नील की खेती कैसे होती है | Indigo Farming in Hindi | नील की खेती से लाभ


नील की खेती (Indigo Farming) से सम्बंधित जानकारी

नील का निर्माण सर्वप्रथम भारत में हुआ, जिसकी खेती आज रंजक के रूप में की जा रही है | नील का इतिहास काफी पुराना है, अंग्रेजो के दमन के चलते भारत में नील की खेती बंद हो गई थी | लेकिन आज भी रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से नील का निर्माण किया जा रहा है | वर्तमान समय में बाज़ारो में प्राकृतिक नील की मांग बढ़ रही है | जिससे किसानो ने नील की खेती का पुनः उत्पादन आरम्भ कर दिया है | नील का पौधा भूमि के लिए अधिक लाभकारी होता है, यह मिट्टी को उपजाऊ बनाता है |

इसके पौधे एक से दो मीटर ऊँचे होते है, जिसमे निकलने वाले फूलो का रंग बैंगनी और गुलाबी होता है | इसके पौधे जलवायु के आधार पर एक से दो वर्ष तक उत्पादन देते है | भारत में नील की फसल मुख्य रूप में बिहार और बंगाल जैसे राज्यों में उगाई जाती है | इस आर्टिकल के माध्यम से आपको नील की खेती कैसे होती है (Indigo Farming in Hindi) इससे जुड़ी जानकारी दी जा रही है, तथा यह भी जानकारी दी गई है, कि नील की खेतीसे लाभ कैसे प्राप्त कर पाएंगे |

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नील की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी जलवायु और तापमान (Indigo Cultivation Suitable soil, Climate and Temperature)

नील की खेती में बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है, तथा भूमि में उचित जल निकासी होनी चाहिए | जल-भराव वाली भूमि में इसकी खेती को नहीं करना चाहिए | नील की अच्छी फसल के लिए उष्ण और शीतोष्ण जलवायु को उचित माना जाता है | नील के पौधों को अधिक वर्षा की जरूरत होती है, क्योकि इसके पौधे बारिश के मौसम में अच्छे से विकास करते है | इसके अलावा अधिक गर्मी और सर्दी का मौसम इसकी फसल के लिए उपयुक्त नहीं होता है | इसके पौधों को सामान्य तापमान की जरूरत होती है |

नील की फसल के लिए खेत की तैयारी (Indigo Crop Field Preparation)

नील के पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत को अच्छे से तैयार कर लिया जाता है | सर्वप्रथम खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है | जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है | इसके बाद खेत में हल्की मात्रा में पुरानी गोबर की खाद डाल दी जाती है | खाद डालने के बाद रोटावेटर लगा कर जुताई कर दी जाती है | इससे खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाती है | खाद के मिट्टी में मिल जाने के बाद खेत में पानी को लगाकर पलेव कर दिया जाता है | इसके बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है, तब खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है |

नील के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Indigo Seeds Planting Right time and Method)

नील की खेती में बीजो की रोपाई बीज द्वारा की जाती है | इसके बीजो की रोपाई ड्रिल विधि द्वारा की जाती है | बीजो को खेत में लगाने से पहले खेत में एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी रखते हुए पंक्तियों को तैयार कर लिया जाता है | इन पंक्तियों में प्रत्येक बीज के बीच एक फ़ीट की दूरी अवश्य रखे | इसके बीजो की रोपाई सिंचित जगहों पर अप्रैल के माह में की जाती है, और असिंचित जगहों पर बारिश के मौसम में की जाती है | इससे पौधा कम समय में कटाई के लिए तैयार हो जाता है, और पैदावार भी अच्छी प्राप्त हो जाती है |

नील के पौधों की सिंचाई (Indigo Plants Irrigation)

नील के पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है | अप्रैल के माह में की गई बीजो की रोपाई बारिश के मौसम से पहले होती है | बारिश के आरम्भ होने से पहले इसके पौधों को दो से तीन सिंचाई की आवश्यकता होती है | यदि बीजो की रोपाई बारिश के मौसम की गई है, तो एक या दो सिंचाई की ही आवश्यकता होती है | नील की फसल तीन से चार महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है |

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नील की खेती में उर्वरक की मात्रा (Indigo Cultivation Fertilizer Amount)

नील की अच्छी पैदावार के लिए खेत को तैयार करते समय पर्याप्त मात्रा में उवर्रक देने की जरूरत होती है | इसके लिए खेत की पहली जुताई के बाद 8 से 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में मिला दिया जाता है | प्राकृतिक खाद की जगह आप कम्पोस्ट खाद को भी इस्तेमाल कर सकते है | इसके पौधे स्वयं ही भूमि से नाइट्रोजन की पूर्ति कर लेते है, जिससे इन्हे रासायनिक उवर्रक की जरूरत नहीं होती है|

नील के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Indigo Plants Weed Control)

नील के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है | इसके पौधों को अधिकतम दो गुड़ाई की आवश्यकता होती है | इसकी पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 25 दिन बाद की जाती है, तथा दूसरी गुड़ाई को 15 से 20 के अंतराल में किया जाता है |

नील के पौधों की कटाई, पैदावार और लाभ (Indigo Plants Harvesting, Yield and Benefits)

नील के पौधे बीज रोपाई के तीन से चार महीने बाद उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते है | जिसके बाद इनके पौधों की कटाई की जा सकती है | नील के पौधों की कटाई को कई बार किया जा सकता है | एक से अधिक बार कटाई करने के लिए पौधों पर फूल बनने से पूर्व उन्हें काट ले | इसके पौधों की कटाई भूमि से कुछ ऊंचाई पर की जाती है | कटाई के बाद इन पौधों को छायादार जगह पर सुखा लिया जाता है | इसके बाद सूखी हुई पत्तियों को बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है | इन सूखी हुई पत्तियों से नील निकालने के लिए पत्तो की गहाई की जाती है |

इसके अलावा इसके सूखे पत्तो से भी नील का उत्पादन किया जाता है | इन हरी पत्तियों को कटाई के तुरंत बाद बेच दिया जाता है | किन्तु हरी पत्तियों का बाज़ारी भाव सूखी पत्तियों की तुलना काफी कम होता है | वर्तमान समय में बिहार के किसान एक एकड़ के खेत में 7 क्विंटल सूखी पत्तियों को प्राप्त कर लेते है| जिसका बाज़ारी भाव 50 से 60 रूपए प्रति किलो के आसपास होता है| जिससे किसान भाई एक एकड़ के खेत में नील की एक बार की फसल से 50 हज़ार रूपए तक की कमाई कर सकते है |

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