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स्टीविया (Stevia) की खेती से सम्बंधित जानकरी
स्टीविया की खेती औषधीय पौधे के लिए की जाती है | आज के समय में पूरी दुनिया में ही मधुमेह रोगियो की जनसँख्या बढ़ती जा रही है, जो कि एक बुरी खबर है, किन्तु किसान भाइयो के लिए आय कमाने का यह एक बेहतर विकल्प भी है | स्टीविया एक ऐसा पौधा जिसे मधुमेह के उपचार में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है | जिसका अर्थ यह है, कि किसान भाई स्टीविया की खेती कर अपनी आय को दोगुना कर सकते है | एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2022 तक स्टीविया के बाजार में 1000 हज़ार करोड़ रूपए की बढ़ोतरी देखने को मिली है, जिसे देखते हुए नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड (National Medicinal Plants Board) ने स्टीविया की खेती करने वाले किसानो को 20 फीसदी सब्सिडी देने का ऐलान किया है |
भारतीय कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किए शोध के अनुसार यह पता चला है, कि स्टीविया की पत्तियों में फाइबर और प्रोटीन की मात्रा सबसे अधिक पाई जाती है | इसके अलावा इसकी पत्तियों में फास्फोरस और कैल्शियम के साथ-साथ कई अन्य खनिज तत्व पाए जाते है | यह रोबाउदिआना मूल का मध्य पेरूग्वे का पौधा है, जो अक्सर ही प्राकृतिक रूप से तालाबों और नालो के किनारे उग आता है | इसका पौधों में शक़्कर की तुलना में तक़रीबन 25 से 30 गुणा अधिक मिठास पाई जाती है, तथा पौधों से निकलने वाले अर्क में शक्कर से 300 गुणा ज्यादा मिठास होती है |
पूरे विश्व में स्टीविया की खेती ताईवान, कोरिया, अमेरिका और जापान देश में की जाती है, तथा भारत के रायपुर, बैंगलोर, इंदौर, और पुणे जैसे शहरो में भी स्टीविया को उगाया जा रहा है | यदि आप भी स्टीविया की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको स्टीविया (Stevia) की खेती कैसे करें तथा स्टीविया के फायदे व नुक्सान क्या है, इसके बारे में विशेष जानकारी दी जा रही है |
स्टीविया की खेती में भूमि व जलवायु (Stevia Cultivation Land and Climate)
स्टीविया की खेती के लिए भुरभुरी, बलुई दोमट, समतल व उचित जल निकासी वाली भूमि की जरूरत होती है | इसका पौधा समशीतोष्ण जलवायु में अच्छे से विकास कर लेता है | जिन क्षेत्रों में 10 से 41 अंश वाली जलवायु होती है, वहां इसे सफलतापूर्वक उगा सकते है | इसके अलावा तापमान को सामान्य बनाए रखने के लिए उचित व्यवस्था जरूर होनी चाहिए | स्टीविया की खेती करते समय एक बात का विशेष ध्यान रखे कि आप जिस जलवायु में इसकी खेती करने वाले है, उसी किस्म को लगाए, ताकि उत्पादन अधिक प्राप्त किया जा सके |
स्टीविया का पौधा (Stevia Plant)
स्टीविया का पौधा बहुवर्षीय तथा बहुशाखीय झाड़ीनुमा होता है, जो 60 से 70 CM ऊँचा होता है | प्राकृतिक अवस्था में इसका पौधा 11 से 41 अंश तक के तापमान में सरलता से बढ़ लेता है, तथा कुछ प्रजातियां 45 अंश तक के तापमान को भी सहन कर लेती है |
इसके पत्ते स्वाद में अधिक मीठे होते है, जिसमे रोबाउदिसाइड-सी, रोबाउदिस, स्टीवियासाइड, डुलकोसाइड तथा 6 अन्य प्रमुख घटक पाए जाते है | इन यौगिकों में इंसुलिन को बैलेंस करने का गुण होता है | जिस वजह से इसे मधुमेह के उपचार में अधिक उपयोगी माना जाता है | स्टीविया के जिन पत्तो में 9% या इससे अधिक स्टीवियासाईड होता है, उनकी गुणवत्ता अच्छी मानी जाती है |
स्टीविया के फायदे व नुकसान क्या है (Stevia Advantages and Disadvantages)
- स्टीविया त्वचा पर होने वाले डर्मेटाइटिस और एक्जीमा के विकारो को ठीक करने में सहायता प्रदान करता है | यह स्टेरॉयड के रूप में कार्य करते हुए त्वचा पर जीवाणुओं को बढ़ने से रोकता है |
- स्टीविया में टैनिन, काम्पेरोल, कैफिक एसिड, फ्लावोनोइड्स, ट्राईटरपेनस और क्वैक्सेटीन जैसे कई एंटीऑक्सीडेंट यौगिक पाए जाते है, जो कैंसर के उपचार में एक आदर्श आहार है| यह क्वैक्सेटीन को ख़त्म कर स्वस्थ कोशिकाओं को कैंसर कोशिका में परिवर्तित नहीं होने देता है |
- स्टीविया की सबसे खास बात यह है, कि यह रक्त शर्करा के लेवल को नियंत्रित रखता है | इसमें स्टेवियोसाइड नामक यौगिक मौजूद होता है, जिसे गैर कार्बोहाईड्रेट ग्लाइकोसाइड यौगिक के रूप में पहचाना जाता है | इसमें चीनी के बराबर मीठापन पाया जाता है, जिस वजह से मधुमेह के मरीज या कार्बोहाइड्रेट का नियंत्रित आहार लेने वाले व्यक्तियों के लिए यह चीनी के स्थान पर एक बेहतर विकल्प है |
- स्टीविया मुँह में पनपने वाले जीवाणुओं को नष्ट करता है, जिस वजह से इसका उपयोग दंतमंजनों में भी किया जाता है | यह केविटी और मसूड़ों के सूजन की समस्या को ठीक करता है |
- चीनी से भी अधिक मीठा होने के बावजूद इसमें कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है | आप कैंडी, कुकीज़ और केक आदि में चीजों में स्टीविया का इस्तेमाल कर सकते है, और बिना घबराए खा सकते है, क्योकि यह वजन को नहीं बढ़ने देता है |
- स्टीविया में स्टेवियोसाइड जैसे कई ग्लाइकोसाइड गुण होते है, जो रक्त वाहिकाओं को आराम पहुंचाने, शरीर में सोडियम को ख़त्म करने और पेशाब में वृद्धि करने में अहम भूमिका निभाता है | यह उच्च रक्तचाप को भी नियंत्रित रखता है |
- स्टीविया में मौजूद ग्लाइकोसाइड्स गुण हमारे दिल का भी ख्याल रखता है, यह हमारे हृदय को दिल के दौरे स्ट्रोक और एथेरोस्क्लेरोसिस से रक्षा करता है |
स्टीविया के नुकसान (Stevia Disadvantages)
- कुछ लोगो में स्टीविया का सेवन करने पर सूजन, ऐठन और सिरदर्द की समस्या देखने को मिली है |
- बहुत से लोगो को रैग्वेड, डेज़ी और मैरीगोल्ड के पौधों से एलर्जी होती है, ऐसे लोगो को स्टीविया से भी एलर्जी हो सकती है |
- यदि आपको भी ऐसी किसी तरह की समस्या होती है, तो आपको स्टीविया का सेवन नहीं करना चाहिए |
स्टीविया की उन्नत किस्में (Stevia Improved Varieties)
- एस.आर.बी.- 123 :- यह किस्म उदगम पेरूग्वे है, जिसे भारत के दक्षिणी पठारी इलाको में उगाने के लिए उपयुक्त माना जाता है | यह क़िस्म प्रति वर्ष 5 बार कटाई के लिए तैयार हो जाती है | इस क़िस्म के पत्तियों में 9 से 12 प्रतिशत ग्लूकोसाइड की मात्रा पाई जाती है |
- एस. आर. बी.- 512 :- यह उत्तर भारत में उगाई जाने वाली मुख्य क़िस्म है | इस क़िस्म के पौधे भी वर्ष में 5 बार कटाई के लिए तैयार हो जाते है | इसमें भी 9 से 12 प्रतिशत ग्लूकोसाइड पाया जाता है |
- एस.आर.बी.- 128 :- इस क़िस्म को कृषिकरण की दृष्टि से सबसे उत्तम माना जाता है | यह प्रजाति मुख्य रूप से भारत के उत्तर और दक्षिण दोनों ही क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त होती है | इसमें 12 प्रतिशत तक ग्लूकोसाइड की मात्रा पाई जाती है |
स्टीविया के खेत की तैयारी व पौध रोपण (Stevia Field Preparation and Planting)
स्टीविया की खेती पंचवर्षीय फसल का उत्पादन प्राप्त करने के लिए की जाती है | इसका पौधा एक बार लग जाने के पश्चात् 5 वर्ष तक पैदावार दे देता है | जिस वजह से इसकी फसल उगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना जरूरी होता है, ताकि फसल का उत्पादन अधिक मात्रा में मिलता रहे | इसके लिए सबसे पहले खेती की गहरी जुताई कर प्रति एकड़ के हिसाब से 3 टन केंचुआ खाद या 6 टन कम्पोस्ट खाद का इस्तेमाल किया जाना चाहिए | इसके अलावा जैविक खाद 120 किलोग्राम प्रॉम को भी खेत में मिला दे | खेत की भूमि को दीमक व मिट्टी जनित रोगो से बचाने के लिए प्रति एकड़ के खेत में जुताई के समय 150 से 200 GM नीम की पीसी हुई खली को भी खेत में मिला दे |
इसके बाद स्टीविया के पौधों की रोपाई के लिए खेत में मेड़ को तैयार कर ले | मेड़ो का निर्माण इसलिए भी जरूरी होता है, ताकि बारिश के मौसम में या सिंचाई के दौरान खेत में जल भराव न बना रहे, तथामेड़ में लगाए गए पौधों की जड़ो का विकास भी अच्छे से होता है | इन मेड़ो को एक से डेढ़ फ़ीट ऊँचा और दो फ़ीट चौड़ा तैयार करते है | स्टीविया के खेत में मेड़ो को तैयार करने के पश्चात् पौधों की रोपाई की जाती है | इसके लिए टिश्युकल्चर विधि से तैयार पौधों को मेड़ पर लगा दिया जाता है, इन पौधों को 6 से 9 इंच की दूरी पर कतारों में लगाए, कतार से कतार के मध्य 40 CM की दूरी रखे | ताकि मेड़ के दोनों और पौधा फैलाव कर सके |
एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 30,000 से 40,000 हज़ार पौधों का रोपण किया जा सकता है | स्टीविया के पौधों को सामान्य तापमान की जरूरत होती है, जिस वजह से अधिक गर्मी और ज्यादा सर्दी के मौसम को छोड़कर इसके पौधों की रोपाई किसी भी समय की जा सकती है | उत्तर भारत में दिसंबर-जनवरी और अप्रैल-मई के महीने को छोड़कर कभी भी पौध रोपण कर सकते है, सामान्य तौर पर इसके पौधों की रोपाई के लिए सितम्बर से नवंबर और फ़रवरी से अप्रैल का महीना उपयुक्त होता है |
स्टीविया के पौधों की सिंचाई (Stevia Plant Irrigation)
स्टीविया के पौधों को 4 से 5 सिंचाई की जरूरत होती है | इसके पौधों को चावल की फसल की तरह ही पानी की जरूरत होती है, जिस वजह से पूरे वर्ष समय-समय पर सिंचाई करते रहे | सामान्य तौर पर सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर्स विधि का इतेमाल किया जाता है, किन्तु स्टीविया की सिंचाई के लिए ड्रिप विधि को सबसे अच्छा माना जाता है | जिस वजह से स्टीविया के पौधों की सिंचाई के लिए ड्रिप विधि का ही उपयोग करे |
स्टीविया की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Stevia Crop Weed Control)
स्टीविया की फसल उगाने वाले खेत में निरंतर सफाई करना जरूरी होता है | इसके लिए जब भी खेत में किसी तरह का खरपतवार दिखाई दे उसे उखाड़ कर फेक दे, तथा निश्चित अंतराल में निराई-गुड़ाई करते रहे | इससे खेत की भूमि भी नम बनी रहती है | खरपतवार पर नियंत्रण रखने के लिए हाथो का इस्तेमाल करे, तथा रासायनिक दवाओं का उपयोग खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए बिल्कुल भी न करे |
स्टीविया की फसल में लगने वाले रोग व नियंत्रण (Stevia Crop Diseases and Control)
स्टीविया की फसल में किसी तरह का रोग अथवा कीट का प्रकोप नहीं देखने को मिलता है | किन्तु कभी-कभी भूमि में बोरोन तत्व की कमी के चलते लीफ स्पॉट का प्रकोप देखने को मिल सकता है, जिसके उपचार के लिए खेत में 6% बोरेक्स का छिड़काव करे | समय-समय पर नीम के तेल अथवा गोमूत्र का छिड़काव करने पर फसल पूर्णतया रोग व कीटो से मुक्त रहती है |
इस बात का भी ध्यान रखना होता है, कि खेत में किसी तरह से रासायनिक कीट नाशक का इस्तेमाल न करे | यदि फसल पर किसी तरह के रासायनिक कीटनाशकों का प्रभाव देखने को मिले तो उस रोग के आने से पहले ही उसे रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए | इसके लिए नियमित अंतराल में गोमूत्र का छिड़काव एक अच्छा विकल्प हो सकता है |
स्टीविया के फसल की कटाई (Stevia Harvesting)
स्टीविया के पौधे रोपाई के चार माह पश्चात् पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते है | इसकी फसल की कटाई पौधों पर फूल आने से पहले कर लेनी चाहिए, क्योकि पौधों पर फूल आने के बाद स्टिवियोसाइड की मात्रा कम होने लगती है | जिस वजह से फसल के उचित दाम नहीं मिल पाते है | स्टीविया की बाकी की कटाई को पहली कटाई के 3-3 माह के अंतराल में करना होता है| इन सभी कटाइयो में इस बात का ध्यान जरूर रखे कि कटाई पौधों पर फूल आने से पहले ही करे|
फसल की कटाई में आप पूरा पौधा या सिर्फ पत्तो की कटाई भी कर सकते है | यदि आप पूरे पौधे की कटाई करते है, तो उसके बाद भी पत्तो को तोड़ा जा सकता है | इन पत्तो की तुड़ाई के बाद इन्हे 3 से 4 दिन तक किसी छायादार जगह पर सुखा लिया जाता है | इसके बाद इन्हे बोरोन में पैक कर बाजार में बेचने के लिए भेज देते है | अगर स्टीविया के फसल की बिक्री की बात करे तो इसके पत्तो, पाउडर या एक्सट्रैक्ट को निकालकर भी बेचा जा सकता है |
स्टीविया की फसल से कमाई (Stevia Crop Earning)
स्टीविया एक बहुवर्षीय फसल है, जिस वजह से प्रत्येक कटाई के बाद निरंतर बढ़ोतरी होती रहती है | मुख्य रूप से पैदावार फसल की वृद्धि, लगाई की क़िस्म तथा कटाई के समय पर निर्भर करती है | सामान्य तौर पर चार कटाई से 2 से 4 टन सूखे पत्तो का उत्पादन मिल जाता है, तथा एक वर्ष की फसल से 2.5 टन तक सूखे पत्तो की उपज मिल जाती है |
स्टीविया के पत्तो का बाज़ारी भाव 60 से 120 रूपए प्रतिकिलो होता है | इस हिसाब से किसान भाई एक एकड़ के खेत में स्टीविया की एक वर्ष की फसल से 2 से 3 लाख की कमाई कर सकते है |
लेमन ग्रास की खेती कैसे करते हैं