गाजर की खेती कैसे करे | Carrot Farming in Hindi | गाजर की खेती का समय


गाजर की खेती (Carrot Farming) से सम्बंधित जानकारी

गाजर का उत्पादन कच्चे के रूप में खाने के लिए किया जाता है | गाजर एक बहुत ही लोकप्रिय सब्जी फसल है | इसके जड़ वाले भाग का इस्तेमाल मनुष्यो द्वारा खाने के लिए किया जाता है, तथा जड़ के ऊपरी भाग को पशुओ को खिलाने के लिए इस्तेमाल में लाते है | इसकी कच्ची पत्तियों को भी सब्जी बनाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है | गाजर में अनेक प्रकार के गुण पाए जाते है, जिस वजह से इसका इस्तेमाल अचार, मुरब्बा, जूस, सलाद, सब्जी और गाजर के हलवे को अधिक मात्रा में बनाने के लिए करते है |

यह भूख को बढ़ाने और गुर्दे के लिए भी अधिक लाभकारी होती है | इसमें विटामिन ए की मात्रा सबसे अधिक मौजूद होती है, इसके साथ ही इसमें विटामिन बी, डी, सी, ई, जी की भी पर्याप्त मात्रा पायी जाती है | गाजर में बिटा-केरोटिन नामक तत्व मौजूद होता है, जो कैंसर नियंत्रण में अधिक लाभकारी होता है | पहले गाजर केवल लाल रंग की होती थी, किन्तु वर्तमान समय में गाजर की कई उन्नत किस्मे है | जिसमे पीले, और हल्के काले रंग की भी गाजर पायी जाती है | भारत के तक़रीबन सभी भागो में गाजर का उत्पादन किया जाता है |

किसान भाई गाजर की खेती कर अधिक लाभ भी कमाते है | यदि आप भी गाजर की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको गाजर की खेती कैसे करे (Carrot Farming in Hindi) तथा गाजर की खेती का समय इसकी जानकारी से अवगत करा रहे है |

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गाजर की खेती कैसे करे (Carrot Farming in Hindi)

यहाँ किसान भाइयों को गाजर की खेती में सहायक मिट्टी, जलवायु और तापमान (Carrot Cultivation Soil, Climate and Temperature Conducive) की जानकारी बता रहे है, जो इस प्रकार है:-

  • गाजर की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है, किन्तु बलुई दोमट मिट्टी में गाजर की अधिक पैदावार प्राप्त होती है| इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 6.5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए|
  • गाजर की खेती में सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है| ठण्ड जलवायु में इसकी बुवाई की जाती है, उस दौरान तापमान 10 डिग्री तक होता है, जो बीजो के लिए काफी अच्छा माना जाता है| गाजर के पौधे 25 डिग्री तापमान पर अच्छे से विकास करते है, और गाजर के फलो का आकार और रंग काफी अच्छा बनता है|

गाजर की उन्नत किस्में (Carrots Improved Varieties)

वर्तमान समय में गाजर की कई उन्नत किस्में बाजार में देखने को मिल जाती है | जिन्हे उगाकर किसान भाई अधिक पैदावार भी प्राप्त करते है | गाजर की उन्नत किस्में इस प्रकार है :-

पूसा केसर

गाजर की यह क़िस्म बीज रोपाई के 90 से 110 दिन पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देती है | इसमें निकलने वाली गाजर का आकार छोटा और रंग गहरा हरा होता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 से 350 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

पूसा (मेघाली)

गाजर की यह एक संकर क़िस्म है, जिसके फलो में केरोटीन की अधिक मात्रा पायी जाती है | इसमें निकलने वाली गाजर का गूदा नारंगी रंग का होता है | इस क़िस्म को तैयार होने में बीज रोपाई से 100 से 110 दिन का समय लग जाता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

पूसा यमदागिनी

इस क़िस्म में निकलने वाली गाजर का रंग संतरे की तरह होता है | इसे केन्द्र कटराइन के आई. ए. आर. आई. के माध्यम से तैयार किया गया है | यह क़िस्म बीज रोपाई के 90 से 100 दिन पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देती है | जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 200 क्विंटल तक होता है |

पूसा आसिता

गाजर की यह क़िस्म मैदानी क्षेत्रों में अधिक पैदावार देने के लिय उगाई जाती है | जिसमे निकलने वाली गाजर का रंग काला होता है | इस क़िस्म को तैयार होने में 90 से 100 दिन का समय लग जाता है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 200 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

नैन्टस

इस क़िस्म को तैयार होने में 110 दिन का समय लग जाता है | इसमें निकलने वाली गाजर आकार में बेलनाकार तथा रंग में नारंगी होती है | इसमें बाकि किस्मों की तुलना में कम पैदावार प्राप्त होती है | यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 100 से 125 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

गाजर के खेत की तैयारी (Carrot Field Preparation)

गाजर की फसल करने से पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है | जुताई के बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है, इससे खेत की मिट्टी नम हो जाती है | नम भूमि में रोटावेटर लगाकर दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत की मिट्टी में मौजूद मिट्टी के ढेले टूट जाते है, और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है | भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है |

गाजर के खेत में उवर्रक की मात्रा (Carrot Field Fertilizer Amount)

किसी भी फसल की अच्छी पैदावार के लिए खेत में उचित मात्रा में उवर्रक देना जरूरी होता है | इसके लिए खेत की पहली जुताई के पश्चात् खेत में 30 गाड़ी तक पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है | इसके अलावा खेत की आखरी जुताई के समय रासायनिक खाद के रूप में 30 KG पोटाश, 30 KG नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के हिसाब से करना होता है | इससे पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त होती है |

गाजर की खेती का समय, तरीका और बुवाई (Carrot Seed Sowing Time, Method)

गाजर के बीजो की बुवाई बीज के रूप में की जाती है | इसके लिए समतल भूमि में बीजो का छिड़काव कर दिया जाता है, एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 6 से 8 KG बीजो की आवश्यकता होती है | इन बीजो को खेत में लगाने से पूर्व उन्हें उपचारित कर ले | खेत में बीजो को छिड़कने के पश्चात् खेत की हल्की जुताई कर दी जाती है | इससे बीज भूमि में कुछ गहराई में चला जाता है | इसके बाद हल के माध्यम से क्यारियों के रूप में मेड़ो को तैयार कर लिया जाता है | इसके बाद फसल में पानी लगा दिया जाता है | गाजर की एशियाई किस्मों को अगस्त से अक्टूबर माह के मध्य लगाया जाता है, तथा यूरोपीय किस्मों की बुवाई अक्टूबर से नवंबर माह के मध्य की जाती है |

गाजर के फसल की सिंचाई (Carrot Crop Irrigation)

गाजर की फसल की पहली सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है | इसके बाद खेत में नमी बनाये रखने के लिए आरम्भ में सप्ताह में दो बार सिंचाई की जाती है, तथा जब बीज भूमि से बाहर निकल आये तब उन्हें सप्ताह में एक बार पानी दे | एक महीने पश्चात् जब बीज पौधा बनने लगता है, उस दौरान पौधों को कम पानी देना होता है | इसके बाद जब पौधे की जड़े पूरी तरह से लम्बी हो जाये, तो पानी की मात्रा को बढ़ा देना होता है |

गाजर के फसल में खरपतवार नियंत्रण (Carrot Crop Weed Control)

गाजर की फसल में खरपतवार पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी होता है | इसके लिए खेत की जुताई के समय ही खरपतवार नियंत्रण दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है | इसके बाद भी जब खेत में खरपतवार दिखाई दे तो उन्हें निराई – गुड़ाई कर खेत से निकाल दे | इस दौरान यदि पौधों की जड़े दिखाई देने लगे तो उन पर मिट्टी चढ़ा दी जाती है |

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गाजर की फसल में लगने वाले रोग एवं रोकथाम (Carrot Crop Diseases and Prevention)

क्रं. सं.रोगरोग का प्रकारउपचार
1.आद्र विगलनपिथियम अफनिड़रमैटमगोमूत्र से बीज को उपचारित कर रोपाई करे|
2.सक्लेरोटीनिया विगलनसूखे दाग के रूप मेंथायरम 30 या कार्ब्रेन्डाजिम 50 की उचित मात्रा का छिड़काव बीज रोपाई से पहले खेत में करे|
3.कैरट वीविलकीट के रूप मेंइनिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर खेत में छिड़काव करे|
4.रस्ट फ्लाईकीट के रूप मेंपौधों पर क्लोरपयरीफॉस 20 ई.सी. की उचित मात्रा का छिड़काव करे|

गाजर के फसल की खुदाई (Carrot Harvest Digging)

गाजर की फसल को तैयार होने में 3 से 4 महीने का समय लग जाता है | जिससे किसान भाई एक वर्ष में गाजर की खेती कर तीन से चार बार तक उत्पादन प्राप्त कर सकते है | इससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार होता है | जब गाजर की फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है, उस दौरान फसल की खुदाई कर ली जाती है | खुदाई से पूर्व खेत में पानी लगा दिया जाता है, इससे गाजर सरलता से मिट्टी से बाहर आ जाती है | गाजर खुदाई के पश्चात् उन्हें अच्छी तरह से पानी से से साफ कर बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है |

गाजर की पैदावार और लाभ (Carrot Production and Benefits)

गाजर की उन्नत किस्मों के आधार पर अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है | जिससे किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत से तक़रीबन 300 से 350 क्विंटल की पैदावार प्राप्त कर लेते है | कुछ किस्में ऐसी भी है, जिनसे केवल 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन प्राप्त हो पाता है | कम समय में पैदावार प्राप्त कर किसान भाई अच्छा लाभ भी कमा लेते है | गाजर का बाज़ारी भाव आरम्भ में काफी अच्छा होता है | यदि किसान भाई अधिक पैदावार प्राप्त कर गाजर को अच्छे दामों पर बेच देते है, तो वह इसकी एक बार की फसल से 3 लाख तक की कमाई कर सकते है |

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