जुगनी की खेती कैसे करें | Zucchini Farming in Hindi | जुकीनी की खेती से कमाई | चप्पन कद्दू क्या है


जुगनी की खेती (Zucchini Farming) से सम्बंधित जानकारी

जुगनी की खेती कद्दू वर्गीय फसल के लिए की जाती है | इसे चप्पन कद्दू के नाम से भी जानते है | यह एक लतावर्गीय पौधा है, जिसकी लम्बाई 2 से 3 फ़ीट तक ही होती है | चप्पन कद्दू का उपयोग सब्जी के रूप में खाने के लिए करते है | यह शरीर में केरोटीन की मात्रा को पूरा करता है, तथा इसका उपयोग कैंसर की बीमारी में भी लाभकारी है | चप्पन कद्दू में पोटेशियम और विटामिन ए, सी जैसे पोषक तत्व पाए जाते है | फिल्म स्टार इस सब्जी को खाना खूब पसंद करते है, क्योकि यह वजन को नियंत्रित रखने में बहुत ही लाभकारी है| चप्पन कद्दू की कई किस्मो को उगाया जाता है, जिन्हे अलग-अलग आकार और रंग से जानते है |

इसमें लम्बे, गोल आकार के हरे और पीले कद्दू शामिल है, जिसमे पीले रंग वाले चप्पन कद्दू को जुकनी कहते है, तथा धारी दार हरे चप्पन को ऑस्ट्रेलियन ग्रीन कहा जाता है | यदि आप भी चप्पन कद्दू की खेती कर कम समय में पैसा कामना चाहते है, तो यहाँ पर आपको जुगनी की खेती कैसे करें (Zucchini Farming in Hindi) तथा जुगनी की खेती से कमाई और चप्पन कद्दू क्या है, आदि के बारे में जानकारी दी जा रही है |

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चप्पन कद्दू क्या है (Chappan Pumpkin)

चप्पन कद्दू न्यूमतम गर्मी और पाला रहित स्थानों में कम समय में उगने वाली एक कद्दू वर्गीय फसल है| इसकी खेती पूरे वर्ष किसी भी मौसम में पॉलीहॉउस तकनीक का इस्तेमाल कर की जा सकती है | सामान्य तौर पर यह गर्मियों की फसल है, किन्तु बाज़ारो में इसकी मांग हमेशा ही बनी रहती है | इसलिए पॉलीहॉउस में इसका उप्तादन कर पूरे वर्ष ही छप्पन कद्दू की फसल प्राप्त की जा सकती है | अन्य कद्दू वर्गीय फसलों की तुलना में इसका छिलका कड़ा और पकने पर गूदा खाने योग्य नहीं होता है, जिस वजह से इसका सेवन तोड़कर हरे फल के रूप में करते है |

चप्पन कद्दू के लिए सहायक मिट्टी व् तापमान (Chappan Pumpkin Supporting Soil and Temperature)

चप्पन कद्दू की फसल में उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है | इसके अलावा भूमि में कार्बनिक पदार्थो की उचित मात्रा होनी चाहिए | अम्लीय या क्षारीय भूमि में चप्पन कद्दू की खेती बिल्कुल न करे | 6.5 से 7.5 के मध्य पी. एच. मान वाली भूमि को इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है |

उष्णकटिबंधीय जलवायु में इसकी फसल अच्छी प्राप्त होती है, तथा भारत में चप्पन कद्दू की खेती रबी के मौसम में की जाती है | इसके पौधे सर्दी तो सहन कर लेते है, किन्तु सर्दियों में गिरने वाला पाला हानिकारक होता है | अधिक गर्मी में निकलने वाली धूप भी पौधों के विकास और फलो को प्रभावित करती है | चप्पन कद्दू के फलो को सामान्य तापमान की जरूरत होती है |

चप्पन कद्दू की उन्नत किस्में (Chappan Pumpkin Improved Varieties)

आस्ट्रेलियन ग्रीन

इस क़िस्म का पौधा झाड़ीनुमा होता है, जिसमे पीले रंग के फूल निकलते है, तथा फल लम्बे आकार और गहरे हरे रंग के होते है | इसके फल बीज रोपाई के 60 से 65 दिन पश्चात् तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है, जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 200 क्विंटल तक होता है |

पूसा अलंकार

यह एक संकर क़िस्म है, जिसमे सामान्य ऊंचाई वाले पौधे निकलते है | इस क़िस्म के पौधों पर आने वाले फल चमकीली धारिया लिए हुए हल्के हरे रंग के होते है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 200 से 250 क्विंटल का उत्पादन दे देती है, तथा फल आकार में भी लम्बा होता है |

अर्ली यलो प्रोलीफिक

इस क़िस्म को पककर तैयार होने में बहुत ही कम समय लगता है | इसमें निकलने वाले फलो का गुदा अधिक समय तक मुलायम रहता है, जिस वजह से इसे अधिक समय तक भंडारित कर सकते है | इसमें निकलने वाले फल आकार में गोल और हल्के लंबे होते है |

पंजाब चप्पन कद्दू

इस क़िस्म के पौधे बुवाई के 55 से 60 दिन पश्चात् पककर तैयार हो जाते है | इसके पौधों पर अधिक पत्तिया निकलती है, तथा फूल गहरे हरे रंग के होते है | यह प्रति हेक्टेयर के खेत में 100 क्विंटल का उत्पादन देने वाली क़िस्म है, जिसमे सफ़ेद धब्बा रोग नहीं लगता है |

मेक्सिको चप्पन कद्दू

यह चप्पन कद्दू की एक विदेशी क़िस्म है, जिसे तैयार होने में 60 से 65 दिन का समय लग जाता है | इसमें निकलने वाले फल पीले रंग के लंबे व् गोल होते है | मध्य प्रदेश राज्य में इस क़िस्म को अधिक उगाया जाता है |

चप्पन कद्दू के खेत की तैयारी (Chappan Pumpkin Fields Preparation)

चप्पन कद्दू की खेती में साफ और भुरभुरी मिट्टी होनी चाहिए| इसके लिए आरम्भ में खेत की सफाई कर गहरी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है | जुताई के बाद खेत में गोबर की खाद डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला दे | इसके बाद पानी लगाकर पलेव कर दे | पलेव के बाद जब खेत की मिट्टी सूख जाए तो रोटावेटर लगाकर खेत की जुताई कर दी जाती है | इसके बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर देते है | समतल भूमि में बीज रोपाई के लिए मेड़ तैयार कर ली जाती है |

चप्पन कद्दू के खेत में खाद की मात्रा (Chappan Pumpkin Field Quantity of Manure)

चप्पन कद्दू की फसल में उवर्रक की जरूरत उतनी ही होती है, जितनी अन्य कद्दू वर्गीय फसलों को होती है| इसके लिए खेत की पहली जुताई के तुरंत बाद उसमे 12 से 15 गाड़ी सड़ी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में मिला दिया जाता है | रासायनिक उवर्रक के तौर पर खेत की अंतिम जुताई के दौरान तक़रीबन दो बोरा एन. पी. के. का छिड़काव करे | इसके अलावा सिंचाई के साथ 20 KG यूरिया का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के खेत में करे|

चप्पन कद्दू बीज रोपाई विधि (Chappan Pumpkin Seed Transplanting Method)

चप्पन कद्दू के फसल की रोपाई बीज के माध्यम से की जाती है | इन बीजो को बुवाई से पूर्व कार्बेन्डाजिम, ट्राइकोडरमा विराइड या थीरम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेते है | एक हेक्टेयर के खेत में बुवाई के लिए तक़रीबन 5 से 7 KG बीज पर्याप्त होते है | इन बीजो को खेत में बनाई गई मेड़ पर लगाना होता है | पंक्तियों में तैयार मेड़ पर बीजो को लगाने के लिए ड्रिल विधि का इस्तेमाल करते है | इन मेड़ो के मध्य डेढ़ फ़ीट की दूरी रखी जाती है, तथा बीजो के मध्य एक फ़ीट की दूरी रखे | भूमि में बीजो को दो से तीन सेंटीमीटर की गहराई में लगाना होता है, ताकि अंकुरण ठीक तरह से हो सके |

चूंकि चप्पन कद्दू की फसल रबी की फसल के साथ बोई जाती है, इसलिए बीजो को अक्टूबर से नवंबर माह के मध्य तक लगाया जाता है | पर्वतीय इलाको में जहा बर्फ़बारी होती है, वहां बीजो को जनवरी से मार्च के मध्य लगाना उचित होता है |

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चप्पन कद्दू के पौधों की सिंचाई (Chappan Pumpkin Plants Irrigation)

चप्पन कद्दू के खेत में बीज रोपाई के तुरंत बाद पानी लगा देना चाहिए | इसके बीजो को अंकुरण के समय तक नमी की जरूरत होती है | नम भूमि में बीजो का अंकुरण ठीक तरह से होता है | इसके बाद जब बीज अंकुरित हो चुके हो तो पौधों को 10 दिन के अंतराल में पानी दे | कद्दू की फसल को तैयार होने तक 8 से 10 सिंचाई करनी पड़ती है |

जुकुनी की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Jugni Crop Weed Control)

जुकुनी की खेती में फसल को बचाने के लिए खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी होता है | इसके लिए प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही तरीको का इस्तेमाल किया जाता है | रासायनिक विधि में खेत में व्यूटाक्लोर का छिड़काव बीज रोपाई के तुरंत बाद करना होता है| प्राकृतिक तरीके से खरपतवार को नष्ट करने के लिए फसल की निराई – गुड़ाई की जाती है | जुगनी के फसल की पहली गुड़ाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद की जाती है, तथा बाद की गुड़ाई 15 दिन के अंतराल में करे | इसकी फसल में अधिकतम 3 से 4 गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण कर सकते है |

जुगनी के फसल रोग व् उपचार (Jugni Crop Diseases and Treatment)

रोगरोग का प्रकारउपचार |
सफ़ेद धब्बाविषाणु जनित रोगकार्बेन्डाजिम का छिड़काव पौधों पर करे |
फल मक्खी  कीट रोग  जब पौधों पर फल बनने लगे तब 10 से 15 दिन के अंतराल में नीम के तेल का छिड़काव करे |
चेपाकीटथाइमैथोक्सम का छिड़काव पौधों पर करे |
कातरा ( काली सुंडी )सुंडी रोगडाइमेथोएट या मैलाथियान का छिड़काव पौधों पर करे |

जुकुनी की खेती से कमाई (Zucchini Farming Income)

जुकुनी के पौधे बीज बुवाई के तक़रीबन 60 से 70 दिन पश्चात् उत्पादन देना आरम्भ कर देते है | इसके फलो की तुड़ाई कच्चे के रूप में ही आरम्भ कर दी जाती है | जब पौधों पर लगे फलो का रंग आकृषक और आकार अच्छा दिखाई देने लगे तब उनकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए | तुड़ाई के बाद फलो को बाजार में बेचने के लिए एकत्रित कर लेते है | एक हेक्टेयर के खेत में उन्नत किस्मों का औसतन उत्पादन 150 क्विंटल तक होता है| बाजार में एक किलो जुकीनी का भाव 10 रूपए से लेकर 30 रूपए तक होता है | इस हिसाब से जुगनी की एक बार की फसल से किसान भाई डेढ़ से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है |

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