मूंग की खेती कैसे करें | Mung Bean Farming in Hindi | मूंग की उन्नत किस्में


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मूंग की खेती (Mung Bean Farming) से सम्बंधित जानकारी

मूंग एक दलहनी फसल है,जिसे खरीफ की फसल के बाद उगाया जाता है | मूंग का उत्पादन मुख्य रूप से राजस्थान में किया जाता है, क्योकि मूग की फसल के लिए राजस्थान की जलवायु सबसे उपयुक्त है | इसके अलावा मूंग की फसल को मध्य प्रदेश, गुजरात हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक मात्रा में उगाया जा रहा है, किन्तु राजस्थान में इसे 12 लाख हेक्टेयर के विशाल क्षेत्र में उगाया जाता है | मूंग के दानो को विशेष तौर पर दाल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है | इसमें 55-60% कार्बोहाइड्रेट, 24-26% प्रोटीन, एवं 1.3% वसा की मात्रा पाई है |

इस हिसाब से यह मनुष्य के उपभोग के लिए अधिक लाभदायक दाल के रूप में जानी जाती है | इसे पका कर खाने में इस्तेमाल करते है, लेकिन इसकी फलियों को कच्चा भी खाया जा सकता है | मूंग का रंग देखने में हरा होता है, जिससे इस दाल की पहचान आसानी से की जा सकती है | मूंग की दाल में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते है, जिस वजह से बाज़ारो में इसकी अधिक मांग होती है | किसान भाई मूंग की खेती कर अच्छा लाभ भी कमा सकते है | इस लेख में आपको मूंग की खेती कैसे करें (Mung Bean Farming in Hindi) इसके बारे में जानकारी दी जा रही है, इसके अलावा मूंग की उन्नत किस्में कौन सी है, इसके बारे में बताया गया है |

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मूंग की खेती कैसे करें (Mung Bean Farming in Hindi)

यहाँ आपको मूंग की खेती कैसे करें (Mung Bean Farming in Hindi) इसके बारे में विस्तृत जानकारी इस प्रकार है –

मूंग की फसल के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Moong Cultivation Suitable soil, Climate and Temperature)

मूंग की खेती को किसी भी मिट्टी में किया जा सकता है, किन्तु बलुई दोमट मिट्टी को इसकी फसल के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है | जल-भराव वाली भूमि में इसकी खेती को नहीं करना चाहिए, क्योकि जल-भराव से इसके पौधों के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 7.5 के मध्य होना चाहिए | मूंग की फसल को खरीफ और रबी दोनों ही मौसम में की जा सकती है | इसे किसी खास जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है | इसकी फसल के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है| इसके पौधे अधिकतम 40 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है |

मूंग की उन्नत किस्में (Moong Improved Varieties)

आर. एम. जी. – 62

मूंग की यह किस्म सिंचित और असिंचित दोनों ही जगह पर उगाई जा सकती है | इसके पौधे में फलियों को पकने में 60 से 70 दिन का समय लग जाता है | यह किस्म फल छेदक रोग रहित होती है | जिसमे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 8 से 10 क्विंटल की पैदावार पाई जाती है |

आर. एम. जी. – 344

इस किस्म के पौधों को खरीफ और जायद के मौसम में उगाया जाता है | मूंग की इस किस्म को केवल सिंचित जगहों पर उगाना चाहिए | इसके पौधे 65 से 70 दिनों में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | इसमें प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 9 क्विंटल की पैदावार पाई जाती है |

पूसा विशाल किस्म

मूंग की इस किस्म भारत के उत्तर राज्यों में गर्मियों के मौसम में उगायी जाती है | इसके बीजो का कलर गहरा हरा और चमकदार पाया जाता है | इसकी फलियों को पककर तैयार होने में 60 से 70 दिन का समय लग जाता है | इसके पौधों में पीली चित्ती नमक रोग नहीं पाया जाता है | यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से तक़रीबन 12 क्विंटल की पैदावार देती है |

इसके अलावा भी मूंग की कई उन्नत किस्मों को उगाया जाता है, जैसे :- टाइप – 44, के. – 851, जी. एम. – 4, गंगा 8, आर. एम. एल. – 668 और पूसा बैसाखी आदि किस्मे है, जो अलग-अलग जलवायु के हिसाब से अधिक पैदावार देने के लिए उगाई जाती है |

मूंग की फसल के लिए खेत की तैयारी (Mung Crop Field Preparation)

मूंग की अच्छी फसल के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसलिए इसकी फसल करने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए | सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर देनी चाहिए | इसके बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसकी दो से तीन तिरछी जुताई कर देनी चाहिए | जुताई के बाद खेत में पानी लगा कर पलव कर देना चाहिए | इसके बाद कुछ समय के लिए खेत को ऐसे ही छोड़ दे, जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने के लिए तब रोटावेटर लगा कर दो से तीन तिरछी जुताई कर दे | इससे खेत की भुरभुरी हो जाती है |

मूंग के खेत में उवर्रक की बात करे तो इसके पौधों को अधिक मात्रा में खाद की आवश्यकता नहीं होती है | क्योकि इसके पौधे खुद भूमि में नाइट्रोजन की पूर्ति करते है | इसके पौधे को केवल आरम्भ में सही मात्रा में उवर्रक की जरूरत होती है | इसके खेत की मिट्टी की जरूरत के हिसाब से ही उसमे उवर्रक की मात्रा दे | शुरुआती उवर्रक के तौर पर इसके खेत में 10 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर अच्छे से मिला दे | इसके बाद जब खेत में पलेव किया जाता है, उस समय N.P.K. की 50 किलो की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए | N.P.K. की जगह आप D.A.P. का भी उपयोग कर सकते है |

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मूंग के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Moong Seeds Transplanting Right time and Method)

मूंग के बीजो की रोपाई बीज के रूप में की जाती है | खेत में बीज रोपाई से पहले उन्हें थायरम और कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लेना चाहिए | इसके बीजो की रोपाई को अलग-अलग मौसम के हिसाब से किया जाता है | खरीफ के मौसम में इसे जून और जुलाई माह के मध्य में उगाया जाता है | वही जायद के मौसम में इसे मार्च और अप्रैल माह के मध्य में उगाया जाता है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 10 से 12 किलो मूंग के बीजो की आवश्यकता होती है |

मूंग के बीजो की बुवाई को पंक्तियों में किया जाता है, इसके लिए एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी रखते हुए खेत में पंक्तियों को तैयार कर लेना चाहिए, तथा प्रत्येक बीज की रोपाई को 4 CM की गहराई में 10 से 15 CM की दूरी रखते हुए करना चाहिए |

मूंग के पौधों की सिंचाई का तरीका (Moong Plants Irrigation)

मूंग के पौधों को बीज रोपाई से पैदावार देने तक 4 से 5 सिंचाई की आवश्यकता होती है | इसकी पहली सिंचाई को बीज रोपाई के 20 से 25 दिन बाद कर देनी चाहिए | इसके बाद दूसरी सिंचाई 10 दिन के अंतराल में की जाती है | इसके अतिरिक्त बाक़ी की सिंचाईओ को जरूरत के अनुसार ही करे |

जायद के मौसम में इसके पौधों को आवश्यकता पड़ने पर पानी देना चाहिए, क्योकि उस दौरान बारिश का मौसम होता है, इसलिए इसके पौधों को कम पानी की आवश्यकता होती है |

मूंग के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Moong Plants Weed Control)

मूंग के पौधों में खरपतवार नियंत्रण कर अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है | इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही विधियों का इस्तेमाल किया जा सकता है | प्राकृतिक विधि में निराई -गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण किया जाता है | वही रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की आखरी जुताई से पूर्व पेन्डीमेथलीन की 3.30 लीटर की मात्रा को 500 लीटर पानी में डालकर खेत में छिड़क देना होता है |

मूंग के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Moong Plants Diseases and their Prevention)

दीमक का रोग

इस किस्म का रोग दलहनी की फसलों में अक्सर देखने को मिलता है | यह दीमक रोग पौधों पर किसी भी अवस्था में देखने को मिल जाता है | किन्तु पौधों के अनुकरण के समय यह पौधों को अधिक हानि पहुँचाता है | इस रोग से बचाव के लिए खेत की आखरी जुताई के समय क्यूनालफास की उचित मात्रा को छिड़क देना चाहिए |

कातरा रोग

इस तरह का रोग मूंग की फसल में अक्सर ही देखने को मिल जाता है | इस रोग का कीड़ा पौधे के नर्म भागो को खाकर उसे नष्ट कर देता है | इस कीड़े की ऊपरी सतह पर रोये नुमा बाल होते है | पौधों पर इस तरह का रोग दिखने पर सर्फ़ का घोल तैयार कर छिड़काव करना चाहिए | इसके अतिरिक्त पौधों पर क्यूनालफास की उचित मात्रा का भी छिड़काव कर सकते है |

फली छेदक कीट रोग

यह फली छेदक रोग मूंग के पौधों पर फली बनने के दौरान देखने को मिलता है | यह कीट रोग फली के अंदर जाकर फसल को हानि पहुँचाता है | मोनोक्रोटोफास या मैलाथियान की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |

इसके अलावा भी मूंग की फसल में कई तरह के रोग देखने को मिल जाते है, जो फसल को हानि पंहुचा कर पैदावार को प्रभावित करते है, जैसे :- चित्ती जीवाणु रोग, चित्ती जीवाणु रोग, झुलसा रोग, पती धब्बा, किंकल विषाणु रोग आदि | 

मूंग के पौधों की कटाई, पैदावार और लाभ (Moong Plants Harvesting, Yield and Benefits)

मूंग के पौधे बीज रोपाई के 60 से 70 दिन पश्चात् पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | इसके पौधों में लगने वाली फली पकने के बाद काले रंग की दिखाई देने लगती है | उस दौरान इसके पौधों की कटाई कर लेनी चाहिए | पौधों की कटाई के बाद उन्हें एकत्रित कर धूप में अच्छे से सूखा लेना चाहिए | इसके बाद सूखी हुई फलियों को मशीन की सहायता से निकाल लिया जाता है | मूंग का थोक बाज़ारी भाव 4 से 6 हजार तक होता है | चूंकि मूंग की फसल कम समय में तैयार हो जाती है, जिससे किसान भाई एक वर्ष में दो से तीन बार इसकी फसल को ऊगा सकते है | मूंग की एक बार की फसल से किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत में 40 हज़ार तक की कमाई कर सकते है |

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