बाकला की खेती कैसे करें | Broad Bean Farming in Hindi | बाकला कब बोया जाता है?


बाकला (Broad Bean) की खेती से सम्बंधित जानकारी

बाकला एक दलहनी फसल है | इसे राजरावन, काली मटर, काबुली बाकला, कद्दू हरालियाकि, सेम और मटर अलग-अलग नामो से जानते है | पूरे विश्व में 70 फीसदी बाकला की फसल अकेले चीन में उगाई जाती है | इसके अलावा सीरिया, मिश्र और अमेरिका में भी बाकला की खेती की जाती है | भारत में बाकला को दिल्ली, पंजाब, बिहार, हरियाणा, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में उगाते है | बाकला का बीज प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत है, इसमें 24%–32% प्रोटीन होता है | जिस वजह से यह खाद्य के रूप में अधिक महत्त्व रखता है |

बाकला की हरी फलियों को कच्चा या सब्जी बनाकर खाया जाता है, तथा सूखे बीजो से दाल बनाई जाती है | एफ.ए.ओ के अनुसार वर्ष 2019 में भारत में बाकला की फसल का उत्पादन 98,132 टन था, और आज भी बाकला की फसल बड़ी मात्रा में की जा रही है | यदि आप भी बाकला की खेती करने की सोच रहे है, तो इस लेख में आपको बाकला की खेती कैसे करें तथा Broad Bean Farming in Hindi या बाकला कब बोया जाता है इसके बारे में बता रहे है |

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बाकला की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी व् जलवायु (Bakla Cultivation Suitable Soil and Climate)

बाकला की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मृदा की आवश्यकता होती है | इसके लिए लोम भूमि जिसका पी.एच. मान 6.5 – 7.5 के मध्य होना चाहिए | बाकला शरद ऋतु वाली फसल है, जिसे शरद ऋतु में उष्णकटिबंधीय जलवायु की जरूरत होती है, तथा गर्मियों में शीतोष्ण जलवायु की जरूरत होती है | 20℃ का तापमान बाकला के पौधों की वृद्धि के लिए उपयुक्त होता है, तथा अन्य दलहनी फसलों की तुलना में बाकला की फसल पाले के प्रति सहनशील होती है|

बाकला की उन्नत किस्में (Bakla Improved Varieties)

  • BR–1 :- बाकले की यह एक उन्नत क़िस्म है, जिसमे काले रंग के बीज निकलते है |
  • BR –2 :- बाकले की इस क़िस्म में बीज पीले रंग के निकलते है |
  • पूसा सुमित |
  • पूसा उदित |
  • जवाहार विसिया 73 – 81 |

बाकले के पौधों की बुवाई का समय और तरीका (Bakla Plants Sowing Time and Method)

बाकले का पौधा शरद ऋतु वाला होता है, जिसकी बुवाई अक्टूबर से नवंबर के मध्य कर देनी चाहिए | एक हेक्टेयर के खेत में बाकले का उत्पादन करने के लिए 70-100 KG बीजो की जरूरत होती है | इन बीजो की बुवाई खेत में तैयार की गयी समतल और उथली क्यारियों में करते है | उथली क्यारियों में बीजो को लगाने के लिए बीज को 45 X 15 CM या 75 X 25 CM की दूरी पर लगाते है |

बाकला की खेती में खाद व् उवर्रक (Bakla Cultivation Fertilizers)

बाकला की अच्छी उपज के लिए भूमि को तैयार करते समय प्रति हेक्टेयर के खेत में 10 –15 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए | उवर्रक का इस्तेमाल खेत में पौधों की बुवाई से पहले 40 KG फास्फोरस, 60 KG नत्रजन और 50 KG पोटाश की मात्रा का उपयोग करे |

बाकला के पौधों की सिंचाई (Bakla Plants Irrigation)

बाकले के पौधों की अच्छी वृद्धि और विकास के लिए उचित जल देने की आवश्यकता होती है | चूंकि बाकले की फसल शर्दियो के मौसम में लगाई जाती है, फिर भी बुवाई के पश्चात् भूमि में नमी के लिए सिंचाई करना जरूरी होता है | सामान्य तोर पर बाकले के पौधों को 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए |

बाकले के पौधों को सहारा देना (Buckwheat Plant Support)

बाकला लम्बी और सीधे बढ़ने वाली फसल है, जिस वजह से फसल का गिरना संभव है, इसलिए बाकले के पौधे को सहारा देना आवश्यक होता है | पौधोंको सहारा देने के लिए आप बांस की लकड़ी का उपयोग कर सकते है |

बाकला की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Bakla Crop Weed Control)

बाकला के फसल की अच्छी वृद्धि और विकास के लिए पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व मिल पाना बहुत जरूरी होता है, लेकिन अगर खेत में खरपतवार निकल आती है, तो यह पौधों को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व नहीं लेने देती है | इसलिए बाकला की फसल में खरपतवार पर नियंत्रण बहुत जरूरी है | वर्षा ऋतु के मौसम में खरपतवार नियंत्रण पर विशेष ध्यान दे |

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बाकला के पौधों पर लगने वाले कीट एवं रोग (Bakla Plants Pests and Diseases)

  • एफिस फैबाई :- यह एक प्रमुख कीट होता है, जो पौधे के तनो, पत्तियों और फलियों का रस चूसकर उन्हें  कमज़ोर कर देता है, जिससे उत्पादन की मात्रा कम होने लगती है| इस कीट को नियंत्रित करने के लिये पौधों पर मेटासिस्टोक की 0.3% मात्रा  का छिड़काव करे |
  • बोट्रिटिस फैबाई :- बोट्रिटिस फैबाई एक प्रमुख रोग है, जो बाकला की फसल में फंगस के रूप में आक्रमण करता है | इस रोग की वजह से पत्तियों का हास्य होने लगता है, और पत्तियां फोटोसिंथेसिस की क्रिया को सुचारु रूप से नहीं कर पाती है | जिस वजह से पौधा अपना भोजन बनाने में असमर्थ रहता है, और उत्पादन की मात्रा भी कम हो जाती है | इस रोग पर नियंत्रण पाने के लिए बाकला की अगेती फसल की बुवाई करनी चाहिए | अगेती फसल में इस रोग का प्रकोप कम देखने को मिलता है | इसके अलावा पौधों पर फंगीसाइड या फोलियार स्प्रे भी कर सकते है |
  • रस्ट :- रस्टरोग का प्रकोप बाकला के पौधों पर परिपक्वता के समय देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित होने पर पत्तियों पर छोटे-छोटे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है |
  • पैरासाइट्स :- ओरोबांची क्रीनाटा (ब्रूमराप) नाम का पैरासाइट रोग यूरोप और नार्थ अफ्रीका के देशो में बाकला की फसल को अधिक हानि पहुंचाते है, जिससे उपज काफी कम हो जाती है |

बाकला के फसल की कटाई:- (Bakla Harvest)

जब बाकला के पौधों पर लगी पत्तियां 80-85 फीसदी सूखने के पश्चात् गिरने लगे और फलियां काले की हो जाए तो उस दौरान फसल की कटाई कर ले | सामान्यता बाकला की फसल बुवाई के 3–4 माह के पश्चात् कटाई के लिए तैयार हो जाती है | फसल कटाई के बाद तत्काल ही फसल को धूप में 2-3 दिन तक अच्छे से सुखा ले | इसके बाद दानो को निकालने के लिए हल्के हाथ से पिटाई करे | बाकला के दानो को थ्रेसर या गहाई करके भी निकाल सकते है |

बाकला के फसल की उपज (Bakla Crop Yield)

बाकला के एक हेक्टेयर के खेत से 7 – 10 टन हरी फलियों का उत्पादन मिल जाता है, तथा 40 से 50 टन हरे चारे की उपज मिल जाती है |

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