पौधे के भाग एवं उनके कार्य | Plant Parts and Functions in Hindi (पौधे के अंग)


पौधे के भाग एवं उनके कार्य से सम्बंधित जानकारी

अक्सर ही आपने अपने घर के आस-पास पेड़ पौधों को देखा होगा | जिसमे से इन पौधों का अधिकांश भाग भूमि के अंदर दबा रहता है | इन भागो में फूल, तना, पत्ता और फल होता है | इसके अलावा कुछ भाग भूमि के अंदर होता है, जिसे जड़ कहते है | ज्यादातर पौधों के भाग भूमि के ऊपर ही होते है, जिन्हे पौधों का अंग कहा जाता है | हमारे शरीर के अंगो की भांति ही पौधे के सम्पूर्ण भाग भी महत्वपूर्ण कार्य करते है |

किसी भी पौधे का विशेष भाग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | पौधे का प्रत्येक भाग एक विशेष कार्य को करता है | इन सभी अंगो के ठीक तरह से कार्य करने की वजह से ही पौधा स्वस्थ बना रहता है | इसलिए पौधे के सभी अंग महत्वपूर्ण होते है | इस लेख में आपको पौधे के भाग एवं उनके कार्य तथा Plant Parts and Functions in Hindi (पौधे के अंग) के बारे में जानकारी दे रहे है |

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पौधे के भाग एवं उनके कार्य (Plant Parts and Functions)

पौधे के विभिन्न भाग इस प्रकार है, जड़, तना, पत्ती, फूल, फल |

जड़ का अर्थ (Root Meaning)

मूल या जड़ तन्त्र (Root System) :- किसी पौधे में जड़ उसका सबसे निचला भाग होता है | यह पादप अक्ष का अवरोही भाग होता है, जो मृदा के अंदर वृद्धि करता है | इसे मूल तंत्र या जड़ तंत्र कहते है | इसके बाद जब बीज अंकुरित होने लगता है, तो जो पहला अंग निकलता है, वह मूलाकुर होता है | मूलांकुर ही वृद्धि करके मूसला जड़ बनता है | इसमें से पार्वीय शाखाएँ निकलती है, जो जड़ तंत्र बनाती है | इसके बाद यह शाखाए फैलकर गहराई तक चली जाती है, और पौधे को मिट्टी में जमाए रखती है | जड़ का मुख्य कार्य भूमि से जल और लवणों को अवशोषित कर पौधे के ऊपरी भाग तक पहुँचाना है |

जड़ तंत्र की पहचान (Root System Identification)

  • जड़ का रंग हरा नहीं होता है, क्योकि इसमें पर्णहरित की अनुपस्थिति होती है |
  • पर्व एवं पर्वसंधियों के मध्य भेदभाव नहीं होता है |
  • जड़ में पत्ती और कलियाँ नहीं होती है |
  • वृद्धि धनात्मक और गुरुत्व में वृद्धि होती है |
  • वृद्धि धनात्मक और जल में वृद्धि होती है |
  • जड़ की वृद्धि ऋणात्मक प्रकाशानुवर्ती होती है |

जड़ तंत्र के प्रकार (Root System Types)

मूसला जड़-तंत्र (Tap Root System) :- इसमें जड़-तंत्र का परिवर्धन मूलांकुर द्वारा होता है | इसके बाद वृद्धि से प्राथमिक जड़ बनती है | यह जड़ लगातार बढ़ती रहती है, जिसमे से पार्वीय जड़े निकलना आरंभ करती है | मूसला जड़-तंत्र भूमि में पौधे को जमाए रखती है, क्योकि यह भूमि के अंदर वृद्धि करते हुए काफी गहराई तक पहुंच जाती है | इस तरह की जड़ द्विबीजपत्री पौधे जैसे :- नीम, गुड़हल और चने में होती है |

अपस्थानिक जड़-तंत्र (Adventitious Root System) :- इसमें पहली जड़ छोटी और अल्पविकसित रह जाती है, तथा महीन अवं पतली रेशेदार जड़ मूलांकुर एवं प्रांकुर गुच्छे में बढ़ती है| इसे झकड़ा जड़-तंत्र भी कहते है | इसमें सतही, छोटी, जड़े, कम शाखित और क्षैतिज रूप में विकसित होती है | इसमें जड़े भूमि में अधिक गहराई तक नहीं जा पाती है, जिस वजह से जड़-तंत्र पौधों को जमाए नहीं रख पाता है | यह जड़ तंत्र एकबीजपत्री पौधों जैसे :- गेंहू, घास और मक्का की फसलों में होती है |

मूल या जड़ तंत्र के कार्य (Root System Functions)

  • स्थिरीकरण :- इसमें जड़ पौधे को भूमि में मजबूती से पकड़े रखता है |
  • अवशोषण :- इस प्रक्रिया में पौधे की जड़ मिट्टी से जल और खनिज लवणों को अवशोषित कर पौधे के अन्य भागो तक पहुँचाती है |
  • विशिष्ट प्रकार्य :- जड़ के और भी कई विशिष्ट कार्य होते है, जैसे :- स्वांगीकरण, खाद्य भंडारण, परपोषी पौधों से पोषण को चूसना, वायुमंडल से आद्रता का अवशोषण, गैसीय विनिमय| इसके अलावा यांत्रिकीय कार्य जैसे :- दृढ़ स्थिरीकरण, प्लवन या उत्प्लावन और आरोहण करने में सक्षम |
  • प्ररोह तंत्र (Shoot System) :- यह तंत्र पौधे का वायवीय और सीधा भाग होता है, जो ऊपर से वृद्धि करता है | यह भूमि सतह से ऊपर होता है | इस तंत्र में शाखाए, तना, पुष्प, पत्तियाँ और बीज सम्मिलित होते है |

तने के कार्य (Stem Functions)

यह पौधे में भूमि के ऊपर वाला भाग होता है, जिसमे अनेक शाखाओ के साथ, पत्तियाँ, टहनिया और पुष्प निकलते है | बीज जमने के पश्चात् प्रांकुल से निकलने वाले भाग को तना कहते है | तना पौधे का ऊपरी हिस्सा होता है, जिससे शाखाए निकलती है | जड़ो की तरह ही पौधे पर आना वाला तना भी त्वचा से न निकलकर बाहरी ऊतक से निकलती है | इन तनो पर पर्णकलिका, पत्ती और पुष्प लगते है | तना जड़ से अवशोषित किए गए जल और लवण को ऊपर की और भेजने का कार्य करता है | जिसके बाद यह तत्व पत्तियों में पहुंचकर सूर्य से लिए गए प्रकाश संश्लेषण के काम आता है | तैयार किए गए भोजन को पौधे के प्रत्येक भाग तक पहुचाने का कार्य तने द्वारा ही किया जाता है | तना पौधे को सीधा खड़ा रखने का भी कार्य करता है, तथा नई पत्तियों को जन्म देने के पश्चात् जनन कार्य को संपन्न  करने में भी सहायता प्रदान करता है |

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पत्तियों के कार्य (Leaves Functions)

पौधों में पत्तियाँ भी विशेष कार्य के लिए होती है | पत्तियों का मुख्य कार्य भोजन तैयार करना होता है | इसके भाग इस तरह से है :- टहनी से पर्णवृत निकलता है, इसके स्थान पर अनुपर्ण भी हो सकता है | पत्ती का मुख्य भाग फैला, चपटा और पर्णफलक होता है | पत्ती का सिरा कई तरह से विन्यासित होता है | सामान्य तौर पर पत्तियाँ कई आकार की होती है | इन पत्तियो में छोटे- छोटे छिद्र या रंध्र बने होते है | इसके अलावा अलग-अलग पौधों में अनेक प्रकार के अनुपर्ण भी होते है, जैसे :- बनपालक, इक्ज़ारा, स्माइलेक्स और गुलाब | इसमें जालिका समांतर या रुपी की तरह होती है | पहला विन्यास द्विबीजीपत्री और दूसरा विन्यास एकबीजपत्री में होता है | इस दोनों ही के कई रूप होते है, जैसे :- पीपल, आम तथा नेनूआ की पत्ती में समांतर विन्यास ताड़, केना और केले की पत्ती |

शिराओ द्वारा पत्तियों को रूप मिलता है, जिससे इन्हे चपटी अवस्था में फैले रहने में सहायता मिलती है | इन शिराओ द्वारा भोजन और जल को पत्ती के प्रत्येक भाग तक पहुंचाया जाता है | पत्तियों की भीतरी बनावट इस तरह से होती है, कि इसमें प्रकाश की ऊर्जा से लेकर, पर्णहरित, कार्बन डाइऑक्साइड और जल को मिलाकर फास्फेट को शक्तिशाली बनाया जाता है, तथा अन्य खाद्य व शर्करा का निर्माण होता है |

पुष्प के प्रकार (Flower Type)

संवृतबीजी का पुष्प नाना प्रकार का होता है, इसकी बनावट और अन्य गुणों के कारण ही संवृतबीजी का वर्गीकरण किया जाता है | पौधों का निषेचन परागण के माध्यम से होता है | निषेचन की क्रिया के बाद भूर्ण धीरे-धीरे विभाजित होकर बढ़ता जाता है | भ्रूण बढ़ने के बाद एक या दो दलवाले बीज बनते है, तथा चारो और का भाग अंडाशय की तरह तथा स्त्रीकेसर बढ़कर फल बनने लगता है | इसमें बीज ढँके रहते है, जिस वजह से बीजो को आवृतबीजी या संवृतबीजी कहा जाता है |

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