बरसीम की खेती कैसे होती है | Berseem Farming in Hindi | बरसीम की उन्नत किस्में


बरसीम की खेती (Berseem Farming) से सम्बंधित जानकारी

बरसीम की फसल को पशुओ के लिए हरे चारे के रूप में उगाया जाता है | पशुओ के लिए बरसीम एक पौष्टिक आहार होता है | बरसीम के पौधों में शुष्क प्रदार्थ की पाचन शीलता 70% तक होती है, तथा इसमें 21% तक प्रोटीन की मात्रा भी पाई जाती है | जिस वजह से बरसीम का सेवन करने से पशु बिल्कुल स्वस्थ रहते है, और उनकी कार्य क्षमता में वृद्धि के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन की क्षमता में भी वृद्धि होती है | इसका पौधा देखने में मेथी की तरह होता है, जो भूमि से लगभग दो फ़ीट ऊंचाई तक होता है, जिसमे पीले और सफ़ेद रंग के फूल निकलते है |

बरसीम को मुख्य तौर पर हरे चारे की आपूर्ति के लिए उगाया जाता है, किन्तु कुछ किसान भाई इसे पैदावार के लिए भी उगाते है, जिससे उन्हें आय भी प्राप्त होती है | यदि आप भी बरसीम की खेती कर अच्छी कमाई करना चाहते है, तो इस लेख में आपको बरसीम की खेती कैसे होती है (Berseem Farming in Hindi) तथा बरसीम की उन्नत किस्में कौन सी है, इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है |

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बरसीम की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Berseem Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)

बसीम की खेती के लिए क्षारीय, बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है, इसे अम्लीय भूमि में नहीं उगाना चाहिए | इसकी खेती में मिट्टी का P.H. का मान 7 से 8 के मध्य होना चाहिए | समशीतोष्ण और शीतोष्ण जलवायु बरसीम की फसल के लिए उपयुक्त होती है | सामान्य तौर पर बरसीम को किसी भी मौसम में ऊगा सकते है, किन्तु ठंडियों के मौसम में इसकी खेती को करना काफी अच्छा माना जाता है, क्योकि सर्दियों के मौसम में इसके पौधे अच्छे से वृद्धि करते है|

इसके अतिरिक्त यदि आप इसकी फसल को गर्मियों के मौसम में उगाते है, तो गर्मियों के मौसम में पौध वृद्धि ठीक से नहीं हो पाती है | अधिक वर्षा भी इसकी फसल के लिए उपयुक्त नहीं होती है | बरसीम के पौधे अधिकतम 35 और न्यूनतम 10 डिग्री के तापमान को आसानी से सहन कर सकते है | वही इसके बीजो को अंकुरण के लिए 22 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | इसकी फसल के लिए 22 से 25 डिग्री का तापमान अधिक उपयुक्त होता है |

बरसीम की उन्नत किस्में (Berseem Improved Varieties)

वर्तमान समय में बरसीम की कई उन्नत किस्मो को उगाया जा रहा है, जिनका चुनाव उच्च गुणवत्ता के आधार पर किया जाता है |

बी एल 1

बी एल 1 किस्म की बरसीम को पंजाब में अधिक मात्रा में उगाया जाता है | इसमें फसल को तैयार होने में बीज रोपाई के बाद 40 से 50 दिन का समय लगता है | इसे सर्दी और गर्मी दोनों ही मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है | इस किस्म में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 110 टन का उत्पादन प्राप्त हो जाता है |

पूसा ज्वाइंट

इस किस्म को अधिक समय तक पड़ने वाली सर्दी को सहन करने के लिए तैयार किया गया है | यह किस्म उन जगहों पर उगाई जाती है, जहाँ पर अधिक समय तक सर्दी का मौसम बना रहता है | इसके पौधों में एक से अधिक पत्तिया पाई जाती है | जिसमे निकलने वाले फूलो का आकार भी बड़ा होता है | यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 90 टन का उत्पादन देती है |

वरदान

इस किस्म के पौधों को तैयार होने में रोपाई के बाद 150 से 160 का समय लग जाता है | बरसीम की यह किस्म अधिकतर भारत के उत्तर राज्यों में उगाई जाती है | इस किस्म के पौधों की हरे चारे के लिए कटाई 4 से 5 बार की जा सकती है | इसकी खेती से 80 से 100 टन की पैदावार प्रति हेक्टेयर के खेत से की जा सकती है |

इसके अलावा भी बरसीम की कई उन्नत किस्में मौजूद है, जिन्हे जलवायु और जगह के हिसाब से अधिक पैदावार के लिए उगाया जाता है, जिनमे बी बी 3, बी एल- 2, बी ए टी- 678, मेस्कावी, टाइप 529, जे एच बी 146, टाइप 561, टी- 724 वार्डन, बी एल 10, जवाहर बरसीम 1, जवाहर बरसीम 2, जे बी- 1, जे एच टी बी 146, एचएफबी 600, फहाली, डीप्लोइड, बी एल 42,  यु.पि.बी. 10, टेट्राप्लौइड, गैंट राक्षस, जैदी, पूसा गैंट, सीडी और खादरावी जैसी कई उन्नत किस्में मौजूद है |

बरसीम के खेत की तैयारी और उवर्रक की मात्रा (Berseem Field Preparation and Fertilizer)

बरसीम की फसल करने से पहले उसके खेत को तैयार कर ले | इसके लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की जुताई करवा दे | जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ देना चाहिए | इसके बाद खेत में जैविक खाद के रूप में 10 से 12 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर कल्टीवेटर लगवाकर दो से तीन तिरछी जुताई कर देनी चाहिए | इससे खेत की मिट्टी में खाद अच्छी तरह से मिल जाएगी | इसके बाद खेत में रोटावेटर लगाकर चलवा दे, जिससे खेत में मौजूद ढेले टूट जायेंगे और मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी | मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दे, जिससे खेत में जलभराव जैसी समस्या नहीं होगी |

बरसीम के पौधों को उवर्रक की मात्रा उत्पादन के तरीके के हिसाब से दी जाती है | यदि आप बरसीम की फसल को पैदावार के लिए कर रहे तो आपको उवर्रक की न्यूनतम मात्रा की आवश्यकता होती है | यदि आप इसे हरे चारे के लिए ऊगा रहे है, तो इसकी फसल को उचित मात्रा में उवर्रक देना चाहिए | इसके लिए खेत की पहली जुताई में प्राकृतिक खाद के रूप में 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को दे, तथा रासायनिक उवर्रक के रूप में प्रति हेक्टेयर के खेत में 20 KG नाइट्रोजन, 60 KG फास्फोरस और 20 KG पोटाश की मात्रा को खेत में डालकर अच्छे से जुताई कर मिला देना चाहिए | इसके अतिरिक्त हरे चारे की फसल के लिए प्रत्येक कटाई के समय 20 KG यूरिया की मात्रा पौधों को दे |

बरसीम के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Berseem Seeds Planting Right time and Method)

बरसीम की फसल में बीजो की मात्रा रोपाई की विधि पर निर्भर करती है, यदि इसके बीजो की रोपाई को सघन या छिड़काव विधि द्वारा कर रहे है, तो आपको बीजो की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है | इसके अलावा यदि रोपाई को सीडड्रिल विधि द्वारा किया जा रहा है, तो कम बीजो में ही रोपाई की जा सकती है | बीजो की रोपाई से पहले राइजोबियम कल्चर या कैप्टन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए | छिड़काव विधि में बीजो को समतल खेत में छिड़क कर कल्टीवेटर के पीछे पाटा लगाकर दो से तीन बार हल्की जुताई कर दी जाती है | जिससे बीज मिट्टी में 4 से 5 CM गहराई में दब जाते है | इसके अतिरिक्त सीडड्रिल विधि द्वारा रोपाई करने के लिए किसान भाइयो को बीजो की रोपाई कतारों में करना होता है | इसके लिए 25 CM की दूरी रखते हुए कतारों को तैयार कर लेना चाहिए,जिसमे 5 CM की दूरी में बीजो को लगाया जाता है |

बरसीम के बीजो की रोपाई के लिए सर्दी का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है, क्योकि इस मौसम में बरसीम की अच्छी फसल प्राप्त होती है | इसके लिए बीजो की रोपाई अक्टूबर से नवम्बर के मध्य में की जाती है | इसके अतिरिक्त बरसीम की कुछ ऐसी भी उन्नत किस्में है, जिन्हे अगेती पैदावार के लिए जून के महीने में भी उगाया जा रहा है |

बरसीम के पौधों की सिंचाई (Berseem Plants Irrigation)

बरसीम के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है | यदि इसके बीजो की रोपाई सूखी भूमि में की गई है, तो इसकी पहली सिंचाई को रोपाई को तुरंत बाद कर देना चाहिए | समतल भूमि में क्यारियों की सिंचाई को धीमें बहाव के साथ करना चाहिए, क्योकि तेज बहाव से सिंचाई करने पर क्यारियों के बीजो के बहकर एक जगह हो जाने का खतरा रहता है |

यदि खेती दाना फसल के रूप में की गई है, तो इसके पौधों को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है | गर्मियों के मौसम में इसके खेत में सप्ताह में एक बार सिंचाई करनी चाहिए, तथा सर्दियों के मौसम से 15 से 20 दिन में सिंचाई जरूर करे | यदि फसल हरे चारे के रूप में की गई है तो गर्मियों के मौसम में 5 दिन के अंतराल में सिंचाई करे |

बरसीम की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Berseem Crop Weed Control)

बरसीम की फसल में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक और रसायनिक दोनों ही विधियों द्वारा की जाती है | रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज रोपाई के पश्चात पौधों पर फ्लूक्लोरेलिन की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है | प्राकृतिक विधि द्वारा खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए निराई – गुड़ाई की जाती है | हरे चारे वाली फसल में खरपतवार नियंत्रण की जरूरत नहीं होती है, क्योकि इसकी कटाई कई बार होती है | पैदावार फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए दो से तीन गुड़ाई की आवश्यकता होती है | इसकी पहली गुड़ाई को बीज रोपाई के 25 दिन बाद कर दिया जाता है |

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बरसीम के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Berseem Plants Diseases and Their Prevention)

माहू कीट रोग

इस किस्म का रोग बरसीम की फसल पर जलवायु परिवर्तन के दौरान देखने को मिलता है | यह कीट पौधों की पत्तियों और तनो पर समूह बना कर आक्रमण करते है, और पत्तियों से उसका रस चूस कर उसे पूरी तरह से नष्ट कर देते है | इस रोग से बचाव के लिए बरसीम के पौधों पर मेथालियॉन या नीम के तेल का छिड़काव किया जाता है |

तना गलन रोग

यह एक सामान्य रोग होता है, जो सभी पौधों में देखने को मिल जाता है | यह तना गलन रोग अक्सर ही जल-भराव की स्थिति में देखने को मिलता है | यह फफूंद के रूप में पौधों पर आक्रमण करता है, जिसके बाद पौधे की पत्तिया सूख जाती है, और पौधे की वृद्धि भी पूरी तरह से रुक जाती है | इस रोग से बचाव के लिए कुछ बातो को ध्यान में रखना चाहिए | खेत में जलभराव न होने दे, बीजो को उपचारित कर रोपाई करे, कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का घोल बनाकर पौधों की जड़ो पर छिड़काव करे आदि |

सेमीलूपर रोग

बरसीम के पौधों में इस किस्म का रोग हरी सुंडी के रूप में दिखाई देता है | यह सुंडी रोग पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देता है | सेमीलूपर रोग का आक्रमण बढ़ जाने पर पौधा पत्ती रहित दिखाई देने लगता है | इस रोग से बचाव के लिए एण्डोसल्फान 35 ईसी की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए|

थ्रिप्स कीट रोग

यह एक कीट जनित रोग होता है,जो पौधों की पत्तियों पर कीट के रूप में आक्रमण कर उसका रस चूस कर हानि पहुंचाता है, जिससे पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है | इस रोग के लग जाने से पौधे की पत्तिया कुछ ही समय में सूखकर गिर जाती है, और पोधे की वृद्धि रुक जाती है | बरसीम के पौधों को इस रोग के आक्रमण से बचने के लिए मेथालियॉन, ड़ायमेथोयट या नीम के तेल का छिड़काव पौधों की पत्तियों पर करना चाहिए |

टिड्डी रोग

टिड्डी रोग अगस्त और जुलाई माह में पौधों पर आक्रमण करते है | इस किस्म का रोग पौधों की पत्तियों और तनो को खाकर पूरी तरह से नष्ट कर देता है | रोग का आक्रमण बढ़ जाने पर सम्पूर्ण फसल के ख़राब होने का खतरा होता है | इस रोग से बचाव के लिए विशेष ध्यान रखना होता है | इसके लिए मैलाथियान की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए |

बरसीम के पौधों की कटाई, पैदावार और लाभ (Berseem Plants Harvesting, Yield and Benefits)

बरसीम के पौधे बीज रोपाई के 50 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते है | जब इसके पौधे भूमि से 10 CM की ऊंचाई तक आ जाये, तब इसकी पहली कटाई कर ली जाती है | बरसीम के बाकी की कटाई को पहली कटाई के 20 से 25 दिन के अंतराल में करना होता है | हरे चारे की फसल के रूप में इसके पौधों की कटाई कई बार की जा सकती है | पैदावार फसल में इसकी एक या दो बार की कटाई के बाद इसके पौधों को पूर्ण रूप से पक जाने दे | जब पौधे की पत्तियां पीली होकर गिर जाये और पौधा सूख जाये तब इसके पौधों की कटाई कर ले | कटाई के बाद इसके पौधों को धूप में अच्छी तरह से सूखा ले | सूखाने के बाद मशीन की सहायता से इसके दानो को निकाल लिया जाता है, और बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है |

बरसीम के एक हेक्टेयर के खेत में 90 टन की पैदावार प्राप्त हो जाती है, जिसका बाज़ारी भाव 400 रुपये प्रति क्विंटल होता है, जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से तीन लाख तक कमाई कर सकते है | इसके अलावा दो से तीन कटाई के बाद एक हेक्टेयर के खेत में 400 से 500 KG सूखे बीजो को प्राप्त किया जा सकता है | किसान भाई बीजो को बेचकर भी अच्छी कमाई कर सकते है |

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