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ग्वार की खेती (Guar Cultivation) से सम्बंधित जानकारी
ग्वार खरीफ के मौसम में की जाने वाली लेग्यूमिनेसी कुल की एक फसल है | इसका पौधा सीधा 30 से 90 CM लम्बा होता है, जिसमे अनेक शाखाएं निकलती है | इसके पौधों पर निकलने वाले फूलो का आकार छोटा और रंग गुलाबी होता है, तथा फलियों की ऊपरी सतह रोएंदार होती है | ग्वार के एक पौधे से 110 से 133 फलिया प्राप्त हो जाती है | इसकी ताज़ी फलियों को सब्जी और भर्ता बनाने के लिए इस्तेमाल में लाते है | इसके अलावा सूखी हुई फलियों में नमक लगाकर रखने से अधिक समय में तक उपयोग में ला सकते है | ग्वार की फलियों की 100 GM की मात्रा में 81 GM पानी, 3.2 GM रेशा, 3.2 GM प्रोटीन, 10.8 GM कार्बोहाइड्रेट, 1.4 GM खनिज और 0.4 GM वसा पाया जाता है |
इसके अलावा कुछ पोषक तत्व जैसे 1.08 मिलीग्राम आयरन, 130 मिलीग्राम कैल्शियम, 57 मिलीग्राम फास्फोरस, विटामिन सी, थाइमिन और फोलिक अम्ल भी मौजूद होता है | ग्वार को जानवरो के हरे चारे के लिए पौष्टिक आहार के रूप में इस्तेमाल में लाते है | जानवरो में प्रोटीन की कमी को दूर करने के लिए इसके दानो और चोरी को खाने के लिए देते है | ग्वार की फसल दूसरी फसलों की अपेक्षा आसानी से की जा सकती है | इसे कम सिंचाई वाले स्थानों पर भी आसानी से ऊगा सकते है | जिस वजह से किसान भाई ग्वार की खेती करना पसंद करते है, यदि आप भी ग्वार की खेती करना चाहते है, तो इस लेख में आपको ग्वार की खेती कैसे करें (Guar Cultivation in Hindi) तथा ग्वार की कीमत कितनी होती है, इस जानकारी से अवगत करा रहे है |
ग्वार की फसल हेतु उपयुक्त भूमि (Guar Crop Soil)
ग्वार की खेती उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में करना चाहिए | इसकी फसल सिंचित और असिंचित दोनों ही जगहों पर आसानी से उगाई जा सकती है | 7.5 से 8.5 P.H. मान वाली लवणीय व् हल्की क्षारीय भूमि में ग्वार की खेती आसानी से कर सकते है |
ग्वार की उन्नत किस्में (Guar Improved Varieties)
बाज़ारो में ग्वार की कई उन्नत किस्में देखने को मिल जाती है, जिन्हे चारे, दाने और हरी फलियों के आधार पर तीन भागो में बांटा गया है, उन्नत किस्में निम्न प्रकार है :-
- दानो के लिए उन्नत किस्म :- आरजीसी 417, आरजीसी 986, आरजीसी 197, अगेती ग्वार 111, मरू ग्वार, एफएस 277, दुर्गापुरा सफ़ेद और दुर्गाजय आदि |
- हरी फलियों हेतु उन्नत क़िस्म:- शरद बहार, गोमा मंजरी, पूसा नवबहार, पी 28-1-1, पूसा सदाबहार, एम 83, पूसा मौसमी और आईसी 1388 आदि |
- हरे चारे के लिए उन्नत क़िस्म:- बुन्देल ग्वार 3, ग्वार क्रांति, बुन्देल ग्वार 2, गोरा 80, बुन्देल ग्वार 1,मक ग्वार, एचएफजी 156, एचएफजी 119, आईजीएफआरआई 212-1 और आईआर 1395-2 आदि|
ग्वार के खेत की तैयारी (Guar Field Preparation)
ग्वार की खेती किसी भी तरह की भूमि में की जा सकती है | किन्तु खेत की अच्छी तरह से जुताई कर उसे तैयार करना होता है | इसके लिए खेत की गहरी जुताई कर उसमे पानी लगा दिया जाता है | पानी लगे खेत में पानी सूख जाने के पश्चात् दो से तीन तिरछी जुताई कर खेत की मिट्टी को भुरभुरा कर दे | इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दे | समतल खेत में ग्वार के बीजो की रोपाई पंक्तियों में की जाती है |
ग्वार के बीजो की बुवाई का तरीका (Guar Seeds Sowing Method)
ग्वार के बीजो को बीज के रूप में लगाया जाता है | बीजो को लगाने के लिए ड्रिल विधि या छिड़काव विधि का इस्तेमाल करते है | समतल विधि में बीजो को खेत में छिड़ककर हल्का पाटा लगाकर चला दिया जाता है | इससे बीज खेत की कुछ गहराई में चला जाता है | ड्रिल विधि में बीजो को पंक्तियो में लगाया जाता है | पंक्तियों में बीज से बीज के मध्य 10 से 15 CM की दूरी तथा पंक्ति के मध्य 40 से 45 CM की दूरी रखे | बुवाई के समय खेत में नमी होनी चाहिए, ताकि बीजो का जमाव ठीक तरह से हो सके | ग्वार के बीजो की रोपाई ग्रीष्मकालीन के मौसम में फ़रवरी से मार्च माह के मध्य की जाती है, तथा वर्षाऋतु में बीजो को जून से जुलाई के मध्य लगाया जाता है |
ग्वार के बीजो की मात्रा व् बीजोपचार (Guar Seeds Quantity and Treatment)
यदि आप ग्वार की फसल दानो और हरी फलियों के लिए करना चाहते है, तो उसके लिए 15 से 18 KG बीज की जरूरत होती है, तथा हरी खाद फसल में 30 से 35 KG बीज लगते है | इसके अलावा हरे चारे के लिए 35 से 40 KG बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगते है | इन बीजो को खेत में लगाने से पहले उन्हें कैप्टान या बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर ले ताकि बीजो को आरम्भ में फफूंद जैसे रोग न लगे | पौधों में जड़ो की अधिक मात्रा में गांठ प्राप्त करने के लिए जीवाणु रोधक राइजोबियम उवर्रक से उपचारित कर लेना चाहिए | एक हेक्टेयर के खेत में 200 GM की मात्रा वाले दो पैकेट जीवाणु रोधक की जरूरत होती है |
ग्वार के फसल की सिंचाई (Guar Crop Irrigation)
ग्वार की फसल को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है | खरीफ के मौसम में की गयी रोपाई में सिंचाई की जरूरत नहीं होती है | यदि बारिश समय पर नहीं होती है, तो अधिकतम 3 सिंचाई ही करनी होती है | गर्मियों के मौसम में 6 से 7 दिन के अंतराल में पौधों को पानी दे | असिंचित जगहों पर खेत में बुवाई के 25 से 45 दिन पश्चात् थायोयूरिया की उचित मात्रा का छिड़काव करना होता है, ताकि उपज में ठीक तरह से बढ़ोतरी हो सके |
ग्वार की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Guar Crop Weed Control)
ग्वार की फसल में खरपतवार नियंत्रण की अधिक जरूरत होती है | इसलिए खेत में समय-समय पर निराई – गुड़ाई करना होता है, ताकि पौधों की जड़ो का विकास ठीक तरह से हो सके और जड़ो में ताज़ी हवा भी पहुंच सके | इसके अलावा रासायनिक तरीके से खरपतवार को रोकने के लिए 1 KG बेसालिन की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के खेत में करे |
ग्वार की फसल रोग एवं रोकथाम (Guar Crop Diseases and Prevention)
दीमक
ग्वार की फसल में इस क़िस्म का रोग पौधों की जड़ो पर आक्रमण करता है | इस रोग से बचाव के लिए क्लोपाइरीफॉस पॉउडर की 20 से 25 KG मात्रा या क्यूनलफोस 1.5 प्रतिशत का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत की आखरी जुताई के समय करना होता है |
कातरा
यह एक कीट रोग होता है, जो पौधों को आरम्भ में खाकर उन्हें हानि पहुंचाता है | इस रोग से बचाव के लिए खेत में सफाई बनाये रखना चाहिए, तथा रोग से प्रभावित हो जाने पर खेत में क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत या मिथाइल पेराथियोन का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के खेत में करे |
मोयला
इस क़िस्म का कीट रोग पौधों के नाजुक अंगो का रस चूसकर उन्हें हानि पहुँचाता है | जिससे पौधा कुछ समय पश्चात् ही सूखकर नष्ट हो जाता है | इस रोग से फसल को बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड या मोनोक्रोटोफॉस की 500 ML की मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर उसका छिड़काव प्रति हेक्टेयर के खेत में करे |
सफ़ेद मक्खी एवं हरा तेला रोग
इस क़िस्म का रोग पौधों पर मक्खी के रूप में आक्रमण करता है | यह रोग पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है | जिसके कुछ समय पश्चात् ही पौधों की पत्तिया सूखकर नष्ट हो जाता है | इस रोग से बचाव के लिए मेलाथियान या ट्राइजोफॉस की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करे |
बैक्टीरियल ब्लाइट
यह एक अतिहानिकारक रोग होता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर गोल आकार के धब्बे दिखाई देने लगते है | ग्वार के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बीज रोपाई से पहले उन्हें स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की उचित मात्रा से उपचारित कर ले | इसके अतिरिक्त रोग प्रतिरोधक किस्मो का चुनाव करना चाहिए |
छाछिया
इस क़िस्म का रोग पौधों की पत्तियों पर आक्रमण कर उन्हें हानि पहुँचाता है | छाछिया रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद रंग का चूर्ण एकत्रित हो जाता है | इस रोग की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर के खेत में एक लीटर केराथेन की मात्रा को 500 लीटर पानी में अच्छे से मिलाकर उसका छिड़काव करे | इसके अलावा गंधक चूर्ण का इस्तेमाल भी कर सकते है |
जड़ गलन रोग
इस क़िस्म का रोग अक्सर ग्वार की फसल में अधिक समय तक जलभराव होने की स्थिति में देखने को मिलता है| यह फफूंद के रूप में पौधों को प्रभावित करता है, जिससे पौधों की जड़े गलने लगती है, और पौधा कुछ समय पश्चात् ही सूखकर गिर जाता है | इस रोग से बचाव के लिए बीजो को मेंकोजेब या थाइरम की उचित मात्रा से उपचारित कर ले |
ग्वार के फसल की कटाई (Guar Harvest)
ग्वार के फसल की तुड़ाई जरूरत वाली उपज के अनुसार की जाती है | इस दौरान यदि आप हरी सब्जी के रूप में फसल प्राप्त करना चाहते है, तो उसके लिए आपको 55 से 70 दिनों में मुलायम फलियों की अवस्था में तुड़ाई करनी चाहिए | इन फलियों को 5 दिन के अंतराल में तोड़ते रहना होता है | इसके अतिरिक्त यदि आप चारे के रूप में फसल को प्राप्त करना चाहते है, तो उसके लिए 60 से 80 दिनों में पौधों पर फूल आने के दौरान उनकी कटाई कर ले | फसल से दानो को प्राप्त करने के लिए पूर्ण रूप से फसल के पक जाने पर ही तुड़ाई करे |
ग्वार की पैदावार और कीमत (Guar Yield and Price)
ग्वार की उन्नत किस्मो से 250 से 300 क्विंटल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन हरे चारे के रूप में प्राप्त हो जाता है | इसके अलावा 70 से 120 क्विंटल तक हरी फलिया और 12 से 18 क्विंटल दानो का उत्पादन प्रति हेक्टेयर की फसल से मिल जाता है | ग्वार की बाज़ारी कीमत क़िस्म के आधार पर 5000 से 6000 हज़ार रूपए प्रति क्विंटल होती है | जिस हिसाब से किसान भाई ग्वार की एक बार की फसल से अच्छी खासी कमाई कर सकते है|