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बासमती धान की खेती [Basmati Rice Farming] से सम्बंधित जानकारी
भारत में खेती अधिक मात्रा में की जाती है, जिसमे धान की खेती को महत्वपूर्ण फसल भी कहते है | कुल फसलों के क्षेत्रफल का एक चौथाई हिस्सा धान की खेती का है | भारत की आधी से ज्यादा आबादी चावल को मुख्य भोजन के रूप में ग्रहण करती है | केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के बड़े हिस्से में इसे व्यापक रूप से खाया जाता है | धान की बासमती क़िस्म की मांग पूरी दुनिया में रहती है | बासमती धान अपनी विशिष्ट खुशबु और स्वाद की वजह से पूरे विश्व में जाना जाता है, तथा सैकड़ो वर्षो से इसे भारत में उगाया जा रहा है | दुनिया में भारत और पाकिस्तान को बासमती धान का जनक कहा जाता है | वैश्विक तौर पर विश्व में बासमती की मांग और निर्यात को देखते हुए इसे वैज्ञानिक तौर पर भी उगाया जाने लगा |
धान की खेती विश्व में तक़रीबन 150 मिलियन हेक्टेयर के क्षेत्र में की जाती है, जिसमे से अकेले 135 मिलियन हेक्टेयर में धान का उत्पादन सिर्फ एशिया में किया जाता है | किसान भाइयो को बासमती धान की खेती में कीटनाशक के उपयोग में सावधानी बरतनी होगी, क्योकि अमेरिका, ईरान और यूरोपीय संघ का कहना है, कि अगर बासमती धान में निर्धारित सीमा से अधिक कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाएगा, तो उसका निर्यात संभव नहीं होगा | किसानो के लिए धान की खेती एक महत्वपूर्ण फसल है, जिसे वह बड़े पैमाने पर करते है |
मई के महीने में धान की खेती के लिए तैयारियां शुरू कर दी जाती है| खरीफ के सीजन में उगाई जाने वाली धान की फसल को पूरे भारत में ही उगाया जाता है | किसान भाई कुछ विशेष बातो को ध्यान में रखकर बासमती धान की फसल से अधिक मात्रा में उत्पादन ले सकते है | यहाँ पर आपको बासमती धान की खेती कैसे करें [Basmati Rice Farming] तथा बासमती धान की किस्मो के बारे में बताया जा रहा है |
बासमती धान की खेती कैसे करें (Basmati Rice Farming)
बासमती चावल की खेती करने वाले किसान भाई एक बात को जरूर जान ले कि धान की बिक्री के लिए बाजार का ही सहारा ले, इससे वह अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे | 25 फीसदी शेयर के साथ विश्व में भारत बासमती चावल का निर्यात करने में प्रथम स्थान पर है | भारत से प्रतिवर्ष तक़रीबन 30 हज़ार करोड़ से भी अधिक बासमती चावल का निर्यात किया जाता है | बासमती धान की अधिक उत्पादकता लेने के लिए किसानो को कृषि तकनीक का विशेष ज्ञान होना जरूरी है | इसमें विशेष किस्मो का चुनाव के साथ-साथ उचित भूमि व् जलवायु की भी जरूरत होती है | बासमती धान की प्रजातियां लंबी अवधि, प्रकाश संवेदनशील और अधिक ऊंचाई वाली होती है | इन प्रजातियों से धान की उपज काफी कम हो पाती है | किन्तु बासमती धान की नई उन्नत किस्मो को अधिक खाद व् उवर्रक देकर अधिक उत्पादन ले सकते है |
बासमती धान की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु व भूमि का चयन (Basmati Paddy Cultivation Land and Climate)
बासमती धान के पौधों को वृद्धि करने के लिए नम व गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है | 21 से 35 डिग्री के तापमान पर बासमती का पौधा अच्छे से वृद्धि कर लेता है, तथा 50 से 500 CM वर्षा वाले क्षेत्रों में भी धान की खेती सफलतापूर्वक कर सकते है| किन्तु दोमट या मटियार भूमि को अच्छी फसल के लिए उपयुक्त माना गया है | यह मिट्टी पानी रोकने में अधिक सक्षम होती है |
बासमती की उन्नत किस्में (Basmati Improved Varieties)
क्रं. सं. | क़िस्म का नाम | गुण | प्रति हेक्टेयर उत्पादन | समय अवधि | कीट व रोग |
1. | टाइप 3 | लंबा, पतला सुगन्धित | 25-30 क्विंटल | 130-135 दिन | बीमारियों एवं कीटों का खतरा |
2. | बासमती 370 | —— | 25-30 क्विंटल | 130-135 दिन | —— |
3. | तरावडी बासमती | —— | 25-30 क्विंटल | 145-150 दिन | —— |
4. | सी एस आर 30 | —— | 30-35 क्विंटल | 130-140 दिन | इसमें तना अधिक समय तक मजबूत बना रहता है| |
5. | पूसा बासमती़-1 | —— | 40-45 क्विंटल | 125-130 दिन | बीमारी व् कीट रोग| |
6. | पूसा सुगंध-2 | —— | 45-50 क्विंटल | 130-135 दिन | इस क़िस्म में बहुत कम रोग लगते है| |
7. | पूसा सुगंध-3 | —— | 45-50 क्विंटल | 125-130 दिन | निम्न रोग| |
8. | पंत सुगधं-1 | लंबा, पतला सुगन्धित | 40-45 क्विंटल | 135-140 दिन | निम्न रोग| |
9. | पूसा 1121 (पूसा सुगंध 4) | —— | 40-45 क्विंटल | 135-140 दिन | इसमें दाने की लंबाई अधिक तथा पकने पर चावल और ज्यादा लंबा हो जाता है| |
10. | पूसा आर एच 10 (संकर) | लंबा, पतला सुगन्धित | 50-55 क्विंटल | 125-130 दिन | कीट का प्रकोप कम देखने को मिलता है| |
11. | मालवीय सुगन्धित धान-1 वल्लभ-22 | लंबा, पतला सुगन्धित | 45-50 क्विंटल | 120-125 दिन | झुलसा व ब्लास्ट रोग मुक्त किस्म। |
12. | मालवीय -105 | लंबा, पतला सुगन्धित | 55-60 क्विंटल | 130-135 दिन | थर्मो इन्सेंसेटिव एवं ड्राट टालरेंट |
13. | मालवीय 4-3 | लंबा, पतला सुगन्धित | 50-55 क्विंटल | 130-135 दिन | रोग मुक्त |
14. | नरेन्द्र सुगन्ध | लंबा, पतला | 40-50 क्विंटल | 125-130 दिन | इस किस्म में रोग बहुत कम लगते है| |
बासमती धान बीज शोधन व बीज की मात्रा (Basmati Paddy Seed Purification and Seed Quantity)
बासमती धान के बीजो को नर्सरी में लगाने से पूर्व बीजो का शोधन अवश्य कर लेना चाहिए | बीजो को जीवाणु झुलसा या जीवाणु धारी रोग से बचाने के लिए 40 GM प्लांटोमाइसीन या 4 GM स्ट्रेपटोसाइक्लीन की मात्रा को पानी में मिलाकर उससे 25 KG बीज की मात्रा को उपचारित करना चाहिए | इसके बाद छाया में सुखाकर नर्सरी में लगाए | अगर आपके क्षेत्र में शुक्राणु झुलसा का प्रकोप नहीं देखने को मिलता है, तो आप उन 25 KG बीजो को पूरी रात भिगोकर दूसरे दिन 50 GM कार्बेन्डाजिम या 75 GM थीरम की मात्रा को पानी में मिलाकर उससे उपचारित करे | इसके बाद बीजो को छाया में अंकुरित कर नर्सरी में लगाए| बीज शोधन के लिए बायोपेस्टीसाइड का उपयोग करे | उन्नत क़िस्मों के आधार पर प्रति हेक्टेयर के खेत में 25-30 KG बीज पर्याप्त होते है, प्रति किलोग्राम बीज की दर को 2 GM कार्बेन्डाजिम की मात्रा से उपचारित कर बोना होता है |
बासमती धान की पौध तैयार करना (Basmati Paddy Planting)
बासमतीधान की पौध को तैयार करने के लिए उचित जल निकासी वाले उपजाऊ खेत का चयन करना चाहिए | इसके अलावा सिंचाई का स्त्रोत भी करीब हो | एक हेक्टेयर के खेत में लगने वाले पौधों को 700 वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में तैयार कर सकते है | जल्द पकने वाली प्रजातियों के बीज की बुवाई जून के दूसरे हफ्ते में कर सकते है, तथा मध्य जून में देर से पकने वाली प्रजाति की बुवाई करे | नर्सरी की मिट्टी में सड़ी हुई गोबर और कम्पोस्ट खाद को अच्छे से मिला दे | इसके बाद खेत में पानी भरकर पलेव कर दे, और दो से तीन जुताई कर पाटा लगा दे | अब खेत में सामान्य ऊंचाई वाली क्यारियों को तैयार करे | बीज बुवाई से पूर्व 10 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के हिसाब से 100 GM यूरिया, 225 GM अमोनियम सल्फेट तथा 200 GM सुपर फास्फेट का इस्तेमाल करे | इसके अलावा आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई – गुड़ाई, रोग, कीट की रोकथाम के लिए उचित प्रबंधन करे, साथ ही खेत में जलभराव न होने दे |
बासमती के पौधों की रोपाई का समय और तरीका (Basmati Plants Transplanting Timing and Method)
बासमती के पौधों की रोपाई खेत में करने के 10 से 15 दिन पूर्व खेत में पानी भरकर पिछली फसल के अवशेषों को नष्ट कर दिया जाता है | खेत की भूमि को मुलायम और लेहयुक्त करने के लिए दो से तीन तिरछी जुताई करनी होती है, फिर पाटा लगाकर खेत को समतल कर देते है | बासमती धान के पौधों की रोपाई का समय फसल की गुणवत्ता और उपज को प्रभावित करता है | 25 से 30 दिन पुरानी बासमती की पौध खेत में लगाने के लिए उपयुक्त होती है | पश्चिम उत्तर प्रदेश राज्य में बासमती धान की पूसा बासमती -1 प्रजाति को जुलाई के पहले सप्ताह में लगाया जाता है, तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में पौध की रोपाई 15 जुलाई तक की जाती है | बासमती 370, तरावड़ी बासमती तथा टाइप 3 बासमती की प्रजाति को जुलाई के अंतिम सप्ताह में पश्चिम उत्तर प्रदेश तथा अगस्त के प्रथम सप्ताह में पूर्वी उत्तर प्रदेश में लगाया जाता है | पौधों की रोपाई के लिए खेत में 20X15 की दूरी रखनी चाहिए | यदि रोपाई देर से करने वाले है, तो पौध से पौध के बीच 15X15 CM की दूरी रखे | जल भराव वाले खेत में बासमती के पौधों की रोपाई बिल्कुल न करे | क्योकि इससे धान की गुणवत्ता पर विपरीत असर देखने को मिलता है |
बासमती धान के पौधों में खाद एवं उर्वरक (Basmati Paddy Plants Manure and Fertilizer)
बासमती धान की खेती में खाद व उवर्रक की मात्रा को सामान्य धान की तुलना में आधा देना होता है | लेकिन नई प्रजातियों का कम लंबा होने के चलते परम्परागत प्रजातियों की तुलना नत्रजन की मांग अधिक रहती है | नई प्रजातियां जैसे :- पी बी 1, पूसा सुगन्धा-3, पंत सुगंधा 2, पंत सुगंधा 115 तथा पूसा आर.एच.10 में 100 GM नत्रजन (500 KG अमोनियम सल्फेट या 200 KG यूरिया), 40 KG फास्फोरस और 30 KG पोटाश की मात्रा देना चाहिए | इसके अलावा परम्परागत किस्मों को 50-60 KG नत्रजन की जरूरत होती है, तथा पोटाश व फास्फोरस की मात्रा नई क़िस्म के सामान होती है |
मिट्टी का परीक्षण करने के पश्चात् ही खाद एवं उर्वरक का उपयोग करे | फ़ास्फ़ोरस, जिंक और पोटाश की पूरी मात्रा को खेत की तैयारी के समय देना होता है | इसके अलावा नत्रजन की बची 1/3 मात्रा को 7 दिनों में तथा बाकि की 1/3 मात्रा को पौधों पर बालिया आने के समय देना होता है | इसके साथ ही खेत की तैयार के दौरान 25-30 किग्रा जिंक सल्फेट की मात्रा प्रति हेक्टेयर के खेत में डालें |
बासमती धान की खेती में उवर्रक की मांग काफी कम होती है, जिस वजह से इसकी कार्बनिक खेती काफी उपयुक्त मानी गयी है | कार्बनिक खेती में खेत में पोषक तत्वों की पूर्ती करने के लिए गोबर खाद, कम्पोस्ट हरी खाद या मुर्गी बीट का इस्तेमाल किया जाता है | इन कार्बनिक खादों को खेत में पौध रोपाई से दो सप्ताह पूर्व मिला देना चाहिए |
बासमती धान के खेत में सिंचाई प्रबंधन (Basmati Paddy Field Irrigation Management)
बासमती धान की फसल को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है | इसलिए धान की फसल केवल वही करे जहा पर सिंचाई की उचित व्यवस्था मौजूद हो | अगर धान की फसल को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पाता है, तो पैदावार में काफी गिरावट देखने को मिलती है | बासमती धान के पौधों पर दाना बनने के दौरान खेत में नमी बनाए रखना चाहिए | यदि समय पर बारिश नहीं होती है, तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करने की जरूरत होती है, यह उपज के लिए बहुत जरूरी होता है | बासमती धान की फसल कटाई के 15 दिन पूर्व खेत से सारा पानी निकाल दे, ताकि अगली फसल को सही समय पर उगाया जा सके |
बासमती धान की फसल में रोग व उपचार (Basmati Paddy Crop Diseases and Treatment)
बासमती धान की फसल में अन्य फसलों के मुकाबले कीट व रोग अधिक तेजी से नुकसान पहुंचाते है| कीट व रोग के प्रकोप के कारण फसल की उपज और गुणवत्ता का भी हास होता है | जिस वजह से बासमती चावल की मांग स्थानीय व विदेशी बाजार में कम होने लगती है, जिसका परिणाम यह होता है, कि किसानो को इससे भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है | बासमती धान की फसल में लगने वाले कीट इस प्रकार है:-
- भूरा एवं सफेद फुदका कीट |
- तना बेधक कीट |
- गन्धी कीट |
- हिस्पा |
- धान का पत्ती लपेटक कीट |
बासमती धान में लगने वाले रोग के प्रकार :-
- झोंका (ब्लास्ट) रोग |
- भूरा धब्बा रोग |
- पर्णच्छद झुलसा रोग |
- जीवाणु पत्ती झुलसा रोग |
- खैरा रोग |
- मिथ्या कण्डुआ रोग |
- पर्णच्छद विगलन रोग |
पत्ती लपेटक कीट (Leaf Wrapper)
पत्ती लपेटक कीट की सुंडी आरम्भ में पीले रंग की होती है, जो बाद में हरे रंग में बदल जाती है | यह कीट पत्तियों की लंबाई को मोड़कर उसके अंदर के हरे भाग को खा जाता है | इस रोग से बचाव के लिए घास युक्त मेड़ो की छटाई करे, तथा समय से रोपाई करे | इसके अलावा 500 लीटर पानी में बाईफेन्थ्रिन 10% ई०सी० की 500 ML की मात्रा को मिलाकर प्रति हेक्टेयर के खेत में छिड़काव करे |
- हिस्पा :- इस क़िस्म का कीट पत्तियों के अंदर छिद्र करके उनके हरे भाग को खा जाता है, जिसके बाद पत्तियों पर फफोले बनने लगते है | प्रौढ़ कीट पौधे की पत्तियों का हरा भाग खुरच कर खाता है | इस कीट से बचाव के लिए समय-समय पर घास युक्त मेड़ो की छटाई करे, साथ ही फसल की साप्ताहिक निगरानी करे | फसल के अवशेषों को नष्ट करे, संतुलित मात्रा में ही उवर्रक का उपयोग करे, तथा जल निकासी की उचित व्यवस्था बनाए |
- तना बेधक कीट :- इस कीट की मादा समूह में पत्तियों पर अंडा देती है | इन अंडो से सुंडी निकलकर तनो में घुस जाती है, और उसे क्षति पहुँचाती है | इस कीट के आक्रमण से प्रभावित होने पर जब पौधा बड़ा होता है, तो आने वाली बालिया सफ़ेद रंग की होती है | इस रोग से बचने के लिए मेड़ो की छटाई कर उन्हें घासमुक्त कर दे | फसल के अवशेषों को नष्ट करे, पर्याप्त मात्रा में उवर्रक दे| इसके अलावा 500-600 लीटर पानी में कार्बोफ्यूरान 3 जी की 20 KG की मात्रा को डालकर घोल बना ले और उसका छिड़काव फसल पर करे |
- भूरा फुदका कीट :- यह कीट पंखयुक्त भूरे रंग का होता है, तथा शिशु भी भूरे रंग के लेकिन पंखहीन होते है | इस कीट का शिशु और तैयार कीट दोनों ही किल्लो और पत्तियों का रस चूस कर उन्हें हानि पहुंचाते है | भूरा एवं सफेद फुदका कीट से बचाव के लिए एसिटामिप्रिट 20% एस०पी० 50-60 GM की मात्रा को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर उसका छिड़काव खेत में करे |
इसके अलावा भी कई कीट व रोग है, जिनसे फसल को बचाने के लिए उचित रसायन की जानकारी प्राप्त कर उसका छिड़काव फसल और खेत में करे |
बासमती धान के बीजो को कहा से ख़रीदे (Basmati Paddy Seeds Buy)
किसान भाई जो बासमती धान के बीजो की खरीद करना चाहते है, वह सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से इन बीजो को खरीद सकते है | विश्वविद्यालय बीज स्टोर के इंचार्ज दिनेश कुमार का कहना है, कि बासमती के बीजो की बिक्री मई से जून माह तक चालू कर दी गयी है | किसान भाई सीधा स्टोर से बीजो को खरीद सकते है | बीज बिक्री का समय सुबह 10:30 से लेकर शाम के 4 बजे तक रखा गया है | पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1937, पूसा बासमती 1718 और पूसा बासमती 1 प्रजाति के बीज स्टोर में उपलब्ध है | प्रति किलो आधारीय बीज का दाम 70 रूपए है, तथा प्रमाणित बीज 65 रूपए प्रति किलो के हिसाब से बेचे जा रहे है | यह बीज 10 KG के पैकेट में उपलब्ध है |
बासमती धान की पैदावार और लाभ (Basmati Rice Production and Benefits)
बासमती धान का 90% दाना जब हरे से पीले सुनहरे रंग का हो जाए तो फसल की कटाई कर ले | अगर कटाई देर से करेंगे तो फसल के दाने छिटककर नीचे गिरने लगते है | जिससे फसल में नुकसान उठाना पड़ सकता है | कटाई के तुरंत बाद बासमती धान की मड़ाई कर ले, ताकि गुणवत्ता अच्छी मिल सके | उन्नत क़िस्मों के आधार पर बासमती धान के प्रति हेक्टेयर के खेत से औसतन 40 से 50 क्विंटल की पैदावार मिल जाती है | जिसका बाज़ारी भाव 3 से 4 हज़ार रूपए प्रति क्विंटल होता है | इस तरह से किसान भाई बासमती धान की पैदावार से सवा लाख रूपए से लेकर दो लाख रूपए तक की कमाई कर सकते है |