शहतूत (Morus Alba) की खेती कैसे करें ? Sahtut Fruit का वैज्ञानिक नाम, फायदे और नुकसान क्या है


शहतूत (Morus Alba) की खेती से सम्बंधित जानकारी

शहतूत की खेती रेशम के कीट के लिए की जाती है | इसे मोरस अल्वा के नाम से भी पुकारते है, तथा इसका वैज्ञानिक नाम मॉरस स्पेसीज़ है। शहतूत को चीनी मूल का पौधा कहते है | यह एक बहुवर्षीय पौधा है, जो 40 से 60 फ़ीट तक ऊँचा होता है | किन्तु इसका जीवन काल अन्य अधिक उम्र वाले वृक्षों से कम होता है | शहतूत का उपयोग कर कई ओषधिया बनाई जाती है, जैसे रक्त टॉनिक और चक्कर आना, टिनिटस व कब्ज के उपचार में भी शहतूत कारगर होता है | चीन, जापान और कोरिया में इसका जूस काफी लोकप्रिय है |

शहतूत से रेशम की कीट प्राप्त करने के अलावा फलो का उत्पादन भी लिया जाता है | जिसमे इसके फल से जैली, जूस और कैंडी तैयार की जाती है | भारत में शहतूत की खेती हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, आंध्रा प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटका में की जाती है | यदि आप भी एक किसान की तरह शहतूत की खेती करना चाह रहे है, तो इस लेख में आपको शहतूत (Morus Alba) की खेती कैसे करें, Sahtut Fruit का वैज्ञानिक नाम, तथा शहतूत के फायदे और नुकसान क्या है इसके बारे में बता रहे है |

रेशम की खेती कैसे करें 

शहतूत की खेती में उपयुक्त भूमि व वातावरण (Mulberry Cultivation Suitable Land and Environment)

उचित जल निकासी और उपजाऊ भूमि में शहतूत की खेती करना चाहिए | इसे काली चिकनी मिट्टी में भी ऊगा सकते है, जिसका P.H. मान 6 से 7 के मध्य हो | शहतूत का पौधा समशीतोष्ण जलवायु वाला होता है, इसके पौधे सर्दियों के मौसम में नहीं बढ़ पाते है, तथा सर्दियों का पाला भी हानिकारक होता है | इसके अलावा गर्मी और बारिश का मौसम फसल के लिए अच्छा होता है | शहतूत का फल गर्मी के मौसम में पककर तैयार हो जाता है |

इसके पौधों को आरम्भ में विकसित होने के लिए 20 से 25 डिग्री का तापमान उपयुक्त होता है| इसके बाद पूर्ण रूप से विकसित पौधा अधिकतम 40 और न्यूनतम 4 डिग्री तापमान को सहन कर लेता है | किन्तु अधिक समय तक न्यूनतम तापमान के बने रहना पौधों के लिए हानिकारक है |

शहतूत खाने के फायदे औऱ नुकसान क्या है (Mulberry Advantages and Disadvantages)

फायदे (Benifits)

  • शहतूत में उपयुक्त फाइबर होता है, जो एक सर्विंग में ही आपको दैनिक जरूरत के मुताबिक तक़रीबन 10% तक फाइबर दे देता है | यदि फाइबर पाचन तंत्र शक्ति प्रदान करना है, जिससे भोजन पाचन की गति बढ़ जाती है, औऱ पेट में ऐठन, ब्लोटिंग की समस्या नहीं होती है |
  • इसमें आयरन की उच्च मात्रा होती है, जो कि सभी फलो में मिलने वाला एक सामान्य खनिज है | यह लाल रक्त कोशिकाओं की उत्पादन शक्ति को बढ़ाता है |
  • शहतूत में एक महत्वपूर्ण फ्लैवोनॉइड एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है, जिसे रेस्वेराट्रोल कहते है, जो सीधा रक्त वाहिकाओं में तंत्रो को प्रभावित करता है | जिससे रक्त वाहिका में संकुचन की प्रक्रिया होने लगती है | जिस वजह से यह दिल का दौरा जैसी बीमारियों के खतरे को भी कम करता है |
  • शहतूत में विटामिन सी, विटामिन ए, एंथोकायनिन, अन्य पॉलीफेनोलिक औऱ फ़यटोनुट्रिएंट्स के साथ एंटीऑक्सिडेंट के गुण पाए जाते है | जो हमारे शरीर की एंटीऑक्सिडेंट मुक्त कानो से रक्षा करता है, जिससे हमे कैंसर होने का खतरा कम हो जाता है |
  • इसमें पाया जाने वाला ज़ियेजैंथिन शरीर में एंटीऑक्सीडेंट की तरह कार्य करता है, जो रेटिना में होने वाले नुकसान से बचाव करता है, जिससे आँखों में मोतियाबिंद औऱ मैक्युलर डिजनरेशन जैसी समस्या नहीं होती है |
  • शहतूत में कैल्शियम, विटामिन K औऱ आयरन के साथ-साथ मैग्नीशियम औऱ फास्फोरस पाया जाता है, जो हड्डियों के उत्तको का निर्माण करता है | जब हमारे शरीर की वृद्धि हो रही होती है, उस दौरान हमारी हड्डियों को मजबूत बनाए रखने औऱ हड्डियों से जुड़े नुकसान या अन्य हड्डियों की विकार समस्या को नहीं होने देता है |

नुकसान (Harm)

  • शहतूत में अधिक पोटेशियम होता है, यदि आप रोजाना इसका सेवन करते है, तो किडनी से जुड़ी समस्या हो सकती है |
  • अधिक मात्रा में शहतूत खा लेने से पेट दर्द, अपच, उल्टी, डायरिया औऱ पेट फूलने जैसी समस्या हो सकती है, शिशुओं को स्तनपान औऱ गर्भवती महिलाओ को शहतूत नहीं खाना चाहिए |
  • इसमें अधिक सेवन शुगर लेवल कम होने जैसी समस्या पैदा कर सकता है | जिस वजह से इसे शुगर लेवल कम करने वाले फल के लिए भी जाना जाता है | यदि आप डायबिटीज की दवा ले रहे है, तो शहतूत न खाए | क्योकि यह शुगर लेवल को एकदम से गिरा सकता है |
  • यदि आप सामान्य से अधिक शहतूत खा लेते है, तो आपको स्किन एलर्जी की शिकायत हो सकती है | जिन लोगो को पहले से किसी तरह की एलर्जी है, उन्हें डॉक्टर की सलाह लेकर ही शहतूत खाना चाहिए |

शहतूत की उन्नत किस्में (Mulberry Improved Varieties)

  • विक्ट्री 1 :- यह किस्म V-1 नाम से भी जानी जाती है | यह शहतूत की एक संकर किस्म है | जिसे बेर सी-776 और S-30 का संकरण कर तैयार किया गया है | इस पौधे की पत्तियां मोटे आकार में चिकनी औऱ चमकदार होती है | इसमें पौधे की शाखाओ औऱ तनो का रंग भूरा होता है | इस किस्म को रेशम कीट पालन के लिए सबसे अच्छा मानते है |
  • एस 36 :- इस किस्म में पौधे का तना भूरा औऱ गुलाबी रंग का होता है, तथा पत्तियां छोर रहित चिकनी औऱ चमकदार होती है | जो देखने में हरी पीली होती है | यह क़िस्म कम उम्र वाले रेशम कीट पालन के लिए उपयोग में लायी जाती है | इसमें पौधा सामान्य ऊंचाई का होता है |
  • सहाना :- यह भी एक संकर क़िस्म है, जिसे वर्ष 2000 में विकसित किया गया था | शहतूत की यह क़िस्म बहुत ही जल्दी बढ़ने वाली औऱ कम जगह में फैलने वाली होती है | इसमें पत्ती छोर रहित औऱ बड़े आकार वाली होती है | जो गहरे रंग की होती है, तथा पौधे का तना गुलाबी भूरे रंग का होता है |
  • आरसी 1 :- यह क़िस्म संसाधन बाधा 1 नाम से जानी जाती है | यह एक संकर क़िस्म है, जिसे 2005 में बनाया गया था | इस क़िस्म के पौधे अधिक तेजी से वृद्धि करते है, जिसमे निकलने वाली शाखाए गुलाबी होती है, तथा पत्तियां सिरे युक्त मोटी औऱ चमकदार होती है |
  • जी 2 :- इस क़िस्म को एस 34 औऱ एम. मल्टीकाउलिस के साथ संकरण कर तैयार किया गया है | जिसे 2003 में तैयार किया गया था | इस क़िस्म के पौधों पर निकलने वाली पत्ती चमकदार, चिकनी औऱ आकार में बड़ी होती है | जो गहरे हरे रंग की होती है | रेशम कीट पालन के लिए यह क़िस्म अनुकूल होती है |

शहतूत के खेत की तैयारी (Mulberry Field Preparation)

शहतूत का पौधा कई वर्षो तक पैदावार देने के लिए जाना जाता है | इसके पौधों की रोपाई करने से पहले खेत की सफाई कर लेनी चाहिए | इसके लिए खेत में पलाऊ चलाकर खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेषों को नष्ट कर दिया जाता है | कुछ दिनों पश्चात् कल्टीवेटर लगाकर दो से तीन तिरछी जुताई कर देना चाहिए | इसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी के ढेलो को तोड़कर उन्हें भुरभुरा कर दिया जाता है | इसके बाद पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दे| ताकि बारिश के समय खेत में जलभराव न हो |

खेत को तैयार करने के बाद पौध रोपाई के लिए खेत में गड्डो को तैयार किया जाता है | इस दौरान गड्डे से गड्डे के मध्य 3 मीटर की दूरी रखी जाती है, तथा गड्डो को पंक्तियों में तैयार करना चाहिए | इन पंक्तियों के मध्य भी ढाई से तीन मीटर की दूरी रखे | इसके बाद इन तैयार गड्डो में रासायनिक उवर्रक औऱ जैविक खाद की उचित मात्रा को मिट्टी में मिलाकर गड्डो में भर दे | गड्डे पौध रोपाई से तक़रीबन एक महीने पहले तैयार कर लेना चाहिए |

शहतूत के पौध की तैयारी (Mulberry Seedlings Preparation)

शहतूत के पौधों को बीज, जड़ औऱ शाखा के माध्यम से तैयार करते है| बीज द्वारा पौध को तैयार करने के लिए बीजो को उपचारित कर नर्सरी या प्रो-ट्रे में लगाते है| इसके बाद उन्हें पर्याप्त पोषक तत्व देकर उनका विकास करते है | जब पौधा बड़ा हो जाता है, तो उन्हें उखाड़कर खेत में लगा दिया जाता है | इसके अलावा जड़ औऱ शाखाओ के माध्यम से पौध तैयार करने के लिए पौधे की शाखाओ की कटिंग कर उन्हें नर्सरी में लगाते है, इस दौरान शाखा की लम्बाई लगभग आधा फ़ीट हो | पौध तैयार करने में शाखाओ को नर्सरी में 6 इंच की दूरी पर रूटीन हार्मोन में डुबाकर पंक्तियों में लगाते है | कटिंग से पौध विकास के लिए उन्हें उचित मात्रा में पोषक तत्व दिए जाते है | तक़रीबन 6 माह पुराने पौधे को खेत में तैयार गड्डे में लगाते है |

शहतूत के पौध की रोपाई (Mulberry Seedlings Planting)

शहतूत के पौधों की रोपाई पौध के रूप में करते है | इसके लिए पहले से खेत में तैयार गड्डो के बीच में एक छोटा गड्डा बनाते है, औऱ नर्सरी में तैयार पौधों को लगा देते है | इसके बाद पौधों को भूमि से एक इंच की ऊंचाई तक मिट्टी से ढक देते है | इसके बाद पौधों की तुरंत ही सिंचाई कर दी जाती है | सर्दी का मौसम होने पर पौधों को 15 दिन में पानी देना चाहिए, तथा गर्मी के मौसम में पौधों की अधिक सिंचाई करे | इस दौरान सप्ताह में एक बार पौधों को पानी दिया जाता है, तथा बारिश के मौसम में पानी की कमी होने पर ही पानी दे |

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शहतूत के पौधों में उवर्रक (Mulberry Plants Fertilizer)

शहतूत के पौधों को सामान्य से ज्यादा उवर्रक की जरूरत होती है | इसलिए गड्डे तैयार करते समय प्रत्येक गड्डे में 15 से 20 KG पुरानी सड़ी गोबर की खाद के साथ रासायनिक उवर्रक N.P.K. 100 GM की मात्रा को मिट्टी में मिलाए औऱ गड्डो में भर दे | उवर्रक की यह मात्रा शहतूत के पौधों को तीन से चार वर्ष तक दे | इसके बाद जब पौधा पांच वर्ष का हो जाए तो उवर्रक की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए |, तथा पूरी तरह से तैयार हो चुके वृक्ष को सालाना 25 KG जैविक औऱ एक KG रासायनिक उवर्रक दे |

शहतूत फसल खरपतवार नियंत्रण (Mulberry Crop Weed Control)

शहतूत की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकतिक तरीका अपनाया जाता है | इसके लिए खेत में निराई – गुड़ाई की जाती है, औऱ पौधों को नुकसान न हो इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए | पौधों की रोपाई के 20 दिन बाद पहली गुड़ाई की जाती है, तथा वर्ष में केवल 5 से 7 गुड़ाई ही करना होता है |

शहतूत फसल रोग व उपचार (Mulberry Crop Disease and Treatment)

रोगरोग का प्रकारउपचार
सफ़ेद धब्बा रोगजीवाणु जनित रोगसलफैक्स 80 डब्लयु पी का छिड़काव पौधों पर करे|
तना छेदक रोगकीटक्लोरपायरीफॉस की उचित मात्रा को छिद्रो में भरकर उसे चिकनी मिट्टी या रुई से ढक दे|
छाल भक्षक सुंडीकीट जनित रोगपौधों पर मोनोक्रोटोफॉस या मिथाइल पैराथियॉन का छिड़काव करे|
पत्ती झुलसाजलवायु परिवर्तनबविस्टन की छिड़काव पौधों पर करे|
कुंगी रोगजीवाणु रोगपौधों पर बाविस्टिन या ब्लाइटॉक्स की उचित मात्रा का छिड़काव करे|

शहतूत फसल कटाई, पैदावार औऱ लाभ (Mulberry Harvesting Yield and profit)

शहतूत की फसल को मुख्य रूप से पत्तियों का उत्पादन प्राप्त करने के लिए किया जाता है | जिन्हे रेशम कीट पालन के लिए इस्तेमाल में लाते है | शहतूत की पत्तियों को रेशम के कीट भोजन के लिए इस्तेमाल करते है | जिस वजह से पत्तियों में पोषक तत्व का होना आवश्यक होता है | इसलिए पौधों को अधिक मात्रा में उवर्रक देना चाहिए | शहतूत की पत्तियों की तुड़ाई कर उससे रेशम कीट का भोजन तैयार करते है |

इसके अलावा पत्तियों को जैविक खाद बनाने के लिए भी इस्तेमाल में लाते है | एक हेक्टेयर के खेत से तक़रीबन 8 से 10 हज़ार किलो पत्तियों का उत्पादन प्रति वर्ष प्राप्त हो जाता है | जिससे 800 से 900 डी. एफ. एल्स कीटो का पालन कर सकते है | शहतूत के पेड़ो से फलो का उत्पादन भी मिल जाता है | इसके फल पक जाने पर गहरे लाल रंग के हो जाते है | जिन्हे तोड़कर भंडारित कर लिया जाता है, औऱ बाजार में बेचने के लिए भेज देते है | किसान भाई प्रति वर्ष रेशम कीट औऱ फलो से अच्छी कमाई कर लेते है |

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