time and Method)

पौधे की तैयार कलमों को गड्डो में लगाने से पहले उन्ही गड्डो में खाद और मिट्टी को अच्छे से मिलाकर भर देते है | इसके बाद इन गड्डो में कलमों को 2 से 4 CM की गहराई तक ढक दिया जाता है | इसके लिए बारिश के मौसम को सबसे उचित माना जाता है, क्योकि इस दौरान पौधों में नमी बनी रहती है, जिससे पौधे अच्छे से वृद्धि करते है | कटहल के पौधों को लगाने के लिए जून और जुलाई का महीना सबसे अच्छा होता है |

कटहल के पौंधो की सिंचाई (Jackfruit Plants Irrigation)

कटहल के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है,लेकिन पौधों की रोपाई के तुरंत बाद इसकी पहली सिंचाई कर देनी चाहिए | इसके बाद गर्मियों के मौसम में इसे 15 से 20 दिन के अंतराल में दो से तीन और सिंचाई की आवश्यकता होती है | यदि बारिश का मौसम है, तो इसके पौधों को जरूरत पड़ने पर पानी देना चाहिए |

कटहल के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Jackfruit Plants Weed Control)

इसके पौधों को अधिक खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है | किन्तु समय-समय पर खेत में खरपतवार दिखाई देने पर उसकी प्राकृतिक विधि द्वारा निराई – गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए|

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कटहल के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Jackfruit Plants Diseases and their Prevention)

फल सड़न रोग

इस तरह का रोग पौधों पर फल लगने के दौरान देखने को मिलता है | यह रोग फलो को उनके डंठल के पास से सड़ाकर नष्ट कर देता है | इस क़िस्म का रोग पौधों पर राइजोपस आर्टोकार्पी की वजह से लगता है | ब्लू कॉपर की उचित मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करने से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |

बग रोग

इस क़िस्म का रोग अधिकतर पौधों की पत्तियों और उनकी नई शाखाओ पर देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित होने पर पौधे की पत्तिया पीली पड़ने लगती है | जिससे पौधा वृद्धि करने लगता है | मैलाथियान की 0.5 प्रतिशत की मात्रा का छिड़काव करने से पौधों को इस रोग से बचाया जा सकता है |

गुलाबी धब्बा

इस तरह का रोग पौधे की पत्तियों पर उनकी निचली सतह पर देखने को मिलता है| जो पौधे की वृद्धि को पूरी तरह से रोक देता है | इस रोग की रोकथाम के लिए कटहल के पौधों पर कॉपर आक्सीक्लोराइड या ब्लू कॉपर कॉपर आक्सीक्लोराइड या ब्लू कॉपर का घोल बना कर उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए |

कटहल की पैदावार और लाभ (Jackfruit Yield and Benefits)

कटहल के पौधे रोपाई के तक़रीबन तीन से चार वर्ष बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | इसके अलावा कई किस्में ऐसी होती है, जो उत्पादन देने में अधिक समय लगाती है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 150 पौधों को लगाया जा सकता है| जिससे एक वर्ष में एक पौधे से तक़रीबन 500 से 1000 KG की पैदावार प्राप्त हो जाती है| इस हिसाब से किसान भाई कटहल की एक वर्ष की पैदावार से तक़रीबन तीन से चार लाख की कमाई आसानी से कर सकते है|

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