अकरकरा की खेती कैसे करें | Anacyclus Pyrethrum Farming in Hindi | अकरकरा की कीमत


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अकरकरा (Anacyclus Pyrethrum) की खेती से सम्बंधित जानकारी

अकरकरा (Anacyclus) की खेती को औषधीय खेती के रूप में जाना जाता है | इस खेती में होने वाले पौधों की जड़ो का इस्तेमाल मुख्य रूप से आयुर्वेदिक दवाओं के बनाने में किया जाता है | अकरकरा के पौधों के उपयोग से कई तरह की बीमारियों को ठीक किया जा सकता है |

यह कम मेहनत में अधिक लाभ वाली खेती होती है, इसकी खेती में किसान अधिक पैदावार कर अच्छी कमाई कर सकते है | यदि आप भी इस तरह की खेती को करना चाहते है तो यहाँ पर आपको अकरकरा की खेती से जुड़ी जानकारी अकरकरा की खेती कैसे करें, Anacyclus Pyrethrum Farming in Hindi, अकरकरा की कीमत आदि के बारे में समस्त जानकारी दी गयी है|

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अकरकरा की खेती कैसे करे (How to Cultivate Akarkara)

अकरकरा की खेती करने में लगभग 6 से 8 महीने का समय लगता है | यह फसल सम शीतोष्ण जलवायु में अच्छे से विकास करती है इसकी खेती को खासकर भारत के मध्य राज्यों में उगाया जाता है, जैसे:- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र आदि ऐसे राज्य है, जहाँ इसकी खेती अधिक होती है | इसकी खेती पर अधिक सर्दी और तेज गर्मी का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है, यह पौधा छोटी-छोटी पत्तियों से घिरा भूमि सतह पर ही गोलाकार रूप में विकसित होता है इसकी खेती में भूमि का P.H. मान सामान्य होना चाहिए |

अकरकरा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable Soil for Cultivation of Akarkara)

इसकी खेती करने के लिए अच्छे जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि होनी चाहिए क्योकि जलभराव और भारी मिट्टी वाली भूमि पर इसकी खेती को नहीं किया जा सकता है | इसकी खेती के लिए जरूरी P.H. मान लगभग 7 होना चाहिए|

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अकरकरा की खेती में उपयुक्त जलवायु और तापमान (Suitable Climate and Temperature in Akarkara Cultivation)

इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु को सबसे अच्छा माना गया है | भारत में इसकी खेती रबी की फसल के बाद की जाती है, अकरकरा की फसल को अधिक धूप की जरूरत होती है | इसकी खेती को छायादार जगहों पर नहीं किया जा सकता है क्योंकि छायादार जगह पर इसके पौधों की जड़ो का अच्छे से विकास नहीं हो पाता है | इसलिए इसकी खेती को छायादार जगहों पर नहीं करना चाहिए और न ही ज्यादा बारिश वाली जगह पर, क्योकि इसे अधिक जल की भी जरूरत नहीं होती है | अकरकरा के पौधों पर सर्दी और गर्मी के मौसम का असर इसकी पैदावार पर नहीं होता है, क्योकि यह पौधे सर्दियों में गिरने वाले पीला को भी सहन कर लेते है |

अकरकरा के पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | इसके पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए न्यूनतम 15 और अधिकतम 30 डिग्री तापमान की जरुरत होती है, तथा पौधों के पकने के समय इन्हे 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है|

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खेत की तैयारी कैसे करे (How to Prepare the Field)

इसकी खेती के लिए मिट्टी भुरभुरी और नर्म होनी चाहिए , यह एक कंदवर्गीय (Tuberous) फसल होती है, जिसके फल भूमि के अंदर विकास करते है | इसलिए जब इसकी खेती करे तो इसकी खेत की मिट्टी को पलटने वाले हलो से इसकी गहरी जुताई करके कुछ दिन के लिए इसे खुला छोड़ दे | उसके बाद गोबर की खाद को खेत में डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला दे | इसके बाद खेत में पानी लगा कर पलव कर दे, पलेव करने के कुछ दिन बाद जब खेत की ऊपरी मिट्टी सूखने लगे तब खेत की फिर से जुताई कर देनी चाहिए |

पौधे तैयार करने का तरीका (How to Grow Plants)

अकरकरा की फसल को पौधों और बीज दोनों ही रूप में उगाया जा सकता है | इसके पौधों को भी पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है, बीजो को नर्सरी में तैयार करने से पहले उन्हें गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए | जिससे पौधों में शुरुआती रोग नहीं लगते है, पौधों को उपचारित कर उन्हें प्रो – ट्रे में एक महीने पहले लगा देना चाहिए | बीजो के तैयार हो जाने पर उन्हें खेत में तैयार की हुई मेड़ में लगा देना चाहिए|

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पौधों को लगाने का सही तरीका व समय (Right Way and Time To Plant Plants)

अकरकरा की खेती को बीज और पौध दोनों ही रूप में तैयार किया जा सकता है. यदि आप इसकी खेती को बीज के रूप में करना चाहते है तो आपको तीन किलो बीजो की जरूरत होगी और यदि पौध के रूप में करना चाहते है तो दो किलो बीज ही काफी है . बीजो को खेत में उगाने से पहले उन्हें गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए इसके बाद उन बीजो की रोपाई खेत में मेड़ पर की जाती है . प्रत्येक बीज के लिए 15 सेंटीमीटर की दूरी तथा दो से तीन सेंटीमीटर गहराई से लगाना चाहिए तथा मेड़ से मेड़ की दूरी एक फिट होनी चाहिए |

पौधों के रूप में इसके पौधों की रोपाई भी मेड़ पर ही की जाती है, मेड़ पर इसके पौधों को जिगजैग तरीके का इस्तेमाल कर 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए , तथा रोपाई करते समय 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए | पौधों की रोपाई के लिए शाम के वक़्त को काफी उपयुक्त माना गया है, इससे पौधे अच्छी तरह से अंकुरित होते है |

इसकी खेती में बीज और पौधों की रोपाई को अक्टूबर और नवंबर महीने के बीच में करना चाहिए, क्योकि यह समय पौधों के विकास के लिए उपयुक्त माना गया है |

पौधों की सिंचाई का तरीका (Irrigation Methods of Plants)

पौधों को खेत में लगाने के पश्चात उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए . जिससे पौधों को अंकुरित होने में आसानी होती है . इसके पौधों की पहली सिंचाई करने के बाद बीज के अंकुरित होने तक खेत में नमी की मात्रा को बनाये रखने के लिए हल्की-हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए |

अकरकरा की खेती को जाड़ो के मौसम में किया जाता है जिससे पौधों को अंकुरित होने में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है . जब पौधों की 5 से 6 सिंचाई तक हो जाती है तब इसके पौधे पककर तैयार हो जाते है. तथा पौधों के अंकुरित हो जाने के बाद 20 से 25 दिन में पानी देते रहना चाहिए|

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अकरकरा के पौधों में उर्वरक की सही मात्रा (The Right Amount of Fertilizer for Plants)

सभी फसलों की तरह ही इस फसल के पौधों को भी उवर्रक की जरूरत होती है, इसके लिए खेत को तैयार करते समय प्रति एकड़ में 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालना चाहिए | किसान भाई चाहे तो गोबर की खाद की जगह जैविक खाद का भी इस्तेमाल कर सकते है, किन्तु रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योकि इसकी खेती को औषधि पौधों के लिए की जाती है | यदि फिर भी रासायनिक खाद का उपयोग करते है, तो एक एकड़ में एक बोरा N.P.K. की मात्रा आखरी जुताई के समय छिड़क दे |

अकरकरा की खेती में खरपतवार पर नियंत्रण (Weed Control)

अकरकरा की खेती में खरपतवार नियंत्रण काफी महत्वपूर्ण होता है | इसमें खरपतवार पर नियंत्रण के लिए निराई – गुड़ाई का इस्तेमाल किया जाता है | यदि रासायनिक तरीके का इस्तेमाल कर खरपतवार पर नियंत्रण किया जाये तो कंदो की गुणवत्ता में असर देखने को मिलता है | इसमें पहली गुड़ाई को पौध रोपाई के लगभग 20 दिन के अंतराल में कर देना चाहिए | इसके बाद की गुड़ाई को 20 से 25 दिन के अंतराल में करते रहना चाहिए | इसके पौधों में तीन बार की गुड़ाई ही काफी होती है |

अकरकरा के पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम (Diseases and Their Prevention in Plants of Akarkara)

इसके पौधों में अभी तक किसी तरह के रोग देखने को नहीं मिले है, किन्तु अधिक जलभराव के कारण इसके पौधों के सड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है | जिससे इसकी पैदावार को काफी नुकसान हो सकता है, इसलिए जलभराव की स्थिति से बचाव करना चाहिए|

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अकरकरा के पौधों की खुदाई और सफाई का तरीका (Plant Digging and Cleaning Method)

पौधों की रोपाई के लगभग 5 से 6 माह के बाद पौधे खेत से खुदाई के लिए तैयार हो जाते है | वह पौधे जो पूरी तरह से पक चुके होते है उनकी पत्तिया पीले रंग की हो जाती है, और पौधे सूखने की स्थिति में होते है | उनकी खुदाई गहरी मिट्टी उखाड़ने वाले हलो से कर लेनी चाहिए तथा खुदाई से पहले पौधों पर बने बीज वाले डंठलों को तोड़कर जमा कर ले | एक एकड़ में लगभग डेढ़ से दो क्विंटल तक के बीज तैयार हो जाते है |

जड़ो से उखाड़े गए इन पौधों को साफ कर पौधों से काट कर अलग कर लेना चाहिए, तथा जड़ो से अलग करने के बाद उन्हे दो से तीन दिन तक छायादार जगह या फिर हल्की धूप में सूखाकर बोरो में भरकर बाजार में बेच दिया जाता है | सिंगल जड़ वाली फसल का बाजारी भाव अधिक होता है |

अकरकरा की फसल की पैदावार और लाभ (Akarkara Crop Yield and Benefits)

अकरकरा की खेती में प्रति एकड़ फसल में डेढ़ से दो क्विंटल तक बीज और 8 से 10 क्विंटल तक जड़े प्राप्त होती है | यह जड़े बाजार में 20 हजार रूपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकती है, तथा बाजार में इसके बीजो का भाव 10 हजार रूपए प्रति क्विंटल के आसपास होता है | किसान भाई इसकी एक एकड़ में एक बार की फसल में 2 से 3 लाख तक की कमाई कर सकते है |

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अकरकरा क्या है (What is Akarkara)

अकरकरा अर्थात एनासाइक्लस पाइरेथ्रम (Anacyclus Pyrethrum) कई औषधीय उपयोगों वाली एक जड़ी बूटी है। इस जड़ी बूटी का उपयोग आयुर्वेद, यूनानी और हर्बल दवा परंपरा में किया जाता है और यह पौधों के एस्टेरेसिया परिवार से संबंधित है। इसका वानस्पतिक नाम एनासाइक्लस पाइरेथ्रम है। होम्योपैथी के विज्ञान में भी इस जड़ी बूटी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। शरीर पर अपने कामोत्तेजक प्रभाव (Aphrodisiac Effect) के लिए प्रभावी माना जाता है| इसके अलावा पौधे के कई अन्य लाभ हैं और इसका उपयोग सूखे पाउडर (Dry Powder) के रूप में किया जाता है।

अकरकरा, एक बारहमासी जड़ी बूटी है जो आमतौर पर उत्तरी अफ्रीका, भूमध्यसागरीय क्षेत्रों, अरब देशों, उत्तर भारत में हिमालय में पाई जाती है। इस जड़ी बूटी की जड़ का प्रयोग सदियों से आयुर्वेद और सिद्ध औषधियों में किया जाता रहा है। जड़ में एक तीखी प्रभावकारिता होती है जो दांत दर्द से राहत देती है और लार के प्रवाह को बढ़ावा देती है, जिससे यह एक लोकप्रिय मसाला बन जाता है।

यह त्वचा पर लगाने से झुनझुनी और गर्मी उत्पन्न करता है। चूहों पर इस दवा के साथ हाल के प्रयोगों में एनाबॉलिक गुणों का पता चला है, जो पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन के समान कार्य करता है। नवीनतम अध्ययनों से पता चलता है, कि अकरकरा में कामोत्तेजक और कामेच्छा उत्तेजक गुण होते हैं जो शारीरिक संपर्क के दौरान पुरुष में शारीरिक शक्ति और प्रदर्शन में सुधार करते हैं।

अकरकरा के लाभ (Akarkara Benefits)

एनासाइक्लस पाइरेथ्रम (Anacyclus Pyrethrum), जिसे आमतौर पर हिंदी में अकरकरा और अंग्रेजी में पेलिटरी (Pelletary) के नाम से जाना जाता है| यह एस्टेरेसिया परिवार (Asteraceae Family) से संबंधित एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। इसे मराठी में ‘अक्कीराकरम’ भी कहते हैं। पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार पौधे की जड़ों का चिकित्सीय महत्व अच्छा होता है। इसे अफ्रीकन पाइरेथ्रम (African Pyrethrum) के नाम से भी जाना जाता है। प्रजाति मोरक्को, स्पेन और अल्जीरिया के लिए स्वदेशी है और इसकी नैक्य्लस पाइरेथ्रम  वर और  एनासाइक्लस पाइरेथ्रम वर 2 किस्में हैं|  कुछ किस्में जम्मू -कश्मीर और बंगाल में पाई जाती हैं। भारत में इसे अल्जीरिया (Algeria) से आयात किया जाता है।

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अकरकरा के चिकित्सीय उपयोग (Therapeutic Uses of Akarkara)

अकरकरा के चिकित्सीय उपयोग फ्लेवोनोइड्स (Flavonoids) और टेरपेनोइड्स (Terpenoids) जैसे फाइटोकेमिकल्स की उपस्थिति के कारण होते हैं। अकरकरा की जड़ों और पत्तियों की पारंपरिक यूनानी और आयुर्वेदिक दवाओं के साथ-साथ पूर्व की हर्बल दवाओं में चिकित्सीय भूमिका है। इसके अन्य चिकित्सीय उपयोग इस प्रकार है-

  • सूजनरोधी 
  • जीवाणुरोधी 
  • कामोद्दीपक 
  • एंटी वाइरल 
  • कामिनटिव 
  • मूत्रवधक 
  • इमेनगॉग (मासिक धर्म प्रवाह को उत्तेजित करना) 
  • वर्मीफ्यूज (कृमिनाशक) 
  • ज्वरनाशक (बुखार कम करना) 
  • सियालगॉग (लार को उत्तेजित करना) 
  • एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) 
  • गठिया विरोधी 
  • तंत्रिका टॉनिक  

अकरकरा के औषधीय महत्व (Akarkara Medicinal Importance)

मसल्स मास हासिल करने में मदद करता है – अकरकरा एक टेस्टोस्टेरोन बूस्टर जड़ी बूटी है और पुरुषों में मांसपेशियों की मात्रा बढ़ाने में मदद करती है। टेस्टोस्टेरोन अपने एनाबॉलिक बढ़ाने वाले गुणों के कारण जिम के उम्मीदवारों के लिए फायदेमंद पाया जाता है।

कामेच्छा बढ़ाने वाला – कई अध्ययनों में अकरकरा के पुरुषों पर मजबूत कामोद्दीपक प्रभाव देखा गया है। अकरकरा टेस्टेरोन के स्तर में सुधार करता है और इस प्रकार बेहतर सेक्स ड्राइव और बढ़ी हुई कामेच्छा के लिए जिम्मेदार होता है।

शीघ्रपतन – अकरकरा रक्त में उचित टेस्टोस्टेरोन स्तर को बनाए रखने में मदद करता है और वीर्य को बहुत जल्दी बाहर आने से रोकता है। यह तंत्रिका तंत्र को शक्ति प्रदान करता है। मजबूत तंत्रिका तंत्र शीघ्रपतन को रोकता है।

नपुंसकता – अकरकरा ने कई शोधों में आंशिक नपुंसकता को ठीक करने में बहुत मददगार पाया है। यह पेनाइल सैक्स कॉर्पोरा कैवर्नोसा और पेनाइल वेन्स में रक्त के प्रवाह में सुधार करता है, और बेहतर इरेक्शन का समर्थन करता है।

तंत्रिका टॉनिक – अकरकरा को तंत्रिका टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और उचित मस्तिष्क और तंत्रिका कार्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है। अगर इसका नियमित सेवन किया जाए, तो यह तंत्रिका तंत्र की समस्याओं को ठीक कर सकता है।

विषहरण और कम मूत्र संख्या में सहायक – अकरकरा जड़ के अर्क में मूत्रवर्धक गुण होते हैं और यह मूत्र की मात्रा को बढ़ाता है। पेशाब में वृद्धि के साथ यह रक्त से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में सहायता करता है।

भाषण समारोह को ठीक करता है – अकरकरा वाणी के अप्राक्सिया में लाभकारी पाया जाता है और जो लोग बोलने के लिए सही शब्दों का चयन नहीं कर सकते वह इस जड़ी बूटी का सेवन कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

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अकरकरा के दुष्प्रभाव और एहतियाती उपाय (Akarkara Side Effects And Precautionary Measures)

अकरकरा की जड़ का चूर्ण यदि अधिक मात्रा में लिया जाए तो इससे होने वाले दुष्प्रभाव इस प्रकार है-

  • जी मिचलाना
  • अत्यधिक लार आना
  • मुंह के छालें
  • पेट की गैस
  • हृदय गति में वृद्धि, नाराज़गी
  • बेहोशी की हालत
  • यदि आप गैस्ट्राइटिस, अल्सर, एसिडिटी और इंफ्लेमेटरी बाउल सिंड्रोम से पीड़ित हैं, तो अकरकरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • इसे निरंतर 4 सप्ताह से अधिक समय तक उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  • गर्भवती (Pregnant) और स्तनपान (Breastfeeding) कराने वाली महिलाओं को इसके सेवन से पूर्ण रूप से बचना चाहिए।

अकरकरा का उपयोग कैसे करें (How to Use Akarkara)

अनुशंसित खुराक 

  • आप 1-2 ग्राम अकरकरा की जड़ का चूर्ण दिन में एक बार ले सकते हैं।
  • आप अकरकरा जड़ का 125-150 मिलीग्राम अर्क दिन में दो बार ले सकते हैं।
  • काढ़े के रूप में आप 3 ग्राम अकरकरा जड़ के चूर्ण को 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर दिन में एक बार सेवन कर सकते हैं।
  • या फिर 10-20 मिली अकरकरा जूस सुरक्षित माना जाता है।
  • फूलों की दृष्टि से अकरकरा के 1-2 ग्राम फूल सुरक्षित माने जाते हैं।

सुनिश्चित करें कि इस मात्रा से अधिक न हो और याद रखें कि पाउडर के रूप में इसका सबसे अच्छा सेवन किया जाता है। इसके अलावा किसी भी रूप में इस जड़ी बूटी का सेवन करने से पहले कृपया अपने चिकित्सक से परामर्श करें।

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