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तुलसी की खेती (Basil Farming) से सम्बंधित जानकारी
तुलसी के पौधों में कई तरह से औषधीय गुण पाए जाते है, जिससे यह पौधा लगभग सभी घरो में देखने को मिल जाता है | हिन्दू समाज के लोग तुलसी की पूजा भी करते है | तुलसी का पौधा झाड़ीनुमा तीन से चार फ़ीट लम्बा होता है | जिसकी पत्तियों का उपयोग चीजों में खुशबु लाने के लिए किया जाता है | प्राचीन काल से ही तुलसी के पौधों का इस्तेमाल यूनानी औऱ आयुर्वेदिक चिकित्सा के रूप में किया जाता है | इसके अलावा इसे दवाइयों को बनाने के लिए भी उपयोग में लाते है | तुलसी एक ऐसा पौधा है, जिसके सभी भागो ( तना, फूल, पत्ती, जड़, बीज ) को किसी न किसी रूप में उपयोग में लाया जाता है|
कॉस्मेटिक्स प्रोडक्ट्स औऱ दवाइयों को बनाने वाली कंपनियों में तुलसी की अधिक मांग होती है,जिससे किसान भाई तुलसी की खेती कर कम समय में अच्छा लाभ कमा सकते है | तुलसी के पौधों में रोगो से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रबल होती है | इसका सेवन कर सर्दी-जुकाम, बुखार, खांसी, श्वांस सम्बन्धी रोग औऱ दांत संबंधित रोगो से छुटकारा पाया जा सकता है | यदि आप भी तुलसी की खेती करना चाहते है, तो इस लेख में आपको तुलसी की खेती कैसे करें और कहां बेचे (Basil Farming in Hindi) तथा तुलसी का भाव से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है |
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तुलसी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु औऱ तापमान (Tulsi Cultivation Suitable soil, Climate and Temperature)
तुलसी की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है, तथा उचित जल निकासी वाली भूमि में भी इसके पौधे आसानी से वृद्धि कर सकते है | इसकी फसल के लिए भूमि का P.H. मान 5.5 से 7 के मध्य होना चाहिये | उष्णकटिबंधीय जलवायु में तुलसी की खेती अधिक मात्रा में की जाती है | इसके पौधे बारिश के मौसम में अच्छे से विकास करते है, तथा सर्दियों में गिरने वाला पाला इसकी पैदावार हो हानि पहुँचाता है |इसके पौधों को वृद्धि करने के लिए किसी खास तापमान की आवश्यकता नहीं होती है, इसके पौधे सामान्य तापमान में आसानी से विकास करते है |
तुलसी की उन्नत किस्में (Basil Improved Varieties)
कर्पूर तुलसी
यह एक अमेरिकन प्रजाति की तुलसी है, जिसे अमेरिका में तैयार किया गया है | इसमें निकलने वाली पत्तियों का इस्तेमाल चाय को खुशबूदार बनाने में किया जाता है | इसके पौधों को कपूर बनाने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है | इसके पौधों की लम्बाई दो से तीन फ़ीट पाई जाती है, जिसमें निकलने वाली पत्तियां हरे रंग की औऱ फूल बैंगनी भूरे होते है |
रामा तुलसी
रामा तुलसी की इस क़िस्म को गर्म जलवायु में उगाने के लिए तैयार किया गया है | भारत के दक्षिणी राज्यों में इसे उगाया जाता है | इसमें निकलने वाले पौधों की लम्बाई दो से तीन फ़ीट पाई जाती है | इस क़िस्म के पौधों की पत्तियों का रंग हल्का हरा औऱ फूल बिल्कुल सफ़ेद होते है | इसके पौधों में कम खुशबु पाई जाती है, तथा इन्हे मुख्य तौर पर औषधियों को बनाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है |
श्याम या कृष्ण तुलसी
श्याम या कृष्ण तुलसी की इस क़िस्म को काली तुलसी के नाम से भी पुकारते है | इस क़िस्म के पौधों में निकलने वाली पत्तियों का रंग हल्का जामुनी तथा फूल हल्के बैंगनी रंग के होते है | इसके पौधे तीन फ़ीट लम्बे होते है,कफ की बीमारी में इसकी पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है |
बाबई तुलसी
तुलसी की इस क़िस्म को सब्जी को खुशबूदार बनाने में करते है | इसके पौधे दो फ़ीट लम्बे होते है, जिनकी पत्तियों का आकार सामान्य होते है | भारत में इसे बंगाल औऱ बिहार राज्यों में उगाया जाता है |
अमृता तुलसी
तुलसी की यह क़िस्म पूरे भारत में उगाई जाती है | इसके पौधों में अधिक शाखाएँ निकलती है, जिसमें निकलने वाली पत्तियों का रंग जामुनी होता है | तुलसी की इस क़िस्म को डायबिटीज, दिल की बीमारी, पागलपन, कैंसर औऱ गठिया रोग के उपचार में उपयोग करते है |
तुलसी के खेत की तैयारी औऱ उवर्रक की मात्रा (Basil Field Preparation and Amount of Fertilizer)
तुलसी का पूर्ण विकसित पौधा तीन वर्ष तक पैदावार देता है| इसके लिए खेत को अच्छे से तैयार कर लेना चाहिये | सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर देनी चाहिये | जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे | इसके बाद खेत में गोबर की खाद डालकर रोटावेटर से जुतवा दे | इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद अच्छे से मिल जाएगी | इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है | पलेव के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे तब रोटावेटर चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना दे | खेत की मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद उसमे पाटा लगाकर खेत को समतल बना दे |
गोबर की खाद की जगह आप कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल कर सकते है | इसके अतिरिक्त यदि आप रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है, तो उसके लिए आपको एक बोरा एन.पी.के. की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में देना होता है | इसके बाद पौधों के अंकुरण के समय 20 KG नाइट्रोजन की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है |
तुलसी के पौधों की रोपाई का सही समय औऱ तरीका (Tulsi Plants Transplanting Right time and Method)
तुलसी के पौधों की रोपाई पौध के रूप में की जाती है | इसके लिए पौधों को किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीद लेना चाहिये | नर्सरी से ख़रीदे गए पौधे बिल्कुल स्वस्थ होने चाहिये | इसके पौधों की रोपाई समतल औऱ मेड़ दोनों ही जगहों पर की जा सकती है | मेड़ पर रोपाई करने से पहले खेत में एक फ़ीट की दूरी रखते हुए मेड़ को तैयार कर लिया जाता है | इसके बाद इन पौधों को सवा फ़ीट की दूरी पर मशीन के माध्यम से लगाया जाता है |
यदि आप समतल भूमि में पौधों की रोपाई करना चाहते है, तो उसके लिए आपको खेत में पंक्तियो को तैयार कर लेना होता है | इन पंक्तियों को डेढ़ से दो फ़ीट की दूरी में तैयार किया जाता है, तथा इसमें लगाए गए पौधों के बीच में 40 CM की दूरी अवश्य रखे | तुलसी के पौधों की रोपाई के लिए अप्रैल का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है |
तुलसी के पौधों की सिंचाई (Basil Plants Irrigation)
तुलसी के पौधों की रोपाई सूखी भूमि में की जाती है, इसलिए पौधों की रोपाई के तुरंत बाद उसकी पहली सिंचाई कर दी जाती है | तुलसी के खेत में नमी बनाये रखने के लिए 4 से 5 दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहना चाहिये | तुलसी के पौधों को एक वर्ष में 10 से 12 सिंचाई की आवश्यकता होती है | बारिश के मौसम में इसके पौधों की सिंचाई 15 से 20 दिन के अंतराल में की जाती है |
तुलसी के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Basil Plants Weed Control)
तुलसी की खेती औषधीय रूप में की जाती है, इसलिए इसकी फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक विधि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए | खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई – गुड़ाई विधि का इस्तेमाल किया जाता है | इसके पौधों की पहली गुड़ाई पौध रोपाई के डेढ़ महीने बाद की जाती है | पहली गुड़ाई के एक महीने के अंतराल में पौधों की दूसरी औऱ तीसरी गुड़ाई कर देनी चाहिए |
तुलसी के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Basil Plants Diseases and their Prevention)
पत्ती झुलसा
इस क़िस्म का रोग अक्सर गर्मियों के मौसम में पौधों की पत्तियों पर देखने को मिल जाता है | इस रोग से प्रभावित होने पर पौधों की पत्तियों पर जले हुए धब्बे पड़ जाते है | फाइटो सैनिटरी विधि का इस्तेमाल कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
जड़ गलन रोग
इस क़िस्म का रोग अक्सर खेत में जलभराव की स्थिति में ही देखने को मिलता है | खेत में जलभराव होने से पौधों की जड़े गलने लगती है, जिससे पौधे की पत्तियां मुरझा कर पीली पड़ जाती है | इस रोग से बचाव के लिए खेत में जलभराव न होने दे | इसके अलावा इस रोग के लक्षण दिखने पर बाविस्टिन की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों की जड़ो पर किया जाता है |
कीट रोग
इस क़िस्म का रोग तुलसी की पत्तियों को अधिक हानि पहुँचाता है | यह कीट रोग पौधों की पत्तियों पर पेशाब कर उन्हें हानि पहुँचाता है, जिससे पौधों की पत्तियां पीले रंग की पड़ जाती है, औऱ पत्तियां मुरझाकर नष्ट हो जाती है | एजाडिरेक्टिन की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
तुलसी की खेती कहां बेचे
तुलसी की खेती को बेचने के लिए अब आप ऑनलाइन पोर्टल से जानकारी प्राप्त करके बेच सकते है, या फिर किसी बड़ी कम्पनी से बात करके जो प्रोडक्ट बनाने में प्रयोग में लाती हो, उसे सीधा बेचने का विकल्प होता है|
तुलसी के पौधों की कटाई, पैदावार औऱ लाभ (Basil Plants Harvesting, Yield and Benefits)
तुलसी के पौधे की कटाई पौध रोपाई के तक़रीबन तीन महीने बाद कर ली जाती है | जब इसके पौधों पर पूर्ण रूप से फूल आ जाये औऱ नीचे के पत्ते सूखे दिखाई देने लगे तब इसकी कटाई कर ली जाती है | इसके काटे गए पौधों से तेल को प्राप्त किया जाता है | पौधों के शाकीय भागो की कटाई के लिए भूमि से 20 से 25 CM की ऊंचाई से कटाई की जाती है | तुलसी के एक हेक्टेयर के खेत से 20 से 25 टन की पैदावार प्राप्त हो जाती है | जिसमें से 80 से 100 KG तेल प्राप्त हो जाता है | इसके तेल का बाज़ारी भाव 450 से 500 रूपए प्रति KG होता है | जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से 40 से 50 हजार की कमाई आसानी से कर सकते है |