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लौकी की खेती (Calabash Farming) से सम्बंधित जानकारी
सभी सब्जियों में लौकी की सब्जी को एक महत्वपूर्ण सब्जी के रूप में जाना जाता है | लौकी सामान्य तौर पर दो आकार की होती है, पहली गोल और दूसरी लम्बी वाली गोल वाली लौकी को पेठा तथा लम्बी वाली लौकी को घिया के नाम से जाना जाता है | लौकी का इस्तेमाल सब्जी के अलावा रायता और हलवा जैसी चीजों को बनाने में भी किया जाता है|
लौकी का इस्तेमाल पेट की कई बीमारियों के लिए भी लाभकारी होता है | यहाँ पर हम आपको लौकी की खेती कैसे होती है, Calabash Farming in Hindi, लौकी की उन्नत किस्में इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी दे रहे है|
लौकी की खेती कैसे होती है (Calabash Farming in Hindi)
देश में सभी जगह लौकी की खेती को किया जाता है| इसकी खेती को अलग-अलग मौसम के अनुसार विभिन्न स्थानों पर किया जाता है, किन्तु शुष्क और अर्द्धशुष्क जैसे क्षेत्रों में इसकी पैदावार अच्छी होती है | लौकी की खेती में अधिक तापमान की जरूरत होती है, तथा उचित जल निकासी वाली जगह पर इसे किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है|
मिश्रित खेती के प्रकार, लाभ व उद्धरण
लौकी की खेती में उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Suitable Soil, Climate and Temperature in Gourd Cultivation)
लौकी की खेती को करने के लिए उच्च उवर्रक क्षमता वाली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है, किन्तु अच्छी जल निकासी वाली किसी भी जगह पर इसे उगाया जा सकता है | लौकी की खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए |
लौकी की खेती को किसी खास तरह की जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है, किन्तु समशीतोष्ण वाले प्रदेशो में इसकी अच्छी पैदावार होती है | भारत देश में इसे अधिकतर बारिश और गर्मी के मौसम में उगाया जाता है, किन्तु सर्दियों के मौसम गिरने वाला पाला इसकी उपज के हानिकारक होता है |
इसलिए लौकी की खेती में 30 डिग्री के आसपास का तापमान इसके लिए काफी अच्छा होता है | बीजो के अंकुरित होने के लिए सामान्य तथा पौधों को वृद्धि करने के लिए 35 डिग्री तक के तापमान की आवश्यकता होती है|
लौकी की किस्मे (Gourd Varieties)
वर्तमान समय में लौकी की कई किस्मे देखने को मिल जाती है | इसमें अधिक पैदावार के लिए संकर किस्मो को तैयार किया गया है | ऐसी ही कुछ किस्मो के बारे में बताया गया है |
काशी गंगा (Kashi Ganga Gourd)
लौकी की इस किस्म को अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है | यह लगभग 400 से 450 क्विंटल के आसपास प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पैदावार देती है | इसमें हरे तथा सामान्य आकार के फल होते है, यह लम्बाई में एक से डेढ़ फीट तक लम्बे होते है | लौकी की यह किस्म बीज रोपाई के 50 से 55 दिन बाद फल देना आरम्भ कर देते है |
नरेंद्र रश्मि किस्म के पौधे (Narendra Rashmi Gourd)
पौधों की इस किस्म में फल वजन में लगभग एक किलो तक के होते है | इसमें फल हल्के रंग के होते है, तथा बीज रोपाई के लगभग 60 दिन बाद पौधों में फल तोड़ने के लिए तैयार हो जाते है | इसमें प्रति हेक्टयेर 300 क्विंटल का उत्पादन होता है |
अर्को बहार (Urco Bahar Gourd)
लौकी की इस किस्म को बारिश और गर्मियों के मौसम में उगाया जाता है | इस किस्म के फल सीधे व माध्यम आकार होते है तथा रंग में हल्के हरे होते है | इसमें एक फल का वजन लगभग एक किलो तक का होता है | बीज रोपाई के 50 से 60 दिन के उपरांत इसके फल तोड़ाई के लिए तैयार हो जाते है | पैदावार के मामले में यह लगभग 450 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देता है|
काशी बहार (Kashi Bahar Gourd)
यह लौकी की एक संकर किस्म है, यह अधिक पैदावार वाली किस्म होती है | जिसमे प्रति हेक्टेयर 520 क्विंटल के आसपास उपज होती है | यह गरमी तथा बारिश दोनों ही मौसम में उगाई जाने वाली किस्म है | इसमें पौधों की प्रारंभिक गांठो पर ही फल लगना शुरू हो जाते है | बीज रोपाई के लगभग 60 दिन बाद इसके फल तोड़ने के लिए तैयार हो जाते है | इसमें लौकी सामान्य आकार तथा हरे रंग की होती है | इसके अतिरिक्त भी लौकी की कई किस्मे पायी जाती है, जो कि कम समय में अधिक पैदावार देती है|
लौकी के खेत की जुताई का तरीका (Method of Tillage Of Gourd Field)
लौकी की फसल को करने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर लेनी चाहिए, जिससे खेत में की गयी पुरानी फसल के सारे अवशेष नष्ट हो जाये | इसके बाद खेत की गहरी जुताई कर देनी चाहिए गहरी जुताई के लिए पलाऊ या तवे वाले हलो का उपयोग करना चाहिए | इसके बाद खेत में रोटावेटर को चलवा कर मिट्टी में मौजूद मिट्टी के ढेलो को तोड़ उन्हें भुरभुरा और समतल बना दे | मिट्टी के समतल हो जाने के पश्चात् खेत में लौकी के पौधों को लगाने के लिए क्यारियों को तैयार कर ले |
क्यारी धोरे नुमा तथा 10 से 15 फीट दी दूरी पर बनाये, इसके अतिरिक्त बॉस की लकड़ियों का जाल बना कर भी इसकी खेती को किया जा सकता है| इसके बाद खेत में बानी क्यारियों में उचित मात्रा में गोबर की खाद और उवर्रक को डालकर अच्छे से मिला दे| इस प्रक्रिया को पौधों की रोपाई के लगभग 20 दिन पहले की जानी चाहिए|
लौकी पौधों को कैसे तैयार करे (Prepare Gourd Plants)
यदि आप चाहे तो सीधे बीजो को खेत में लगाकर भी इसकी खेती कर सकते है | इसके लिए आपको तैयार की गयी नालियों में बीजो को लगाना होता है| बीजो की रोपाई से पहले तैयार की गयी नालियों में पानी को लगा देना चाहिए उसके बाद उसमे बीज रोपाई करना चाहिए|
लौकी की जल्दी और अधिक पैदावार के लिए इसके पौधों को नर्सरी में तैयार कर ले फिर सीधे खेत में लगा दे| पौधों को बुवाई के लगभग 20 से 25 दिन पहले तैयार कर लेना चाहिए| इसके अतिरिक्त बीजो को रोग मुक्त करने के लिए बीज रोपाई से पहले उन्हें गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए | इससे बीजो में लगने वाले रोगो का खतरा कम हो जाता है, तथा पैदावार भी अधिक होती है|
लौकी के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Right Time and Way To Plant Gourd Seeds)
खेत में बीजो की रोपाई से पहले खेत में तैयार की गयी क्यारियों को पानी से भर देना चाहिए इसके बाद बीजो की रोपाई क्यारियों में दोनों तरफ मेड के अंदर करना चाहिए | बीजो की रोपाई में प्रत्येक बीज के बीच दो से तीन फ़ीट की दूरी होना आवश्यक होता है | एक हेक्टेयर खेत में लगभग दो किलो बीज की जरूरत होती है |
यदि आप पौधों की सहायता से इसकी खेती को करना चाहते है तो इसके लिए पौधों को खेत में हल्का सा गड्डा कर उसमे लगा देना चाहिए | इसके बाद उसे मिट्टी से अच्छी तरह से दबा देना चाहिए | पौधों को खेत में लगाने से पहले नर्सरी में 20 से 25 दिन पहले बीजो तो तैयार कर लिया जाता है |
बारिश के मौसम में इसकी खेती करने के लिए बीजो की जून के महीने में रोपाई कर देनी चाहिए | इसके अतिरिक्त पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी रोपाई को मार्च या अप्रैल के महीने में करना चाहिए |
समतल भूमि में की गयी लौकी की खेती को किसी सहारे की जरूरत नहीं होती है | ऐसी स्थिति में इसकी बेल जमीन में फैलती है, किन्तु जमीन से ऊपर इसकी खेती करने में इसे सहारे की जरूरत होती है | इसके लिए खेत में 10 फ़ीट की दूरी पर बासो को गाड़कर जल बनाकर तैयार कर लिया जाता है, जिसमे पौधों को चढ़ाया जाता है | इस विधि को अधिकतर बारिश के मौसम में अपनाया जाता है|
लौकी के पौधों की सिंचाई व उवर्रक की सही मात्रा (The Correct Amount of Irrigation and Fertilizer of the Gourd Plant)
लौकी के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | यदि रोपाई बीज के रूप में की गयी है, तो बीज को अंकुरित होने तक नमी बनाये रखना होता है | यदि रोपाई पौधों के रूप में की गयी है, तो पौधे रोपाई के तुरंत बाद खेत में पानी लगा देना चाहिए | बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर पौधों की सिंचाई करनी चाहिए | बारिश के मौसम के बाद इसकी सप्ताह में एक बार सिंचाई करते रहना चाहिए |
अधिक गर्मियों के मौसम में इन्हे सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है, इसलिए इन्हे 3 से 4 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए | जिससे पौधों में नमी बनी रहे, और जब पौधों पर फल बनने लगे तब हल्की- हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए जिससे फल अधिक मात्रा में प्राप्त हो सके |
लौकी की खेती में सही उवर्रक के लिए खेत को तैयार करते प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 200 से 250 क्विंटल पुरानी गोबर की खाद को अच्छे से मिट्टी में मिला देना चाहिए, या फिर N.P.K के दो बोरे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालनी चाहिए | इसमें से एक बोरे को खेत में तैयार की गयी नालियों में डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला दे जबकि दूसरे बोरे को आधा – आधा कर पौधों की सिंचाई के समय डालें | बीजो की रोपाई के लगभग 40 दिन बाद आधा बोरा तथा पौधों में फूल बनने के दौरान आधा बोरा पौधों में डालना चाहिए|
लौकी के पौधों में खरपतवार नियंत्रण कैसे करे (Gourd Weed Control)
लौकी के पौधों को उवर्रक की अधिक मात्रा दी जाती है, इसलिए इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण पर अधिक ध्यान देना चाहिए | क्योकि खरपतवार के हो जाने से इसके पौधों को उवर्रक की मात्रा अच्छे से नहीं मिल पाती है | लौकी के पौधों में खरपतवार पर नियंत्रण प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही तरीको से की जा सकती है | प्राकृतिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण करने के लिए पौधों की समय – समय पर निराई – गुड़ाई करते रहना चाहिए |
रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण के लिए ब्यूटाक्लोर का छिड़काव जमीन में बीज रोपाई से पहले तथा बीज रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए| खरपतवार के नियंत्रण से पौधे अच्छे से वृद्धि करते है, तथा पैदावार भी अच्छी होती है|
लौकी के पौधों में लगने वाले कीट रोग एवं उनकी रोकथाम (Pest Diseases and Their Prevention in Gourd Plants)
बाकि सभी पौधों की लौकी के पौधों में भी कई तरह के कीट रोग दिखाई देते है | यह कीट रोग पौधों और फलो दोनों की ही कई तरह से हानि पहुंचाते है | यहाँ आपको ऐसे ही कुछ रोगो और उनकी रोकथाम के बारे में बताया गया है:-
सफेद मक्खी कीट रोग (White Fly)
यह एक तरह का सामान्य रोग है, जो कि ज्यादातर फसलों में देखने को मिलता है | यह सफ़ेद कीट रोग पौधों की पत्तियों को ज्यादा हानि पहुँचाता है | यह सफ़ेद मक्खी पत्तियों की निचली सतह में रहकर पत्तियों का रस चूस लेता है, जिससे पत्तिया पीली होकर नष्ट हो जाती है | इस रोग से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड या एन्डोसल्फान का छिड़काव पौधों पर उचित मात्रा में करना चाहिए |
लाल कद्द भृंग तथा चेपा कीट रोग
लाल कद्द भृंग कीट रोग में पौधों की पत्तियों में ज्यादा हानि होती है | यह नारंगी रंग का कीट होता है, जिस पर कई रंग के धब्बे दिखाई देते है | यह कीट अपनी हर अवस्था में पौधों को हानि पहुँचाता है, इस कीट का लार्वा पौधों के तनो और फलो को ज्यादा नुकसान पहुँचाता है | इस रोग की रोकथाम के लिए एमामेक्टिन या कार्बेरिल का उचित मात्रा में छिड़काव पौधों पर करना चाहिए |
चेपा रोग गर्मियों के मौसम में अधिक देखने को मिलते है | यह कीट हल्के पीले रंग के होते है | चेपा रोग पौधों के कोमल भागो का रस चूसकर सम्पूर्ण पौधे को पूरी तरह से नष्ट कर देता है | यह पौधों पर झुण्ड बना कर लगते है, इस तरह के रोगो की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL या डाइमेथेएट का उचित मात्रा में पौधों पर छिड़काव करना चाहिए|
कीटनाशक दवाओं के नाम और प्रयोग
लौकी के फलो की तुड़ाई पैदावार और लाभ (Yields and Benefits of Gourd Fruit)
बीज रोपाई के लगभग 50 दिनों के बाद लौकी के फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है | जब फल सही आकार और दिखने में ठीक लगे तब उनकी तुड़ाई कर ले | फलो को तोड़ते समय यह जरूर ध्यान दे, कि उसके डंठल से कुछ दूरी पर किसी धारदार से काटे | इससे फल कुछ समय तक ताज़ा बना रहता है | फलो की तुड़ाई के तुरंत बाद उन्हें पैक कर बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए | फलो की तुड़ाई शाम या सुबह दोनों ही समय की जा सकती है |
लौकी की फसल में पैदावार की बात करे, तो इसकी फसल दो से तीन महीने में तैयार हो जाती है | इसकी खेती कम मेहनत और कम खर्च में अच्छी पैदावार देती है| यह एक हेक्टेयर में लगभग 350 से 500 क्विंटल तक की पैदावार करती है | लौकी का बाजारी भाव 5 से 10 रूपए प्रति किलो के हिसाब से होता है, जिससे किसान भाई एक हेक्टेयर में लगभग दो लाख तक की कमाई कर सकते है|