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ककड़ी की खेती (Cucumber Farming) से सम्बंधित जानकारी
ककड़ी एक कद्दू वर्गीय फसल है, जिसकी खेती नगदी फसल के लिए की जाती है | ककड़ी एक भारतीय मूल की फसल है,जिसे जायद की फसल के साथ उगाया जाता है | इसके फल एक फ़ीट तक लम्बे होते है | ककड़ी को मुख्य रूप से सलाद और सब्जी के लिए इस्तेमाल किया जाता है | गर्मियों के मौसम में ककड़ी का सेवन अधिक मात्रा में किया जाता है | यह लू से बचाने में भी सहायक है, तथा मानव शरीर के लिए अधिक लाभकारी भी होती है |
ककड़ी के पौधे लता के रूप में फैलकर विकास करते है | भारत में ककड़ी की खेती लगभग सभी जगहों पर की जाती है | किसान भाई इसकी खेती कर अच्छी कमाई भी करते है | यदि आप भी ककड़ी की खेती करने का मन बना रहे है, तो यहाँ आपको ककड़ी की खेती कैसे करें (Cucumber Farming in Hindi) तथा ककड़ी की खेती का समय इसके बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है, जिसके माध्यम से आप अच्छी खेती कर पाएंगे |
ककड़ी की खेती कैसे करें (Cucumber Farming in Hindi)
ककड़ी की खेती लिए उससे सम्बंधित सभी प्रकार की जानकारी का होना बहुत जरूरी होता है, इसलिए यहाँ इसके बारे में अवगत कराया गया है, इसके माध्यम से ककड़ी की उन्नत खेती करके लाभ कमा सकते है:-
ककड़ी की खेती के लिए सहायक मिट्टी (Cucumber Cultivation Auxiliary Soil)
सामान्य तौर पर ककड़ी की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है | किन्तु कार्बनिक पदार्थो से युक्त मिट्टी में ककड़ी की पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त हो जाती है, तथा बलुई दोमट मिट्टी भी काफी बेहतर मानी जाती है | इसकी खेती में भूमि जल निकासी वाली होनी चाहिए, जल भराव वाली भूमि में ककड़ी की खेती न करे | ककड़ी की खेती में सामान्य P.H मान वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है |
ककड़ी की खेती में उपयुक्त जलवायु और तापमान (Cucumber Cultivation Suitable Climate and Temperature)
ककड़ी की फसल को समशीतोष्ण जलवायु की जरूरत होती है | सामान्य बारिश के मौसम में इसके पौधे ठीक से विकास करते है | किन्तु गर्मियों का मौसम पैदावार के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है | ठंड जलवायु फसल के लिए अच्छी नहीं होती है |
ककड़ी के बीज 20 डिग्री तापमान पर अच्छे से अंकुरित होते है, तथा पौध विकास के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान (Temperature) उपयुक्त होता है | इसके पौधे 35 डिग्री तापमान तक ठीक से विकास कर लेते है, किन्तु इससे अधिक तापमान पौधों के लिए अच्छा नहीं होता है |
ककड़ी की उन्नत किस्में (Cucumber Improved Verities)
ककड़ी की बहुत कम उन्नत किस्में देखने को मिलती है | किन्तु कुछ संकर प्रजातियां है, जिन्हे किसान भाई अधिक पैदावार देने के लिए उगाते है |
क्रं सं. | उन्नत क़िस्म | उत्पादन समय | उत्पादन |
1. | जैनपुरी ककड़ी | 80 से 85 दिन पश्चात् | 150 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
2. | अर्का शीतल | 90 से 100 दिन पश्चात् | 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
3. | पंजाब स्पेशल | 90 से 95 दिन पश्चात् | 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
4. | दुर्गापुरी ककड़ी | 90 से 100 दिन में | 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
5. | लखनऊ अर्ली | 75 से 80 दिन में | 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
6. | 708 | 80 दिन पश्चात् | 140 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |
ककड़ी की फसल के लिए भूमि की तैयारी और उवर्रक (Cucumber Field Preparation and Fertilizer)
सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है | इसके बाद उसमे 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है | गोबर की खाद डालने के बाद खेत की अच्छे से जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद अच्छे से मिल जाती है | खाद को मिट्टी में मिलाने के पश्चात् खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है | पलेव के बाद मिट्टी सूखने तक खेत को ऐसे ही छोड़ दे |
मिट्टी के सूख जाने पर रोटावेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है | भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है | इसके बाद बीजो की रोपाई के लिए खेत में मेड़ या फिर धोरेनुमा क्यारियों को तैयार कर लिया जाता है | ककड़ी की खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने से पहले मिट्टी की जांच कर ली जाती है, जिसके बाद ही मिट्टी में पर्याप्त रासायनिक खाद को डालना होता है |
इसके लिए खेत की आखरी जुताई के समय दो से तीन बोरे एन.पी.के. की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के हिसाब से करना होता है | इसके अतिरिक्त 25 KG यूरिया की मात्रा को फूल के विकास के दौरान देना होता है |
ककड़ी की खेती का समय,बीज/पौध रोपाई एवं तरीका (Cucumber Seeds/Plants Plantation time and Method)
ककड़ी के बीजो की रोपाई बीज और पौध दोनों ही तरीको से की जाती है | बीज के द्वारा रोपाई करने के लिए एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 3 KG बीजो की आवश्यकता होती है, तथा पौध के माध्यम से रोपाई के लिए दो से ढाई किलो बीज लगते है | पौध रोपाई के लिए पौधों को 20 से 25 दिन पूर्व नर्सरी में तैयार कर लेना होता है | इसके अलावा यदि आप चाहे तो इन पौधों को किसी रजिस्टर्ड नर्सरी से भी खरीद सकते है |
बीज के माध्यम से रोपाई के लिए खेत में एक से डेढ़ मीटर की दूरी पर मेड़ो को तैयार कर लिया जाता है | इन मेड़ो के दोनों और बीजो की रोपाई की जाती है, तथा धोरेनुमा क्यारियों में बीज और पौधों को मेड़ के अंदर की और लगाना होता है | इन धोरेनुमा क्यारियों को दो से तीन मीटर की दूरी पर बनाना होता है, तथा पौधों की रोपाई एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी पर की जाती है |
भारत में ककड़ी के बीज और पौध की रोपाई अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग मौसम में की जाती है |भारत के उत्तरी क्षेत्रों में इसकी फसल जायद की फसल के लिए की जाती है | इस दौरान बीजो को मार्च माह में ही लगाना होता है, तथा ठंडे पर्वतीय क्षेत्रों में पौध रोपाई मार्च माह के पश्चात् की जाती है | दक्षिण भारत में पौधों को जनवरी माह के बाद लगाना होता है |
ककड़ी के पौधों की सिंचाई (Cucumber Plants Irrigation)
ककड़ी के पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है | इसकी प्रारंभिक सिंचाई को पौध रोपाई के तुरंत बाद करना होता है | गर्मियों के मौसम में ककड़ी के पौधों को सप्ताह में दो बार पानी देना होता है | क्योकि यदि भूमि में नमी की मात्रा कम होती है, तो पैदावार में असर देखने को मिलता है | इसलिए पौधों पर फूल बनने के दौरान पौधों की हल्की-हल्की सिंचाई अवश्य करे |
ककड़ी के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Cucumber Plants Weed Control)
ककड़ी के पौधे लताओं के रूप में विकास करते है | इसलिए ककड़ी की फसल में खरपतवार नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है | इसके पौधे भूमि की सतह पर ही फैलते है, जिससे उन्हें रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है | खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई – गुड़ाई विधि का इस्तेमाल किया जाता है |
इसकी पहली गुड़ाई पौध रोपाई के 20 से 25 दिन बाद की जाती है, तथा बाद की गुड़ाई को 20 दिन के अंतराल में करना होता है | इसकी फसल में 2 से 3 गुड़ाई ही पर्याप्त होती है |
ककड़ी के पौधों में लगने वाले रोग एवं उपचार (Cucumber Plants Disease and Treatment)
लाल भृंग
इस क़िस्म का रोग पौधों की पत्तियो पर आक्रमण करता है | जिसके बाद पत्तियों पर कई सारे भिन्न आकार के छिद्र दिखाई देने लगते है | इस रोग से प्रभावित पौधा वृद्धि करना बंद कर देता है, तथा रोग से अधिक प्रभावित होने पर पूरी फसल के ख़राब होने का खतरा होता है | इस रोग से बचाव के लिए पौधों पर कार्बारिल या साय पर मेथ्रिन का छिड़काव करे |
डाउनी मिल्ड्यू
इस क़िस्म का रोग पौधों की पत्तियों पर जीवाणु के रूप में आक्रमण करता है, तथा रोग से प्रभावित पत्तिया पूर्ण रूप से पीली पड़कर गिर जाती है | जिससे पौधे का विकास पूरी तरह से रुक जाता है | इस रोग से बचाव के लिए मैन्कोजेब का छिड़काव पौधों पर करे |
काले धब्बे का रोग
इस क़िस्म का रोग ककड़ी के फलो पर देखने को मिलता है | काला धब्बा रोग से प्रभावित फलो पर काले रंग के गहरे धब्बे दिखाई देने लगते है | रोग से अधिक प्रभावित होने पर धब्बो का आकार बढ़ जाता है | इस रोग से बचाव के लिए फाईटोलान या ब्लाईटाक्स की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करे |
चूर्णिल आसिता
यह एक सामान्य रोग है, जो लतादार फसलों पर अक्सर देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर आरम्भ में सफ़ेद रंग का चूर्ण देखने को मिलता है, तथा रोग के अधिक अक्रामक होने पर पूरी पत्ती पर सफ़ेद रंग का पाउडर बन जाता है | ककड़ी के पौधों पर केराथेन एल सी या हेक्साकोनाजोल का छिड़काव कर इस रोग से बचा सकते है |
फल मक्खी
इस क़िस्म का रोग पैदावार को अधिक प्रभावित करता है | फल मक्खी रोग के कीट का लार्वा फलो को अंदर से खाकर नष्ट कर देता है | इस रोग से अधिक प्रभावित होने पर पैदावार पर फर्क देखने को मिलता है | इस रोग से बचाव के लिए मैलाथियान या डाईमिथोएट का छिड़काव पौधों पर क रे|
ककड़ी के फलो की तुड़ाई, पैदावार एवं लाभ (Cucumber Fruit Harvesting Yield and Benefits)
ककड़ी के पौधे 80 से 90 दिन पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देता है | जब इसके फल कोमल और मुलायम हो जाये, तब इनकी तुड़ाई की जानी चाहिए | इसके फल सप्ताह में तीन बार तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है | एक हेक्टेयर के खेत से 200 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है | ककड़ी का बाज़ारी भाव 1 रुपए से 3 रूपए प्रति ककड़ी होता है | जिससे किसान भाई ककड़ी की खेती कर एक से दो लाख तक की कमाई कर अधिक लाभ कमा सकते है |