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स्ट्रॉबेरी की खेती ( Strawberry Farming) से सम्बंधित जानकारी
स्ट्रॉबेरी एक स्वादिष्ट हल्का खट्टा मीठा फल है | इसकी खेती अधिक मुनाफे वाली खेती के रूप में की जाती है | भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती को हाइड्रोपॉनिक्स, पॉलीहॉउस और सामान्य तरह से कई तरह की भूमि और जलवायु में भी किया जा रहा है | पूरे विश्व में स्ट्रॉबेरी की लगभग 600 किस्मों को उगाया जाता है, जो स्वाद और रंग में एक दूसरे से बिल्कुल अलग होती है | किन्तु भारत में स्ट्रॉबेरी की कुछ ही किस्मों को उगाया जाता है | जो अलग-अलग जलवायु और भूमि के हिसाब से अधिक पैदावार देती है | इसका फल अधिक नरम और अच्छी खुशबु वाला होता है, जो देखने में बिल्कुल दिल की तरह होता है | यह एक मात्र ऐसा फल है, जिसके बीज फल के ऊपरी हिस्से पर लगे होते है |
स्ट्रॉबेरी में विटामिन C, A और विटामिन K, एंटीऑक्सिडेंट, खनिज पदार्थो और प्रोटीन की अच्छी मात्रा पायी जाती है | इसमें मैग्नीशियम, पोटेशियम, फोलिक एसिड, फास्फोरस और कैल्सियम की भी पर्याप्त मात्रा पायी जाती है, जो चेहरे पर निकलने वाले कील मुहासों को कम करने, आँखों की रौशनी को बढ़ाने के साथ-साथ दांतो की चमक को भी बढ़ाता है | किसान भाई स्ट्रॉबेरी की खेती कर अधिक लाभ कमाते है | यदि आप भी स्ट्रॉबेरी की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको स्ट्रॉबेरी की खेती कैसे करे (Strawberry Farming in Hindi) तथा स्ट्रॉबेरी की कीमत की जानकारी से अवगत करा रहे है |
स्ट्रॉबेरी की खेती कैसे करे (Strawberry Farming in Hindi)
यहाँ किसान भाइयों को स्ट्रॉबेरी की खेती में उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Strawberry Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature) की जानकारी को समझकर अच्छी खेती करके लाभ प्राप्त कर सकते है, जो इस तरह से है:-
स्ट्रॉबेरी की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है | किन्तु बलुई दोमट मिट्टी में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन अधिक मात्रा में प्राप्त होता है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 5.5 से 6.5 के मध्य होना चाहिए | स्ट्रॉबेरी का पौधा ठंडी जलवायु वाला होता है | मैदानी क्षेत्रों में इसकी फसल आसानी से की जा सकती है | इसके पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा अधिक तापमान होने पर पौधों हो विकास करने में दिक्कत होती है |
स्ट्रॉबेरी की उन्नत किस्में (Strawberry Varieties)
भारत में स्ट्रॉबेरी की कुछ ही उन्नत किस्मों को उगाया जा रहा है, जिन्हे अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए तैयार किया गया है | उन्नत किस्में इस प्रकार है:-
- विंटर स्टार
- विंटर डाउन
- ब्लैक मोर
- सिसकेफ़
- फेयर फाक्स
- ओफ्रा
- कमारोसा
- एलिस्ता
- स्वीट चार्ली
- चांडलर
स्ट्रॉबेरी के खेती की तैयारी एवं उवर्रक (Strawberry Cultivation Preparation and Fertilizers)
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है | इससे लिए खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है | पहली जुताई के पश्चात खेत में 75 टन पुरानी सड़ी गोबर की खाद को प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में देना होता है | इससे बाद खेत की अच्छी तरह से जुताई कर गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दिया जाता है | इसके बाद खेत में पानी लगा देते है, जब खेत का पानी सूख जाता है, तो उसकी फिर से जुताई कर दी जाती है | इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है |
इसके बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है | स्ट्रॉबेरी की खेती में रासायनिक खाद के रूप में 60 KG पोटाश और 100 KG फास्फोरस की मात्रा को प्रति एकड़ के हिसाब से खेत की आखरी जुताई के समय देना होता है | इसके बाद बीजो की रोपाई खेत में कर दी जाती है, और सिंचाई के माध्यम से घुलनशील उवर्रक हो देना होता है |
पौध रोपाई के लिए बेड की तैयारी (Planting Seedlings Preparation of Beds)
स्ट्रॉबेरी के पौधों की रोपाई के लिए खेत में बेड की तैयारी की जाती है | इसके लिए खेत में डेढ़ फ़ीट की दूरी रखते हुए 2 फुट चौड़े बेड तैयार कर लिए जाते है | इसके पश्चात् ड्रेप एरिगेशन की पाइपलाइन को बिछा दिया जाता है, और पौधों को लगाने के लिए 20 से 30 CM दी दूरी पर पाइप में छेदो को बना लिया जाता है | इसके बाद पौधों की रोपाई कर दी जाती है | पौध रोपाई के लिए 10 सितम्बर से 15 अक्टूबर के मध्य का समय अच्छा होता है, तथा तापमान अधिक होने पर पौधों को सितम्बर के अंत तक भी लगाया जा सकता है |
स्ट्रॉबेरी के पौधों की सिंचाई (Strawberry Irrigation)
स्ट्रॉबेरी के पौधों की सिंचाई ड्रिप या स्प्रिंकल विधि द्वारा की जाती है, इससे पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी प्राप्त हो जाता है | स्ट्रॉबेरी के खेत में नमी बनाये रखने के लिए जरूरत के अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए | इसकी पहली सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है, तथा फलो के आने से पहले फव्वारे के माध्यम से सिंचाई करते है | इसके बाद जब पौधों पर फल आ चुके होते है, तब टपक विधि द्वारा पौधों की सिंचाई कर दी जाती है |
स्ट्राबेरी के पौधों पर लगने वाले रोग एवं उपचार (Strawberry Plant Diseases and Treatment)
स्ट्रॉबेरी के पौधों पर भी कई तरह के रोग देखने को मिल जाते है | यदि इन रोगो की रोकथाम समय पर नहीं की जाती है, तो पैदावार में अधिक प्रभाव देखने को मिलता है | पौधों पर लगने वाले रोग विविल्स झरबेरी, रस भृग, मक्खियाँ चेफर, कीटों में पतंगे, स्ट्रॉबेरी मुकट कीट कण आदि है|
इन रोगो से पौधों को बचाने के लिए अनेक प्रकार के उपचार किये जाते है, इसमें जड़ रोग के लिए नीम की खली को पौधों की जड़ो में डाला जाता है, पत्ती रोग में पत्ती ब्लाइट, पत्ता स्पॉट और खस्ता फफूंदी आदि का प्रकोप देखने को मिलता है | आप रोग की पहचान कर कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव पौधों पर कर सकते है|
स्ट्रॉबेरी के फलो की तुड़ाई (Strawberry Fruit Picking)
स्ट्रॉबेरी के पौधों पर लगे फल का रंग जब 70 प्रतिशत तक आकृषक दिखाई देने लगे उन दौरान फलो की तुड़ाई कर ली जाती है | इसके फलो की तुड़ाई अलग-अलग दिनों में की जाती है | फलो की तुड़ाई के समय उन्हें कुछ दूरी पर डंडी के साथ तोड़ना होता है | ताकि फलो में हाथ न लगे | इसके बाद फलो की पैकिंग प्लास्टिक की प्लेटो में करना काफी अच्छा होता है | पैकिंग के पश्चात् उन्हें हवादार जगह पर रखना होता है, जहा का तापमान 5 डिग्री के आसपास होना चाहिए |
स्ट्रॉबेरी की पैदावार और लाभ (Strawberry Production and Benefits)
स्ट्रॉबेरी की अलग – अलग किस्मों से भिन्न – भिन्न पैदावार प्राप्त होती है | सामान्य तौर पर इसके एक पेड़ से 800 से 900 GM तक फल प्राप्त हो जाते है | जिससे किसान भाई को एक एकड़ के खेत से 80 से 100 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है | स्ट्रॉबेरी का बाज़ारी भाव 300 से 600प्रति किलो तक होता है, जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से अधिक मात्रा में लाभ कमाते है |