शरीफा की खेती कैसे करें | Sugar Apple (शरीफा की खेती) कहाँ और कैसे होती है


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शरीफा (Sugar Apple) की खेती से सम्बंधित जानकारी

शरीफा की खेती मीठे और स्वादिष्ट फल के लिए की जाती है | इसे सीताफल, सुगर एप्प्ल या कस्टर्ड एप्पल भी कहते है, तथा इसका वनस्पतिक नाम अनोनस्क्चैमोसा है | इसकी पत्तियों का रंग गहरा हरा होता है | जिसमे से एक विशेष तरह की महक निकलती है, जिस कारण कोई भी जानवर इसके पौधे को नहीं खाते है, और न ही पौधों को अधिक देखरेख की जरूरत होती है | शरीफा के पौधों पर रोग और हानिकारक कीड़े भी कम लगते है | पहले यह माना गया था कि शरीफा भारतीय मूल का फल है, किन्तु इसका पेड़ बहुत समय पहले किसी अन्य देश से लाया गया था, और आज इसकी खेती पूरे भारत में की जा रही है | दक्षिण भारत में शरीफा का पौधा स्वयं ही उग आता है |

ब्राजील और भारत में शरीफा की खेती आम फसल है, किन्तु इसे महत्वपूर्ण फल वाली फसलों में गिना जाता है | स्वादिष्ट और मीठा फल होने के साथ ही शरीफा में कई औषधीय गुण भी होते है | जिस वजह से लोग इसे अधिक खाना पसंद करते है | यह सूखे फलो की फसल में से एक महत्वपूर्ण फल वाली फसल है | भारत में शरीफा की खेती सूखी प्रवण और हल्की मिट्टी वाले क्षेत्रों में की जाती है | इस औषधीय पौधे की पत्तियों में टेट्राहाइड्रो आइसोक्विनोसीन अल्कलायड पदार्थ मौजूद होता है, जो हृदय रोग के लिए टॉनिक की तरह कार्य करता है | तीव्र दस्त की समस्या में इसकी जड़ का इस्तेमाल लाभकारी होता है | शरीफे के बीजो से निकाली गयी सुखी गिरी से 30 प्रतिशत तेल की मात्रा मिल जाती है | जिसका इस्तेमाल साबुन या पेंट बनाने के लिए करते है |

शरीफा का फल पोषण की दृष्टि से काफी फायदेमंद है| इसके फल में 14.5 शर्करा और गुल्कोज की अधिकता पाई जाती है| इसके फल से मिले गूदे से आइसक्रीम बनाई जाती है, तथा दूध में मिलाकर पेय पदार्थ बनाया जाता है | शरीफा को खाने के अलावा व्यापक रूप से काफी इस्तेमाल किया जा रहा है, जिस वजह से किसान भाइयो के लिए इसकी खेती किसी अवसर की तरह है | यदि आप शरीफा की खेती कर अधिक लाभ लेना चाहते है, तो इस लेख में आपको शरीफा की खेती कैसे करें तथा Sugar Apple (शरीफा की खेती) कहाँ और कैसे होती है इसके बारे में बता रहे है |

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शरीफा के फल के लिए उपयुक्त मिट्टी (Custard Apple Suitable Soil)

शरीफा (सीताफल) की खेती किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, किन्तु अच्छी पैदावार लेने के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में ही इसकी खेती करे | जलभराव व चिकनी मिट्टी में शरीफा की खेती बिल्कुल न करे | क्योकि जलभराव में पौधों पर कई तरह कीड़े मकोड़े लगने का खतरा बढ़ जाता है | सीताफल की खेती में भूमि का P.H. मान 5.5 से 7 तक हो |

शरीफा की खेती के लिए उचित जलवायु और तापमान (Custard Apple Cultivation Suitable Climate and Temperature)

सीताफल की खेती शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में करे | क्योकि इसका पौधा अधिक गर्मी में विकास करता है, तथा अधिक सर्दी सहन करने में सक्षम नहीं होता है | शरीफा के फल को पकने के लिए गर्म मौसम की आवश्यकता होती है, और अधिक गर्म में पकने के बावजूद इसका फल ठंडा रहता है, लेकिन ठंड में बने फल का स्वाद कड़ा हो जाता है |

शरीफा के पौधों का अंकुरण सामान्य तापमान पर होता है, तथा इसका पौधा अधिकतम 40 डिग्री के तापमान को ही सहन कर सकता है | अगर पौधों पर फल और फूल बनने के दौरान 40 से अधिक तापमान होता है, तो फूल व फल दोनों ही झड़ने लगते है |

शरीफा की उन्नत किस्में (Sharifa Improved Varieties)

  • अर्का सहन :- यह सीताफल की एक संकर किस्म है, जिसके फल अधिक रसदार होते है| इसमें फल धीमी गति से पककर तैयार होता है| इस क़िस्म के फलो में बीज छोटे आकार के और कम मात्रा में होते है| इसमें निकलने वाला गूदा स्वाद में मीठा और बर्फ की तरह सफ़ेद होता है, जिसमे से मध्यम प्रकार की सुगंध आती है |
  • लाल सीताफल :- सीताफल की इस क़िस्म में पौधों को बीज द्वारा तैयार किया जाता है, जिससे फलो में शुद्धता बनी रहती है | इसमें फल हल्का गुलाबी रंग का होता है, तथा एक पौधे से प्रति वर्ष 40 से 50 फल का उत्पादन मिल जाता है | यह उत्पादन समय के साथ बढ़ता रहता है | इस क़िस्म के फल में बीज कम मात्रा में होते है |
  • मैमथ :- इस क़िस्म के शरीफे का उत्पादन लाल शरीफे की तुलना में ज्यादा होता है | मैमथ क़िस्म का पौधा एक वर्ष में 60 से अधिक फल दे देता है | किन्तु फल के अंदर बीज कम होते है, तथा फल की फांकी बड़ी और गोलाकार होती है, जिसमे गूदा अधिक होता है |
  • बाला नगर :- झारखंड के क्षेत्रों में सीताफल की यह क़िस्म अधिक उगाई जाती है | यह क़िस्म सामान्य रूप से झारखंड के जंगलो में उगती है, जिसमे फल हल्के रंग के निकलते है | यह क़िस्म अधिक बीज वाली होती है, तथा एक पौधे से 5 KG फल की पैदावार मिल जाती है |

इसके अलावा भी सीताफल की कई किस्में है, जिनका उत्पादन समय और स्थान के आधार पर अलग-अलग क्षेत्रों में किया जाता है | इसमें ब्रिटिश ग्वाइना, बारबाड़ोज़ सीडलिंग और वाशिंगटन पी.आई. 107, 005 जैसी किस्में शामिल है |

शरीफा के खेत की तैयारी (Sharifa Field Preparation)

सीताफल की खेती करने से पहले खेत को तैयार कर ले | इसके लिए खेत में मौजूदा फसल के अवशेषों को हटाने के लिए पलाउ के माध्यम से गहरी जुताई की जाती है | इसके बाद कल्टीवेटर लगाकर दो से तीन तिरछी जुताई करते है | अब खेत में पाटा लगाकर चला दिया जाता है | पाटा लगाने से खेत में मौजूद मिट्टी के ढ़ेले टूट जाते है, और भूमि समतल हो जाती है |

अब समतल भूमि सीताफल के पौधों को लगाने के लिए 3-4 मीटर की दूरी पर 2 फ़ीट चौड़े और एक फ़ीट गहरे गड्डे तैयार कर लिए जाते है | इन गड्डो को एक लाइन में बनाना होता है, तथा लाइन से लाइन के बीच में 3 मीटर की दूरी रखते है | गड्डे को तैयार करने के बाद उसमे जैविक और रासायनिक खाद डाली जाती है | खाद को मिट्टी के साथ मिलाकर गड्डो में भर दें और फिर गड्डो की सिंचाई कर दे |

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शरीफा की पौध तैयार करना (Custard Seed Preparation)

शरीफ की लाल क़िस्म के अलावा सभी क़िस्मों को कलम द्वारा तैयार किया जाता है | क्योकि कलम द्वारा तैयार पौधे पर दो वर्ष बाद फल बनाना आरम्भ कर देते है | कलम के माध्यम से सीताफल की पौधों को तैयार करने के लिए ग्राफ्टिंग विधि और शील्ड बडिंग का उपयोग किया जाता है | यह दोनों ही विधिया अलग-अलग समय पर अपनाई जाती है | शील्ड बडिंग विधि को जनवरी से जून के महीने में अपनाया जाता है, तथा ग्राफ्टिंग विधि को अक्टूबर से नवंबर के महीने में अपनाते है | आप इसकी कलम को तैयार करने के बजाए किसी रजिस्टर्ड नर्सरी से भी खरीद सकते है | पौधों को खरीदकर लगाने से समय की बचत होगी और फलो की पैदावार भी जल्दी मिलेगी |

अगर आप बीज द्वारा पौधे तैयार करना चाहते है, तो उसके लिए आप पहले 3 से 4 दिन तक बीजो को पानी में भिगोकर रखे, ताकि बीज जल्दी अंकुरित हो सके | इसके बाद नर्सरी में खाद और मिट्टी के मिश्रण से भरी पॉलीथिन में बीजो को लगा दें | कुछ दिन बाद बीज अंकुरित होने लगते है | जब अंकुरित बीजो से पौध निकलना आरम्भ कर दें, तो सबसे विकसित पौधे को निकालकर अन्य पौधों को नष्ट कर दें | इसकी पौध को खेत में लगाने से 4 माह पहले नर्सरी में तैयार करना होता है |

सीताफल के पौधों की सिंचाई (Cilantro Plants Irrigation)

सीताफल के पौधों की रोपाई करने के पश्चात् उनकी तुरंत सिंचाई कर देना चाहिए | इसके पौधों को थोड़ा कम सिंचाई की जरूरत होती है | फिर भी एक वर्ष में सीताफल के पौधों को 10 से 12 बार पानी देना होता है | ठंडियों के मौसम में पौधों की 15 से 20 सिंचाई करे, तथा गर्मियों के मौसम में पौधों को सप्ताह में एक बार पानी दें | बारिश के मौसम में सिंचाई जरूरत के अनुसार की जाती है | इसके अलावा पौधों पर फल बनने के दौरान नमी बनाए रखने के लिए पौधों की हल्की-हल्की सिंचाई करते रहे |

सीताफल के पौध की रोपाई का समय और तरीका (Cilantro Seedlings Transplanting Time and Method)

सीताफल के पौधों की रोपाई खेत में तैयार किए गए गड्डो में की जाती है | इन गड्डो में पौधों को लगाने के लिए एक और छोटा सा गड्डा बड़े गड्डे के बीच में बना लेते है, फिर इस गड्डे में पौधे को लगाते है | पौध लगाने से पहले गड्डे को उपचारित करने के लिए गोमूत्र डालते है | इसके बाद पौध लगाकर उसे चारो और मिट्टी से ढक देते है | सीताफल के पौधों को लगाने के लिए जुलाई का महीना सबसे उपयुक्त होता है | क्योकि इस दौरान वर्षा ऋतु का मौसम होता है, और पौधों को विकास के लिए उचित वातावरण मिल जाता है |

सीताफल की फसल में उर्वरक की मात्रा (Cilantro Crop Fertilizer Amount)

शरीफा के पौधों को खाद और उवर्रक की बहुत आवश्यकता होती है | उचित मात्रा में खाद व उवर्रक देने के लिए गड्डो को तैयार करने के दौरान हर एक गड्डे में 5 से 10 KG सड़ी गोबर की खाद के साथ मिट्टी और 50 GM एन.पी.के. की मात्रा को मिलाए, फिर इस मिश्रण को गड्डो को भर दें | खाद की यह मात्रा एक साल में पौधों को देना होता है, तथा 3 से 4 वर्ष तक यह खाद देते रहे | इसके अतिरिक्त पौध वृद्धि के साथ खाद की मात्रा में भी वृद्धि करे |

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सीताफल के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Cilantro Plants Weed Control)

सीताफल के पौधों को खरपतवार से बचाने के लिए पौध रोपाई के तीन से चार सप्ताह बाद खेत की हल्की निराई- गुड़ाई करना होता है | गुड़ाई करने से पौधा अच्छा से वृद्धि करता है | शरीफा की खेती में एक वर्ष में दो से तीन गुड़ाई करनी चाहिए | इसके अलावा बारिश का मौसम गुजर जाने के बाद ख़ाली पड़ी भूमि की जुताई कर दें, ताकि खेत में निकलने वाली खरपतवार नष्ट हो जाए |

शरीफा के पौधों में लगने वाले रोग व उपचार (Custard Apple Diseases and Treatment)

सीताफल के पौधों से अजीब क़िस्म की महक निकलती है, जिस वजह से इसके पौधों पर किसी तरह की बीमारी या रोग का प्रकोप नहीं देखने को मिलता है | यदि फलन के दौरान पौधों से फूल झड़ने लगे तो पानी लगाना बंद कर दें | फलो की तुड़ाई उचित समय पर करते रहे, क्योकि इसका फल बहुत जल्द सड़ने लगता है |

शरीफा के फलों की तुड़ाई (Custard Apple Harvesting)

सीताफल के पेड़ो पर फल आने में थोड़ा समय लगता है | इसके पौधों पर मार्च के महीने में फूल आना शुरू कर देते है, जो जुलाई तक आते रहते है | इसके बाद फलो को आने में 4 महीने का समय लग जाता है | सितंबर महीने के बाद फलो का पकना शुरू हो जाता है | जब सीताफल के पौधों पर फूल खिल चुके हो तो उन पर 50 पी.पी.एम. जिब्रेलिक एसिड को छिड़के | ताकि फल अच्छे से बन सके |

शरीफा का पूरी तरह से पका हुआ फल कठोर होता है, तथा फलो पर बनी फांकी के बीच में खाली जगह दिखाई देने लगती है | इस दौरान फल पूरी तरह से पक चुका होता है | इसके कम पके फल स्वाद में काफी कड़वे होते है, इसलिए कम पके फलो को न तोड़े |

शरीफा की पैदावार और लाभ (Custard Apple Harvest Yields and Benefits)

सीताफल का पौधा रोपाई के दो से तीन वर्ष बाद फल देना आरम्भ करता है| इसके एक पौधे से लगभग 60 फलो का उत्पादन मिल जाता है | जिसकी संख्या समय के साथ बढ़ती रहती है| कुछ वर्षो बाद एक पौधे से 100 से अधिक फलो का उत्पादन मिलने लगता है | यदि एक एकड़ के खेत में लगभग 500 पौधे लगाए गए है, तो वार्षिक उत्पादन 30 क्विंटल के आसपास हो सकता है | शरीफा का बाज़ारी भाव 40 रूपए प्रति किलो होता है | इस हिसाब से किसान भाई एक एकड़ के खेत में शरीफा के पौधों से वार्षिक उत्पादन लेकर सवा लाख तक की कमाई कर सकते है |

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